Ganesh Ashtakam

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र — हिन्दी अर्थ, लाभ, जप‑विधि, मंत्र, आरती

श्री गणेशाष्टक स्तोत्र — पाठ + हिन्दी अर्थ सहित

1) श्री गणेशाष्टकम् — सम्पूर्ण पाठ

सर्वे उचुः ।
यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा
यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते ।
यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नं
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ १ ॥
यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेत‑त्तथाऽब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता ।
तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याः
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ २ ॥
यतो वह्निभानू भवो भूर्जलं च
यतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः ।
यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घाः
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ३ ॥
यतो दानवाः किन्नरा यक्षसङ्घा
यतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च ।
यतः पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ४ ॥
यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षो‑र्यतः सम्पदो भक्तसन्तोषदाः स्युः ।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ५ ॥
यतः पुत्रसम्पद्यतो वाञ्छितार्थो
यतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः ।
यतः शोकमोहौ यतः काम एव
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ६ ॥
यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूव
धराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः ।
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ७ ॥
यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः
सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति ।
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं
सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ८ ॥
॥ फलश्रुति ॥
श्रीगणेश उवाच ।
पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः ।
त्रिसन्ध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वकार्यं भविष्यति ॥ ९ ॥

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् ।
अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात् ॥ १० ॥

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने ।
स मोचयेद्बन्धगतं राजवध्यं न संशयः ॥ ११ ॥

विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् ।
वाञ्छिताँल्लभते सर्वानेकविंशतिवारतः ॥ १२ ॥

यो जपेत्परया भक्त्या गजाननपरो नरः ।
एवमुक्त्वा ततो देवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः ॥ १३ ॥

इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे श्रीगणेशाष्टकम् ।

2) हिन्दी अर्थ (श्लोक‑वार, सरल‑भावार्थ)

श्लोक 1
सभी भक्त कहते हैं—जिस परमेश्वर से अनन्त जीव उत्पन्न हुए, जो स्वयं निर्गुण होते हुए भी सारे गुणों का मूल हैं, जिनसे सारा जगत् तीनों गुणों (सात्त्विक‑राजस‑तामस) सहित प्रकाशित होता है—उन गणेश को हम नमस्कार और भजन करते हैं।
श्लोक 2
जिससे यह समस्त जगत प्रकट हुआ; जो ब्रह्मा (कमलासीन), विष्णु (विश्व व्यापी/पालक) और समस्त देव‑समुदाय व मनुष्यों के स्वामी‑रक्षक हैं—उन गणेश को नमस्कार।
श्लोक 3
जिनसे अग्नि‑सूर्य‑शंकर, पृथ्वी‑जल, सागर‑चन्द्रमा, आकाश‑वायु, तथा स्थावर‑जंगम (पेड़‑पौधे सहित) सब कुछ प्रकट हुआ—उन गणेश को नमन।
श्लोक 4
जिनसे दानव‑किन्नर‑यक्ष, चारण‑गजेन्द्र‑वन्यजीव, पक्षी‑कीट और वनस्पतियाँ उत्पन्न हुईं—उसी आदिकारण गणेश को प्रणाम।
श्लोक 5
जिनसे बुद्धि (विवेक) प्राप्त होती है, अज्ञान का नाश होता है, मुमुक्षु को मुक्ति की प्रेरणा मिलती है; जो भक्त का संतोष, विघ्न‑नाश और कार्य‑सिद्धि के कारण हैं—उन विघ्नहर्ता को नमन।
श्लोक 6
जिनसे पुत्र‑सम्पदा और वांछित फल प्राप्त होते हैं; जो अभक्तों के विघ्नों का भी नाश कर देते हैं; जिनके स्मरण से शोक‑मोह‑कामादि दोष दूर होते हैं—ऐसे गणनाथ को वंदन।
श्लोक 7
जिनकी अनन्त शक्ति से शेषनाग पृथ्वी धारण करने में समर्थ है और जो अनेक रूपों से जगत् का भार वहन करते हैं; जिनसे अनेकों स्वर्गलोक प्रतिष्ठित हैं—उन विघ्नराज को प्रणति।
श्लोक 8
जिनके सत्य स्वरूप को वेदवाणियाँ भी मन से पकड़ नहीं पातीं और ‘नेति‑नेति’ कह कर ही उनका संकेत देती हैं; जो परब्रह्म‑चिदानन्दरूप हैं—उन श्रीगणेश को हम निरन्तर प्रणाम करते हैं।
फलश्रुति (9–13)
(1) तीन दिन तक त्रिसन्ध्या में पाठ करने से कार्य‑सिद्धि; (2) चतुर्थी को आठ बार जपने से अष्ट‑सिद्धियाँ; (3) एक माह तक प्रतिदिन दस बार जपने से बंदी‑मोचन तक का फल; (4) विद्या, पुत्र, और अन्य मनोवांछित फल भक्ति‑पूर्वक जपने से प्राप्त होते हैं।

