Mahakali Stotra

महाकाली स्तोत्र - अर्थ और लाभ सहित | माँ काली की कृपा प्राप्ति

महाकाली स्तोत्र (अर्थ और लाभ सहित)

माँ काली की कृपा प्राप्त करने, भय मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु

📜 पाठ करने की विधि

स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। माँ काली के चित्र या मूर्ति के सामने लाल या काले आसन पर बैठें। लाल फूल, लाल चंदन, और लौंग अर्पित करें। दीपक जलाएं और श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करें। नवरात्रि में इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।

🔱 महाकाली पूजन विधि

महाकाली स्तोत्र के साथ माँ काली का पूजन करना अत्यंत शुभ माना गया है। पूजन में लाल फूल, लाल चंदन, लौंग, मिष्ठान्न, और फल अर्पित करें। "ॐ क्रीं कालिकायै नमः" मंत्र का जप करें। रात्रि में पूजन करना विशेष फलदायी होता है। माँ काली की कृपा से सभी भय दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

🙏 महाकाली स्तोत्र

श्लोक 1
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं, सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं ॥
हे माँ! आप अनादि हैं, देवताओं की आदि हैं, यज्ञों की आदि हैं, संसार की आदि हैं। देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
आप सम्पूर्ण जगत को मोहित करने वाली हैं, वाणी को वश में करने वाली हैं, सज्जनों का पालन करने वाली और शत्रुओं का संहार करने वाली हैं।
इस श्लोक में माँ काली के अनादि और सर्वव्यापी स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे देवताओं, यज्ञों और संसार की आदि हैं। उनका स्वरूप इतना गहन है कि देवता भी उसे पूरी तरह नहीं जान सकते। वे जगत को मोहित करने वाली, वाणी को नियंत्रित करने वाली, सज्जनों की रक्षा करने वाली और शत्रुओं का विनाश करने वाली हैं।
श्लोक 2
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली, मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात ॥
हे माँ! आप वचन को स्थिर करने वाली हैं, उच्चाटन (बाधा दूर करने) में क्या कहना! देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
यह स्वर्ग देने वाली है, कल्पवल्ली के समान है, और मनोज (मन की इच्छाओं) द्वारा सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है।
इस श्लोक में माँ काली की विभिन्न शक्तियों का वर्णन किया गया है। वे वचन को स्थिर करने वाली और सभी बाधाओं को दूर करने वाली हैं। देवता भी उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। वे स्वर्ग प्रदान करने वाली, कल्पवल्ली के समान सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली और मन की कामनाओं को साकार करने वाली हैं।
श्लोक 3
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता, लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते ॥
इस प्रकार आपके भक्त सदैव कृतार्थ होते हैं, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
आप सुरापान से मत्त रहती हैं, भक्तों से अनुरक्त रहती हैं, और शुद्ध चित्त वालों पर सदैव प्रकट होती हैं।
इस श्लोक में माँ काली के भक्तों पर कृपा और उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है। उनके भक्त सदैव कृतार्थ होते हैं। देवता भी उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। माँ काली सुरापान से मस्त रहती हैं, अपने भक्तों से विशेष स्नेह रखती हैं और शुद्ध हृदय वाले भक्तों पर सदैव प्रकट होती हैं।
श्लोक 4
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द, शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं ॥
जप, ध्यान और पूजा रूपी अमृत से धुले हुए, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
आप चिदानन्द की कन्द (मूल) हैं, मंद-मंद हंसती हैं, और शरद् चन्द्र की करोड़ों किरणों के समान प्रभा से युक्त हैं।
इस श्लोक में माँ काली की दिव्य छवि और उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है। जप, ध्यान और पूजा रूपी अमृत से शुद्ध होने पर भी देवता उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। वे चेतना और आनंद की मूल हैं, मंद-मंद मुस्कुराती हैं और शरद् पूर्णिमा के चंद्रमा की करोड़ों किरणों के समान तेजस्वी हैं।
श्लोक 5
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा, कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया ॥
मुनियों और कवियों के हृदय में प्रकाशित होने वाले, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
आप महामेघ के समान काली हैं, लाल भी हैं और शुभ्र (सफेद) भी, कभी-कभी विचित्र रूप धारण करने वाली योगमाया हैं।
इस श्लोक में माँ काली के विविध रूपों और योगमाया स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे मुनियों और कवियों के हृदय में ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं, फिर भी देवता उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। वे महामेघ के समान काली हैं, लाल वर्ण की भी हैं और शुभ्र (सफेद) भी। कभी-कभी विचित्र रूप धारण करने वाली योगमाया हैं।
श्लोक 6
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं, मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् ॥
न बाला हैं, न वृद्धा हैं, न कामातुर हैं, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
मेरे अपराध को क्षमा करें, हे महागुप्तभाव वाली! लोकों के बीच में जो प्रकाशित किया गया है।
इस श्लोक में माँ काली के अवयव और काल से परे स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे न बाला हैं, न वृद्धा हैं, न ही कामना से युक्त हैं। देवता भी उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। भक्त उनसे अपने अपराधों की क्षमा मांगता है और उनके महागुप्तभाव (अत्यंत गोपनीय स्वरूप) की स्तुति करता है जो संसार में प्रकट किया गया है।
श्लोक 7
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य, स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ॥
आपके ध्यान से पवित्र और चंचलता के भाव से, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते।
यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करे, तो वह सभी लोकों में विशाल (महान) हो जाता है।
इस श्लोक में माँ काली के ध्यान के महत्व और स्तोत्र पाठ के फल का वर्णन किया गया है। उनके ध्यान से पवित्र होकर और चंचलता त्यागकर भी देवता उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते। यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करे तो वह सभी लोकों में महान और प्रसिद्ध हो जाता है।
श्लोक 8
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥
गृह में अष्ट सिद्धियाँ और मृत्यु के बाद मुक्ति प्रदान करने वाली, देवता भी आपके स्वरूप को नहीं जानते ॥
इस श्लोक में माँ काली की कृपा से प्राप्त होने वाली सिद्धियों और मुक्ति का वर्णन किया गया है। वे घर में अष्ट सिद्धियाँ प्रदान करने वाली और मृत्यु के बाद मोक्ष देने वाली हैं, फिर भी देवता उनके स्वरूप को पूरी तरह नहीं जान पाते।
॥ इति महाकाली स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
॥ यह महाकाली स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

