Haridra Ganesh Kavacham
हरिद्रा गणेश कवचम् (पूर्ण) — देवनागरी पाठ हिन्दी अर्थ सहित
1) हरिद्रा गणेश परिचय
हरिद्रा (हल्दी) के पीताभ‑तेज से अलंकृत हरिद्रा गणपति समृद्धि‑सिद्धि, व्यापार‑वृद्धि, वाणी‑प्रभा और विघ्न‑निवारण के प्रतीक हैं। ‘कवचम्’ का भाव—दिशाओं, अंगों और उपक्रमों पर कवच/रक्षा। यह पाठ नये कार्य, परीक्षा, न्याय/नौकरी, व्यापार, यात्रा और गृह‑प्रवेश में विशेष फलदायी माना गया है।
परम्परा‑भेद के कारण पाठ में सूक्ष्म शब्द/पदांतर मिल सकते हैं—अपने गुरु/संप्रदाय में स्वीकृत पाठ को प्राथमिकता दें।
2) ध्यान / न्यास (सरल)
पीतचन्दन‑लिप्ताङ्गं पीतपुष्पैः सुशोभितम्॥
मोदकाक्षत‑पुष्पाद्यैः पूजितं वरदं सदा॥
3) हरिद्रा गणेश कवचम् — श्लोक + हिन्दी अर्थ
(लोक‑प्रचलित पाठ का संकलन—अंग‑रक्षा/दिक्‑रक्षा/फलश्रुति सहित)
तस्य वश्यं जगत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्॥ 1 ॥
भजे सिद्धिविनायकं सर्वाभीष्टप्रदं विभुम्॥ 2 ॥
यानि क्यानि च पापानि नश्यन्ति कवचस्य तत्॥ 3 ॥
भालं पातु सदा शान्तो विश्ववन्द्यो विनायकः॥ 4 ॥
नासिकां पातु मे देवो मूर्धानं सिद्धिदायकः॥ 5 ॥
ग्रीवां मे पातु विघ्नेशो हृदयं वक्रतुण्डकः॥ 6 ॥
नाभिं पातु गणेशो मे कटिं पातु गिरीसुतः॥ 7 ॥
जङ्घे पातु सदानन्दः गुल्फौ पातु सुशोभनः॥ 8 ॥
सर्वाङ्गं पातु मे नित्यं हरिद्रा‑गणनायकः॥ 9 ॥
पश्चिमे पातरक्षेशो उत्तरस्यां गणेश्वरः॥ 10 ॥
वायव्ये पातु वक्रेशो अगस्त्ये सिद्धिविनायकः॥ 11 ॥
अन्तर्बाह्ये सदा पातु हरिद्रा‑गणनायकः॥ 12 ॥
दुर्व्याधिषु महाघोरे पातु मां हरिद्रो विभुः॥ 13 ॥
सर्वत्र जयदः पातु हरिद्रो विघ्ननाशनः॥ 14 ॥
यः पठेत् प्रातरुत्थाय तस्य सिद्धिर्न संशयः॥ 15 ॥
जपेन्नित्यं स श्रद्धाभिः हरिद्रा‑गणपौ नमः॥ 16 ॥
4) लाभ (Labh / Benefits)
- विघ्न‑निवारण: नए कार्य/व्यापार/शिक्षा/यात्रा में मानसिक‑बाधा और बाहरी विघ्न घटते हैं।
- समृद्धि‑वृद्धि: हरिद्रा‑स्वरूप लक्ष्मी‑तत्त्व से सम्बद्ध; अनुशासनपूर्वक पाठ से धन‑चक्र/कैश‑फ्लो स्थिर होता है (प्रेरक प्रभाव)।
- आत्म‑विश्वास: ‘दिक्‑रक्षा’ का मानस कवच भय/दुविधा कम कर निर्णय‑क्षमता बढ़ाता है।
- स्वास्थ्य‑अनुशासन: नियमित जप/स्वर‑उच्चारण से श्वास‑लय सुधरती है; तनाव‑स्तर घटता है।
- संबंध‑सौहार्द: गणेश‑तत्त्व वाणी‑मृदुता/समन्वय सिखाता है—परिवार/टीम में तालमेल।
नोट: लाभ श्रद्धा + नियमितता + सत्कर्म पर आधारित हैं; अंधविश्वास नहीं—उचित प्रयासों के साथ पाठ करें।
5) जप/पूजन‑विधि (सरल)
- संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान; पीतवर्ण वस्त्र/आसन हो तो शुभ।
- दीप/अर्घ्य: घी/तिल का दीप; शुद्ध जल; हल्दी‑कुंकुम/पीले पुष्प/दूर्वा उपलब्ध हों तो अर्पित करें।
- मंत्र‑जप: ॐ गं गणपतये नमः — 108; चाहें तो गं ह्रीं क्लीं हरिद्रे नमः — 54/108।
- कवच‑पाठ: ऊपर दिये क्रम से; अंत में शांति‑पाठ।
- आरती‑प्रसाद: “जय गणेश देवा”; मोदक/लड्डू/गुड़‑चने का नैवेद्य।
6) मंत्र‑सूची
बीज‑मंत्र
गं (गणेश बीज)
मुख्य‑मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः (108)
हरिद्रा‑मंत्र
गं ह्रीं क्लीं हरिद्रे नमः (54/108)
गणेश‑गायत्री
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात्॥
7) गणेश आरती (संक्षेप)
8) नियम‑सुझाव
- सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/कटु‑वाणी/आलस्य से दूरी।
- नियमितता—कम समय में भी प्रतिदिन अभ्यास; ‘दूर्वा‑अर्पण’ संभव हो तो बुधवार/चतुर्थी को करें।
- सेवा/दान—विद्यार्थियों की सहायता, अन्न/जल‑दान, पीले वस्त्र/अन्न का दान (क्षमता अनुसार)।
9) सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या हरिद्रा गणेश कवचम् का पाठ व्यापार/इंटरव्यू से पहले कर सकते हैं?
हाँ—विघ्न‑निवारण और आत्मविश्वास हेतु यह लोकप्रिय है। संक्षेप में 3/5 श्लोक भी पढ़ सकते हैं।
Q2. क्या बिना सामग्री केवल पाठ मान्य है?
हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/जल से भी पाठ पूर्ण है।
Q3. शुद्ध उच्चारण अनिवार्य?
सीखते हुए सुधारें—भय न रखें; अर्थ पर ध्यान और नियम‑पालन अधिक महत्त्वपूर्ण है।
10) नोट्स
परंपरा‑सूचक: ग्रन्थ/क्षेत्रानुसार शब्द‑भेद/अतिरिक्त श्लोक मिल सकते हैं—अपने गुरु/परम्परा के पाठ को प्राथमिकता दें।
उद्देश्य: सांस्कृतिक/आध्यात्मिक जानकारी; चिकित्सकीय/कानूनी/वित्तीय परामर्श नहीं।