3) फलश्रुति (शास्त्रीय लाभ — संक्षेप)

  • त्रिसन्ध्या‑त्रिदिन जप: सामान्य कार्य‑सिद्धि का वचन।
  • चतुर्थी‑अष्टवार जप: अष्ट‑सिद्धि की प्राप्ति।
  • मास‑भर दैनिक 10 जप: बाधा‑मोचन/बंधन‑विमोचन का फल।
  • काम्य फल: विद्या, पुत्र‑प्राप्ति तथा अन्य वांछित सिद्धियाँ।

टिप्पणी: फलश्रुति परम्परागत आस्थागत वक्तव्य हैं; फल श्रद्धा, नियम, सत्कर्म व गुरुपरम्परा के अनुसार।

4) लाभ (Labh / Practical Benefits)

  • एकाग्रता व बुद्धि‑वृद्धि: ‘बुद्धि‑प्रदाता’ गणेश के स्मरण से निर्णय‑क्षमता बढ़ती है।
  • विघ्न‑निवारण: कार्यारम्भ से पहले जप/पाठ बाधाएँ घटाता है।
  • धैर्य व सकारात्मकता: शोक‑मोह‑काम पर नियंत्रण का अभ्यास।
  • समृद्धि‑संतोष: कृतज्ञता‑भाव से मन स्थिर, रिश्तों में मधुरता।
  • नित्य साधना का अनुशासन: त्रिसन्ध्या/चतुर्थी अनुशासन से जीवन‑शैली में नियम आता है।

5) जप/पाठ‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान/शुद्धि के बाद शान्ति‑विघ्ननाश हेतु संकल्प।
  2. आसन‑दीप: पीत/साफ वस्त्र, घी/तिल का दीप, गणेश‑चित्र/प्रतिमा के समक्ष।
  3. ध्यान: “शुक्लाम्बरधरं विष्णुं…” अथवा “वक्रतुण्ड महाकाय…” से प्रारम्भ।
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर के 8 श्लोक + फलश्रुति; चाहें तो 3, 8, 11 बार जप।
  5. जप‑संयोजन: “ॐ गं गणपतये नमः” / “गणेश गायत्री” 108 जप।
  6. आरती‑शांति: “जय गणेश देवा”; अंत में “ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः…”
⏱️ समय: दैनिक प्रातः/संध्या; विशेष—बुधवार, विनायक/संकष्टी चतुर्थी, गणेशोत्सव।

6) मंत्र‑सूची

बीज‑मंत्र

ॐ गं गणपतये नमः (108)

गणेश‑गायत्री

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥

प्रारम्भ‑श्लोक

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

7) गणपति आरती (संक्षेप)

8) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या यह ‘सर्वे उचुः’ वाला पूरा गणेशाष्टक है?

हाँ—ऊपर 1–8 श्लोक + पारम्परिक फलश्रुति (9–13) संकलित हैं।

Q2. किस स्रोत से पाठ लिया गया?

लोक‑प्रचलित देवनागरी पाठ पर आधारित। मुद्रण/परम्परा के अनुसार सूक्ष्म भेद सम्भव।

Q3. क्या बिना विधि के केवल पाठ कर सकते हैं?

निश्चय ही—भाव सर्वोपरि। दीप/जल/नैवेद्य सम्भव हो तो उत्तम।

9) नोट्स

परम्परा‑सूचक: श्लोक/पद‑भेद क्षेत्र, लिप्यन्तरण और ग्रन्थ‑संस्करण अनुसार मिल सकते हैं; अपने गुरु‑परम्परा का पाठ प्राथमिक।

श्री गणेशाय नमः
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