Pitra Stotra

महात्मा रूचि कृत पितृस्तोत्र पाठ - अर्थ और लाभ सहित | पितृ दोष निवारण

महात्मा रूचि कृत पितृस्तोत्र पाठ (अर्थ और लाभ सहित)

मार्कंडेय पुराण (94/3-13) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पितृ प्रसन्न होते है।

📜 पाठ करने की विधि

स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पितरों का स्मरण करते हुए जल, फूल और तिल अर्पित करें। आसन पर बैठकर श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करें। पितृ पक्ष या अमावस्या के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।

🔱 पितृ तर्पण विधि

पितृस्तोत्र के साथ पितरों का तर्पण करना अत्यंत शुभ माना गया है। तर्पण करते समय दाहिने हाथ से जल, काले तिल और कुशा मिश्रित जल अर्पित करें और "ॐ पितृगणाय स्वधा नमः" मंत्र का उच्चारण करें। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

🙏 पितृस्तोत्र

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
जो पूजनीय, निराकार, तेजस्वी पितृगण हैं, जो ध्यानमग्न और दिव्य दृष्टि वाले हैं,
मैं सदैव उनको नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में पितरों के गुणों का वर्णन किया गया है। वे पूजनीय, निराकार, तेजस्वी, ध्यानमग्न और दिव्य दृष्टि से युक्त हैं। ऐसे पितरों को सदैव नमस्कार करना चाहिए।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
इंद्रादि देवताओं के नेता, दक्ष और मरीचि आदि ऋषि,
सप्तर्षि और अन्य सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले पितरों को मैं नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में विभिन्न देवताओं, ऋषियों और पितरों का वर्णन है जो कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। इन सभी को नमस्कार करना चाहिए।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥
मनु आदि, मुनींद्र, सूर्य और चंद्रमा,
तथा जल और समुद्र में निवास करने वाले सभी पितरों को मैं नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में मनु, मुनियों, सूर्य, चंद्रमा और जल तथा समुद्र में निवास करने वाले पितरों का वर्णन है। इन सभी को नमस्कार करना चाहिए।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः॥
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश,
स्वर्ग और पृथ्वी में निवास करने वाले पितरों को मैं कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में विभिन्न लोकों और तत्वों में निवास करने वाले पितरों का वर्णन है। इन सभी को कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करना चाहिए।
देवर्षीणां जनिंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृताञ्जलिः॥
देवर्षियों की उत्पत्ति, सभी लोकों में नमस्कार किए जाने योग्य,
सदा अक्षय फल देने वाले दाताओं को मैं कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में देवर्षियों और अक्षय फल देने वाले दाता पितरों का वर्णन है। इन सभी को कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करना चाहिए।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः॥
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण,
और सभी योगेश्वरों को मैं सदैव कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण और योगेश्वरों का वर्णन है। इन सभी को सदैव कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करना चाहिए।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सात गणों और सात लोकों में निवास करने वाले पितरों को नमस्कार,
स्वयंभू ब्रह्मा को, जो योगचक्षु हैं, मैं नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में सात गणों, सात लोकों और स्वयंभू ब्रह्मा का वर्णन है जो योगचक्षु हैं। इन सभी को नमस्कार करना चाहिए।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
सोम के आधार वाले पितृगणों को, योगमूर्ति धारण करने वालों को,
और समस्त जगत के पिता सोमदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।
इस श्लोक में सोम के आधार वाले पितृगणों, योगमूर्ति धारण करने वालों और समस्त जगत के पिता सोमदेव का वर्णन है। इन सभी को नमस्कार करना चाहिए।
अग्रिरुपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः॥
अग्नि के रूप वाले और अन्य पितरों को मैं नमस्कार करता हूँ।
क्योंकि यह समस्त विश्व अग्नि और सोम से ही पूर्ण है।
इस श्लोक में अग्नि के रूप वाले और अन्य पितरों का वर्णन है। समस्त विश्व अग्नि और सोम से पूर्ण है, इसलिए इन सभी को नमस्कार करना चाहिए।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः ।
जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः॥
जो तेजस्वी हैं, जो सोम, सूर्य और अग्नि के रूप में हैं,
जो जगत के स्वरूप हैं और ब्रह्म के स्वरूप हैं।
इस श्लोक में तेजस्वी पितरों का वर्णन है जो सोम, सूर्य और अग्नि के रूप में हैं, जो जगत और ब्रह्म के स्वरूप हैं।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः॥
उन सभी योगी पितरों को, जो स्वधा का भोग करते हैं,
मेरा मन एकाग्र कर, मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ, कृपया प्रसन्न हों।
इस श्लोक में सभी योगी पितरों को नमस्कार किया गया है जो स्वधा का भोग करते हैं। मन को एकाग्र करके बार-बार नमस्कार करने से वे प्रसन्न होते हैं।

✨ पितृस्तोत्र पाठ के लाभ

  • पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है
  • पारिवारिक कलह समाप्त होती है और सुख-शांति का वातावरण बनता है
  • वंश वृद्धि में सहायता मिलती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है
  • आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और धन-धान्य में वृद्धि होती है
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और दीर्घायु प्राप्त होती है
  • कर्ज से मुक्ति मिलती है और आर्थिक स्थिरता आती है
  • मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है
  • पितरों को मोक्ष मिलता है और वंशजों को आशीर्वाद प्राप्त होता है
पितृस्तोत्र के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: पितृस्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: पितृस्तोत्र का पाठ प्रातः काल या सायंकाल के समय करना उत्तम माना गया है। विशेष रूप से पितृ पक्ष में, अमावस्या के दिन, या किसी भी शनिवार को इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है।

प्रश्न: पितृस्तोत्र का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

उत्तर: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से पितृ दोष शांत होते हैं, पितरों की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और पारिवारिक सुख-शांति में वृद्धि होती है।

प्रश्न: क्या महिलाएं पितृस्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, महिलाएं भी पितृस्तोत्र का पाठ कर सकती हैं। पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए कोई लिंग-भेद नहीं है। केवल मासिक धर्म के दौरान कुछ लोग पाठ से परहेज करते हैं, परंतु यह व्यक्तिगत मान्यता का विषय है।

प्रश्न: पितृस्तोत्र के साथ और क्या अनुष्ठान करने चाहिए?

उत्तर: पितृस्तोत्र के साथ पितरों का तर्पण, श्राद्ध और दान करना अत्यंत शुभ होता है। काले तिल, जल, कुशा और पिंड दान से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

🌿 नोट: इस स्तोत्र का नियमित पाठ पितृ दोष निवारण में अत्यंत प्रभावी माना गया है। पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है। पितरों की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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