महाकाली स्तोत्र पाठ के लाभ

  • माँ काली की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं
  • भय मुक्ति होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है
  • आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और धन-धान्य में वृद्धि होती है
  • अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ प्राप्त होती हैं
  • कालसर्प दोष, मंगल दोष आदि ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है
  • नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर से सुरक्षा प्राप्त होती है
  • मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है
  • साधना में सफलता मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है
महाकाली स्तोत्र के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: महाकाली स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: महाकाली स्तोत्र का पाठ प्रातः काल या सायंकाल के समय करना उत्तम माना गया है। विशेष रूप से अमावस्या, अष्टमी, चतुर्दशी या किसी भी मंगलवार और शुक्रवार को इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है। नवरात्रि में इसका पाठ विशेष लाभकारी होता है।

प्रश्न: महाकाली स्तोत्र का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

उत्तर: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भय मुक्ति होती है, शत्रुओं पर विजय मिलती है, आर्थिक समस्याओं का निवारण होता है, और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। माँ काली की कृपा से अष्टसिद्धियाँ और नवनिधियाँ प्राप्त होती हैं।

प्रश्न: क्या महिलाएं महाकाली स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, महिलाएं भी महाकाली स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं। माँ काली की कृपा प्राप्त करने के लिए कोई लिंग-भेद नहीं है। केवल मासिक धर्म के दौरान कुछ लोग पाठ से परहेज करते हैं, परंतु यह व्यक्तिगत मान्यता का विषय है।

प्रश्न: महाकाली स्तोत्र के साथ और क्या अनुष्ठान करने चाहिए?

उत्तर: महाकाली स्तोत्र के साथ माँ काली का पूजन, हवन और तांत्रिक साधना करना अत्यंत शुभ होता है। लाल फूल, लाल चंदन, लौंग और मिष्ठान्न अर्पित करने से माँ काली प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

🌺 नोट: इस स्तोत्र का नियमित पाठ माँ काली की कृपा प्राप्त करने में अत्यंत प्रभावी माना गया है। पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है। माँ काली की कृपा से सभी भय दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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