Haridra Ganesh Kavacham

हरिद्रा गणेश कवचम् — पूर्ण देवनागरी पाठ हिन्दी अर्थ सहित (Labh, Puja Vidhi)

हरिद्रा गणेश कवचम् (पूर्ण) — देवनागरी पाठ हिन्दी अर्थ सहित

1) हरिद्रा गणेश परिचय

हरिद्रा (हल्दी) के पीताभ‑तेज से अलंकृत हरिद्रा गणपति समृद्धि‑सिद्धि, व्यापार‑वृद्धि, वाणी‑प्रभा और विघ्न‑निवारण के प्रतीक हैं। ‘कवचम्’ का भाव—दिशाओं, अंगों और उपक्रमों पर कवच/रक्षा। यह पाठ नये कार्य, परीक्षा, न्याय/नौकरी, व्यापार, यात्रा और गृह‑प्रवेश में विशेष फलदायी माना गया है।

परम्परा‑भेद के कारण पाठ में सूक्ष्म शब्द/पदांतर मिल सकते हैं—अपने गुरु/संप्रदाय में स्वीकृत पाठ को प्राथमिकता दें।

2) ध्यान / न्यास (सरल)

अस्य श्रीहरिद्रा‑गणपति‑कवचस्य। ऋषिः नारदः, छन्दः अनुष्टुप्, देवता हरिद्रा‑गणपतिः, बीजं ‘गं’, शक्तिः ‘ह्रीं’, कीलकं ‘क्लीं’; विनियोगः – सर्व‑सिद्धि‑विघ्न‑निवारणार्थे।
अर्थ: इस कवच का ऋषि (प्रणेताः) नारद माने जाते हैं; छन्द अनुष्टुप् है; देवता हरिद्रा गणपति हैं; बीज—‘गं’, शक्ति—‘ह्रीं’, कीलक—‘क्लीं’; प्रयोग—सफलता और विघ्न‑नाश हेतु।
ध्यायेत् पीताम्बरं देवम् पीताभं पीतकुण्डलम्।
पीतचन्दन‑लिप्ताङ्गं पीतपुष्पैः सुशोभितम्॥
अर्थ: पीताम्बर‑धारी, पीतवर्ण, पीले कुण्डल, पीत‑चन्दन से विभूषित और पीले पुष्पों से शोभित गणेश का ध्यान करें।
एकदन्तं चतुर्बाहुं पासाङ्कुशधरं विभुम्।
मोदकाक्षत‑पुष्पाद्यैः पूजितं वरदं सदा॥
अर्थ: एकदन्त, चार भुजाओं वाले, पाश‑अंकुशधारी, मोदक‑अक्षत‑पुष्प आदि से पूजित, सदा वरदान देने वाले प्रभु का ध्यान करें।

3) हरिद्रा गणेश कवचम् — श्लोक + हिन्दी अर्थ

(लोक‑प्रचलित पाठ का संकलन—अंग‑रक्षा/दिक्‑रक्षा/फलश्रुति सहित)

