Santan Ganpati Stotra
सन्तान गणपति स्तोत्रम् पूर्ण श्लोक + हिन्दी अर्थ सहित
1) संतान‑गणपति स्तोत्र — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित
(प्रचलित पाठ‑रूप; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ मिल सकती हैं। अर्थ—सरल हिन्दी भावार्थ।)
श्रीगणेशाय नमः ।
विनायकं वरदं देवं सर्वसिद्धि‑प्रदायकम्।
सन्तान‑समृद्धिदं देवं वन्दे सिद्धि‑विनायकम्॥ 1॥
सन्तान‑समृद्धिदं देवं वन्दे सिद्धि‑विनायकम्॥ 1॥
अर्थ: मैं सिद्धि‑विनायक को प्रणाम करता हूँ—जो वरदान देने वाले, सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाले तथा विशेषतः संतान‑समृद्धि देने वाले भगवान हैं।
बालार्क‑समतेजस्य शुक्लवर्णस्य धीमतः।
दूर्वाङ्कुरप्रियस्यैव वक्रतुण्डस्य धीमतः॥ 2॥
दूर्वाङ्कुरप्रियस्यैव वक्रतुण्डस्य धीमतः॥ 2॥
अर्थ: जिनका तेज बाल‑सूर्य के समान है, शुक्लवर्ण हैं, दूर्वा जिनको प्रिय है, तथा बुद्धि के दाता व वक्रतुण्ड हैं—ऐसे गणेश को नमस्कार।
लम्बोदरं प्रसन्नं च सर्वरोधविनाशकम्।
गृहस्थानां विशेषेण सन्तानफलदायकम्॥ 3॥
गृहस्थानां विशेषेण सन्तानफलदायकम्॥ 3॥
अर्थ: लम्बोदर, प्रसन्नमुख, विघ्न‑नाशक गणेश गृहस्थों को विशेष रूप से संतान का मंगल‑फल देते हैं।
यः पठेत् श्रद्धया नित्यं स्तोत्रमेतत् समाहितः।
तस्य सन्तान‑समृद्धिः स्याद् आरोग्यं दीर्घजीवितम्॥ 4॥
तस्य सन्तान‑समृद्धिः स्याद् आरोग्यं दीर्घजीवितम्॥ 4॥
अर्थ: जो साधक श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे संतान‑समृद्धि, आरोग्य और दीर्घायु का वरदान मिलता है।
निर्विघ्नं कुर्वते कार्यं गर्भिणीनां सदा प्रभो।
त्वत्पादाम्भोज‑भक्तानां भ्रान्तिर्नश्यतु सर्वदा॥ 5॥
त्वत्पादाम्भोज‑भक्तानां भ्रान्तिर्नश्यतु सर्वदा॥ 5॥
अर्थ: हे प्रभु! गर्भिणी स्त्रियों के कार्यों को आप सदा निर्विघ्न बनाते हैं; आपके चरण‑कमल के भक्तों की सारी चिंताएँ नष्ट हों।
त्वमेव सन्तानदाता त्वमेव दोषनाशकः।
त्वमेव जगतां नाथः त्वमेव शरणं मम॥ 6॥
त्वमेव जगतां नाथः त्वमेव शरणं मम॥ 6॥
अर्थ: आप ही संतान देने वाले, आप ही दोष/दोषज विघ्नों का नाश करने वाले, आप ही जगत के नाथ—आप ही मेरी शरण हैं।
गौरीसुत प्रियान् पुत्रान् देहि मे विघ्ननायक।
सुपुत्रान् सुविचारांश्च दीयन्तां ते कृपानयम्॥ 7॥
सुपुत्रान् सुविचारांश्च दीयन्तां ते कृपानयम्॥ 7॥
अर्थ: हे विघ्ननायक! हे गौरीसुत! अपनी कृपा से मुझे सद्गुणी, विवेकी, संस्कारी संतान प्रदान कीजिए।
अकालमृत्युदोषांश्च ग्रहपीडां तथैव च।
अपसारय दैन्यं च दुष्टस्वप्नं च सर्वदा॥ 8॥
अपसारय दैन्यं च दुष्टस्वप्नं च सर्वदा॥ 8॥
अर्थ: अकाल‑मृत्यु के दोष, ग्रह‑पीड़ा, दैन्य और अशुभ स्वप्न—इन सबको दूर करें।
कुक्षौ गर्भं स्थितं रक्ष त्वत्पदाम्भोरुहार्चनैः।
सुखप्रसवमवाप्नोति यः पठेत् भक्तितो नरः॥ 9॥
सुखप्रसवमवाप्नोति यः पठेत् भक्तितो नरः॥ 9॥
अर्थ: आपकी पूजा से गर्भस्थ शिशु सुरक्षित रहता है; जो व्यक्ति भक्ति से यह पाठ करता है, उसे सुख‑प्रसव का वर मिलता है।
गणाधिप त्वमेवान्ते पुत्रानां रक्षकः सदा।
तेषां बुद्धिप्रदाता त्वं विद्यान् दीक्षस्व सर्वदा॥ 10॥
तेषां बुद्धिप्रदाता त्वं विद्यान् दीक्षस्व सर्वदा॥ 10॥
अर्थ: हे गणाधिप! आप ही संतान के रक्षक हैं; आप ही बुद्धि‑प्रदाता हैं—हमारी सन्तान को सद्विद्या प्रदान करें।
