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पंचरत्न गणपति स्तोत्रम् (Mudakaratta Modakam) — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित (Labh, Puja Vidhi)

पंचरत्न गणपति स्तोत्रम् (Mudakaratta Modakam) पूर्ण श्लोक हिन्दी अर्थ सहित

1) पंचरत्न गणपति स्तोत्र — सभी श्लोक देवनागरी में पूर्ण हिन्दी अर्थ सहित

(प्रामाणिक पाठ‑रूप; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ मिल सकती हैं। अर्थ—सरल हिन्दी भावार्थ।)

श्रीगणेशाय नमः ।
मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥
अर्थ: जिनके करकमलों में मोदक (आनन्द का प्रतीक) है, जो सदा भक्तों की मुक्ति का साधन करते हैं; जिनके मस्तक पर चन्द्रकल शोभित है और जो हर्ष‑उल्लास से लोकों की रक्षा करते हैं; जो स्वयं अनन्य स्वामी हैं और दैत्यों‑रूपी भीतरी विघ्नों का नाश करते हैं; जो शरणागतों के अशुभ को शीघ्र दूर करते हैं—ऐसे विनायक को नमस्कार।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥
अर्थ: जो अहंकारवश नमन् न करने वालों हेतु भीषण प्रतीत होते हैं, पर भक्तों के लिए नव‑उदित सूर्य समान दीप्त हैं; देवताओं द्वारा प्रणमित और शरणागतों की बड़ी‑से‑बड़ी विपत्ति हरने वाले हैं; जो देवेश, धनाध्यक्ष (निधीश्वर), गजेश्वर और गणेश्वर हैं—वे महेश्वर, परम‑परात्पर प्रभु, मैं निरन्तर उनकी शरण लेता हूँ।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥
अर्थ: जो समस्त लोकों का शंकर (कल्याणकर्ता) है और दैत्यों जैसे भीतरी बलों को निरस्त करता है; जिनका विशाल उदर वर‑प्रदाता है और गजराज‑सदृश मुख अमर‑तत्त्व का बोध कराता है; जो करुणा, क्षमा, आनन्द और यश प्रदान करते हैं; जो नम्र भक्तों को सद्बुद्धि/एकाग्रता देते हैं—उस दीप्तिमान विग्रह को नमन।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणं
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥
अर्थ: जो दीन‑दुखियों की पीड़ा हर लेते हैं और प्राचीन ऋषियों‑संतों की स्तुतियों के आश्रय हैं; जो त्रिपुरारि शिव के ज्येष्ठ पुत्र हैं और देव‑शत्रुओं के अहंकार को चूर्ण करते हैं; जो पंच‑महाभूतों से बने जगत के मोह का नाश करने में भयानक हैं और दिव्य तेज से अलंकृत हैं; जिनके गालों पर करुणामृत छलकता है—ऐसे पुराणों में स्तुत्य पुराण‑वारण (प्राचीन गजमुख) का मैं भजन करता हूँ।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥
अर्थ: जिनका एकदन्त रूप अत्यन्त आकर्षक है; जो यम (अन्तक) को भी शान्त करने वाले शंकर के पुत्र हैं; जिनका स्वरूप मन/वाणी से परे और सीमा‑रहित है तथा वे भक्तों के अन्तराय काट देते हैं; जो योगियों के हृदय‑गुहा में निरन्तर विराजते हैं—मैं उन एकदन्त का सदा चिन्तन करता हूँ।
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥
अर्थ (फलश्रुति): जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक हृदय में गणेश्वर का स्मरण करते हुए इस महागणेश पंचरत्न का पाठ करता है—वह शीघ्र ही आरोग्यता, दोष‑मुक्ति, सत्सहचर्य, संतान‑सौभाग्य, दीर्घायु और अष्ट‑विभूतियों का लाभ प्राप्त करता है।
स्रोत‑अनुसरण: लोकप्रिय पाठ‑रूप पर आधारित; यदि आपकी परम्परा/पुस्तक में पंक्तियों का क्रम/पद्य भिन्न हो, तो वही संस्करण अपनाएँ।

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • विघ्न‑निवारण: आरम्भ/परियोजना/परीक्षा/व्यापार में बाधा‑शमन का शुभ भाव।
  • बुद्धि‑स्मृति‑एकाग्रता: ‘विनायक’ उपासना से निर्णय‑क्षमता व अध्ययन‑सिद्धि।
  • समृद्धि‑स्थिरता: ‘निधीश्वर’ तत्त्व—धैर्य, संयम, सत्कर्म से लक्ष्मी‑अनुकूलता।
  • आन्तरिक शान्ति: चिन्ता/भय का क्षय, प्रसन्नता व कृतज्ञता का विकास।

नोट: लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सात्त्विक आचरण पर आधारित हैं। यह आध्यात्मिक जानकारी है—चिकित्सकीय/कानूनी परामर्श का विकल्प नहीं।

3) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. स्नान‑संकल्प: शुद्ध स्थान; गणपति‑ध्यान—“वक्रतुंड महाकाय…”
  2. दीप/अर्चन: घी/तिल का दीप; दूर्वा/मोदक/गुड़; पीला/सफेद पुष्प; अक्षत।
  3. मन्त्र‑जप: ॐ गं गणपतये नमः — 108 बार।
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिये 5 रत्न‑श्लोक क्रम से; अर्थ पर मनन करें।
  5. आरती‑समापन: “जय देव जय देव” आरती; अंत में “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”।
⏱️ समय‑सुझाव: चतुर्थी/सङ्कष्टी/बुधवार, अथवा कार्यारम्भ से पहले। दैनिक 5–7 मिनट भी पर्याप्त।

4) मंत्र‑सूची

गणेश बीज

ॐ गं गणपतये नमः (108)

वक्रतुंड

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

5) गणेश आरती (संक्षेप)

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति, दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ति… (पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें)

6) नियम‑सुझाव

  • सात्त्विक वाणी‑आहार; असत्य/अपमान/आलस्य से दूरी—सेवा/दान में रुचि।
  • किसी भी पाठ में भाव प्रधान—उच्चारण त्रुटि से न घबराएँ; धीरे‑धीरे सुधारें।
  • आरम्भ से पहले गुरुवर/वरिष्ठ से अपने परम्परा‑अनुसार विधि पूछना श्रेयस्कर।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या पंचरत्नम् रोज़ पढ़ सकते हैं?

हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त; कार्यारम्भ/यात्रा/परीक्षा से पहले विशेष शुभ।

Q2. क्या उपवास आवश्यक है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो फलाहार/लघु‑उपवास रख सकते हैं।

Q3. भूल हो जाए तो?

भाव सर्वोपरि; अर्थ समझते हुए धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें।

8) नोट्स

परंपरा‑सूचक: ‘गणेश पंचरत्नम्’ के छंद/पंक्तियों में क्षेत्र/मुद्रण के अनुसार छोटे भेद मिलते हैं; ऊपर व्यापक रूप से प्रचलित पाठ रखा है। अपने गुरु‑परम्परा का रूप उपलब्ध हो तो वही अपनाएँ।

अस्वीकरण: यह आध्यात्मिक/सांस्कृतिक जानकारी है; चिकित्सकीय/कानूनी परामर्श का विकल्प नहीं।

गणपति बाप्पा मोरया
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