श्री गणेशाय नमः।
गं ह्रीं क्लीं हरिद्रेति जपेन्नित्यं यतः सदा।
तस्य वश्यं जगत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्॥ 1 ॥
अर्थ: जो साधक ‘गं ह्रीं क्लीं हरिद्रेति’ मंत्र का नित्य जप करता है, उसके वश में संपूर्ण जगत—सचराचर सहित त्रैलोक्य आ जाता है (अर्थात् कार्य‑सिद्धि सुगम होती है)।
हरिद्रा‑कुङ्कुमैर्लिप्तं पीताम्बरधरं विभुम्।
भजे सिद्धिविनायकं सर्वाभीष्टप्रदं विभुम्॥ 2 ॥
अर्थ: हरिद्रा‑कुंकुम से अर्चित, पीताम्बरधारी सिद्धिविनायक—जो सब अभिलाषित फल देते हैं—मैं उनकी भक्ति करता हूँ।
कवचं शृणु मे देवि सर्वरक्षाकरं शुभम्।
यानि क्यानि च पापानि नश्यन्ति कवचस्य तत्॥ 3 ॥
अर्थ: (नारद/देवी को संबोधन) यह शुभ कवच सुनो—जो सर्वरक्षा करता है; इसके पाठ से अनेक पाप‑बाधाएँ क्षीण होती हैं।
ललाटं पातु मे नित्यं हरिद्रो हरिनायकः।
भालं पातु सदा शान्तो विश्ववन्द्यो विनायकः॥ 4 ॥
अर्थ: हरिद्रा‑वर्ण गणेश मेरा ललाट/माथा सदा रक्षा करें; शान्त, विश्वपूज्य विनायक भाल की रक्षा करें।
नेत्रे पातु गणाधीशो कर्णौ पातु गणाधिपः।
नासिकां पातु मे देवो मूर्धानं सिद्धिदायकः॥ 5 ॥
अर्थ: गणाधीश मेरी आँखों की, गणाधिपति कानों की, देवता नासिका की, और सिद्धि‑दाता शिरोभाग की रक्षा करें।
वक्त्रं पातु वरः श्रीमान् दन्तं पातु गणेश्वरः।
ग्रीवां मे पातु विघ्नेशो हृदयं वक्रतुण्डकः॥ 6 ॥
अर्थ: मुख की रक्षा वरद श्रीगणेश करें; दाँत/एकदन्त की रक्षा गणेश्वर करें; ग्रीवा (गला) की विघ्नेश, और हृदय की वक्रतुण्ड रक्षा करें।
स्कन्धौ पातु गजाननः करौ पातु गणाधिपः।
नाभिं पातु गणेशो मे कटिं पातु गिरीसुतः॥ 7 ॥
अर्थ: दोनों कन्धों की रक्षा गजानन, दोनों भुजाओं की गणाधिप, नाभि की गणेश और कटि/कमर की रक्षा पार्वतीनन्दन करें।
ऊरू पातु महायोगी जानुनी विघ्ननाशनः।
जङ्घे पातु सदानन्दः गुल्फौ पातु सुशोभनः॥ 8 ॥
अर्थ: जाँघों की रक्षा महायोगी, घुटनों की विघ्ननाशक, पिंडलियों की सदानन्द और टखनों की सुशोभित गणेश करें।
पादौ पातु सदा ऋद्धिः सिद्धिश्चेवाङ्गसम्मिता।
सर्वाङ्गं पातु मे नित्यं हरिद्रा‑गणनायकः॥ 9 ॥
अर्थ: चरणों की रक्षा ऋद्धि‑देवी, अंग‑अंग की सिद्धि‑देवी करें; और सम्पूर्ण देह की हरिद्रा‑गणनायक सदा रक्षा करें।
पूर्वे पातु गणाध्यक्षो दक्षिणे पातु नायकः।
पश्चिमे पातरक्षेशो उत्तरस्यां गणेश्वरः॥ 10 ॥
अर्थ: पूरब दिशा में गणाध्यक्ष, दक्षिण में नायक, पश्चिम में रक्षेश (विघ्नेश), और उत्तर में गणेश्वर रक्षा करें।
ईशान्यां पातु विघ्नेशो नैऋत्यां पातु मंदगः।
वायव्ये पातु वक्रेशो अगस्त्ये सिद्धिविनायकः॥ 11 ॥
अर्थ: ईशान कोण में विघ्नेश, नैऋत्य में शुभ‑विनायक, वायव्य में वक्रेश, और आग्नेय/अवक्ष (अगस्त्य) कोण में सिद्धिविनायक रक्षा करें।
ऊर्ध्वं पातु गणाधीशो अधस्ताद् विघ्ननायकः।
अन्तर्बाह्ये सदा पातु हरिद्रा‑गणनायकः॥ 12 ॥
अर्थ: ऊपर की ओर गणाधीश, नीचे विघ्ननायक, और भीतर‑बाहर हर स्थान पर हरिद्रा‑गणनायक रक्षा करें।
राज्ये व्यापारकर्मण्यां यात्रायां शत्रुसंकटे।
दुर्व्याधिषु महाघोरे पातु मां हरिद्रो विभुः॥ 13 ॥
अर्थ: राज्य/नौकरी, व्यापार‑कार्य, यात्रा, शत्रु‑कठिनाइयों, तथा रोग‑कष्टों में हरिद्राभ गणेश मेरी रक्षा करें।
दुर्भिक्षे दाहकाले च दुष्टराजभयेऽपि च।
सर्वत्र जयदः पातु हरिद्रो विघ्ननाशनः॥ 14 ॥
अर्थ: अकाल/सूखा, दावानल/आग, दुष्ट‑शासन‑भय—सभी में विघ्ननाशक हरिद्रा गणेश विजय और सुरक्षा दें।
इदं कवचमत्युग्रं सर्वसिद्धिप्रदं शुभम्।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय तस्य सिद्धिर्न संशयः॥ 15 ॥
अर्थ: यह अत्यन्त शक्तिशाली और शुभ कवच सभी सिद्धियाँ देने वाला है; जो इसे प्रतिदिन प्रातः पढ़ता है, उसे सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है।
गृहक्षेत्रधनारोग्यसन्तान‑यशोवृद्धये।
जपेन्नित्यं स श्रद्धाभिः हरिद्रा‑गणपौ नमः॥ 16 ॥
अर्थ: गृह/भूमि, धन, आरोग्य, सन्तान और यश की वृद्धि के लिए श्रद्धा से हरिद्रा‑गणपति का नित्य जप‑पाठ करें।
इति श्री‑हरिद्रा‑गणपति‑कवचं सम्पूर्णम्॥
अर्थ: इस प्रकार श्री हरिद्रा गणपति कवच समाप्त होता है।
टिप्पणी: क्षेत्र/ग्रन्थानुसार कुछ पाठों में ‘न्यास‑श्लोक/ऋद्धि‑सिद्धि स्तुति’/‘फलश्रुति’ की 1–2 अतिरिक्त पंक्तियाँ भी जोड़ दी जाती हैं।