दीनबन्धो दयासिन्धो प्रसन्नो भव मातुल।
मम वाञ्छितसन्तानं देहि देव गणाधिप॥ 11॥
मम वाञ्छितसन्तानं देहि देव गणाधिप॥ 11॥
अर्थ: हे दीनबन्धु, हे करुणासागर! प्रसन्न होइए; मुझे इच्छित संतान का आशीर्वाद दीजिए।
इदं स्तोत्रं सन्तानार्थं प्रातरुत्थाय यो नरः।
पठेत् मासत्रयं पूर्णं लभते सुलभं सुतम्॥ 12॥
पठेत् मासत्रयं पूर्णं लभते सुलभं सुतम्॥ 12॥
अर्थ: जो व्यक्ति प्रातःकाल तीन माह तक नियमित रूप से यह संतान‑गणपति स्तोत्र पढ़ता है, वह सुयोग्य सन्तान‑प्राप्ति का सुख पाता है (ईश्वर‑कृपा से)।
टिप्पणी: संतान‑गणपति पाठ के क्षेत्रीय रूपों में कुछ श्लोक‑भेद मिलते हैं; उपर्युक्त पाठ लोकप्रिय संकलित रूप है। अपने गुरु‑परम्परा में प्रचलित पाठ को वरीयता दें।
2) लाभ (Labh / Benefits)
- सन्तान‑कल्याण: गर्भ‑सुरक्षा, सुख‑प्रसव, शिशु‑आरोग्य हेतु मंगल‑प्रार्थना।
- मानसिक शान्ति: दम्पति‑तनाव/चिन्ता में शीतलता, आश्वस्ति व धैर्य।
- सद्बुद्धि‑संस्कार: बालक में विवेक/विनय/दया जैसे गुणों का संस्कार‑बोध।
- विघ्न‑निवारण: ग्रह‑पीड़ा/अशुभ‑स्वप्न/नकारात्मक‑चिन्ता के शमन का भाव।
लाभ श्रद्धा + नियमितता + सात्त्विक आचरण पर आधारित हैं; चिकित्सकीय परामर्श के स्थानापन्न नहीं।
3) जप/पूजन‑विधि (सरल)
- संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर दीप/धूप; सफेद/पीले पुष्प, दूर्वा/मोदक उपलब्ध हो तो अर्पित करें।
- मन्त्र‑जप: ॐ गणेशाय नमः — 108 बार।
- स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिया सन्तान‑गणपति स्तोत्र। समयाभाव में 3 या 7 बार प्रथम/सम्पूर्ण पाठ।
- आरती‑प्रसाद: “जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति”; गुड़‑मोडक/फल।
- नियमितता: चतुर्थी/सङ्कष्टी/प्रदोष/बुधवार विशेष शुभ; पर दैनिक 5–10 मिनट भी उत्तम।
यदि सामग्री सीमित हो—केवल जल/दीप/दूर्वा‑स्मरण के साथ भी पाठ पूर्णतया मान्य है।
4) मंत्र‑सूची
गणेश बीज
ॐ गं गणपतये नमः (108)
सन्तान‑गणेश मंत्र
हे गौरीसुत, सुपुत्र दास्यम् मे देहि देहि स्वाहा (या गुरु‑दीक्षा अनुसार)
5) गणेश आरती (संक्षेप)
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति, दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ति… (प्रचलित पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें)
6) नियम‑सुझाव
- सात्त्विक आहार‑विचार; क्रोध/वितर्क/आशंका का परित्याग—डॉक्टरी सलाह के साथ संयम।
- दंपति मिलकर जप/पाठ करें तो श्रेष्ठ; न हो सके तो कोई एक नित्य करें।
- सेवा/दान—अन्न/दूध/फल/बाल‑सुरक्षा हेतु सहयोग।
7) सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या यह स्तोत्र केवल गर्भधारण के लिए है?
नहीं—गर्भाधान से पूर्व, गर्भकाल व संतान‑पालन—सभी चरणों में मंगल‑कामना हेतु।
Q2. क्या उपवास आवश्यक है?
अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/फलाहार रख सकते हैं—डॉक्टरी सलाह प्राथमिक।
Q3. भूल हो जाए तो?
भाव सर्वोपरि—धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें।
8) नोट्स
परंपरा‑सूचक: ‘सन्तान‑गणपति स्तोत्र’ के क्षेत्रीय रूप अलग‑अलग मिलते हैं; यह लोकप्रिय संकलित पाठ है। यदि आपके गुरु/परम्परा में कोई निश्चित पाठ हो तो वही अपनाएँ।