4) लाभ (Labh / Benefits)

  • विघ्न‑निवारण: नए कार्य/व्यापार/शिक्षा/यात्रा में मानसिक‑बाधा और बाहरी विघ्न घटते हैं।
  • समृद्धि‑वृद्धि: हरिद्रा‑स्वरूप लक्ष्मी‑तत्त्व से सम्बद्ध; अनुशासनपूर्वक पाठ से धन‑चक्र/कैश‑फ्लो स्थिर होता है (प्रेरक प्रभाव)।
  • आत्म‑विश्वास: ‘दिक्‑रक्षा’ का मानस कवच भय/दुविधा कम कर निर्णय‑क्षमता बढ़ाता है।
  • स्वास्थ्य‑अनुशासन: नियमित जप/स्वर‑उच्चारण से श्वास‑लय सुधरती है; तनाव‑स्तर घटता है।
  • संबंध‑सौहार्द: गणेश‑तत्त्व वाणी‑मृदुता/समन्वय सिखाता है—परिवार/टीम में तालमेल।

नोट: लाभ श्रद्धा + नियमितता + सत्कर्म पर आधारित हैं; अंधविश्वास नहीं—उचित प्रयासों के साथ पाठ करें।

5) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान; पीतवर्ण वस्त्र/आसन हो तो शुभ।
  2. दीप/अर्घ्य: घी/तिल का दीप; शुद्ध जल; हल्दी‑कुंकुम/पीले पुष्प/दूर्वा उपलब्ध हों तो अर्पित करें।
  3. मंत्र‑जप: ॐ गं गणपतये नमः — 108; चाहें तो गं ह्रीं क्लीं हरिद्रे नमः — 54/108।
  4. कवच‑पाठ: ऊपर दिये क्रम से; अंत में शांति‑पाठ।
  5. आरती‑प्रसाद: “जय गणेश देवा”; मोदक/लड्डू/गुड़‑चने का नैवेद्य।
⏱️ समय‑सुझाव: बुधवार/चतुर्थी/संकष्टी, नये प्रोजेक्ट/डील/इंटरव्यू से पहले विशेष शुभ; पर दैनिक 5–10 मिनट भी पर्याप्त।

6) मंत्र‑सूची

बीज‑मंत्र

गं (गणेश बीज)

मुख्य‑मंत्र

ॐ गं गणपतये नमः (108)

हरिद्रा‑मंत्र

गं ह्रीं क्लीं हरिद्रे नमः (54/108)

गणेश‑गायत्री

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात्॥

7) गणेश आरती (संक्षेप)

जय गणेश देवा, जय गणेश देवा… (प्रचलित पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें)

8) नियम‑सुझाव

  • सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/कटु‑वाणी/आलस्य से दूरी।
  • नियमितता—कम समय में भी प्रतिदिन अभ्यास; ‘दूर्वा‑अर्पण’ संभव हो तो बुधवार/चतुर्थी को करें।
  • सेवा/दान—विद्यार्थियों की सहायता, अन्न/जल‑दान, पीले वस्त्र/अन्न का दान (क्षमता अनुसार)।

9) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या हरिद्रा गणेश कवचम् का पाठ व्यापार/इंटरव्यू से पहले कर सकते हैं?

हाँ—विघ्न‑निवारण और आत्मविश्वास हेतु यह लोकप्रिय है। संक्षेप में 3/5 श्लोक भी पढ़ सकते हैं।

Q2. क्या बिना सामग्री केवल पाठ मान्य है?

हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/जल से भी पाठ पूर्ण है।

Q3. शुद्ध उच्चारण अनिवार्य?

सीखते हुए सुधारें—भय न रखें; अर्थ पर ध्यान और नियम‑पालन अधिक महत्त्वपूर्ण है।

10) नोट्स

परंपरा‑सूचक: ग्रन्थ/क्षेत्रानुसार शब्द‑भेद/अतिरिक्त श्लोक मिल सकते हैं—अपने गुरु/परम्परा के पाठ को प्राथमिकता दें।

उद्देश्य: सांस्कृतिक/आध्यात्मिक जानकारी; चिकित्सकीय/कानूनी/वित्तीय परामर्श नहीं।

गणपति बप्पा मोरया
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