Dashrath Krit Shani Stotra

दशरथ कृत शनि स्तोत्र - अर्थ और लाभ सहित | शनि देव की स्तुति

दशरथ कृत शनि स्तोत्र (अर्थ और लाभ सहित)

शनि देव की कृपा प्राप्त करने हेतु श्री दशरथ जी द्वारा रचित अद्भुत स्तोत्र

📜 पाठ करने की विधि

शनिवार के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शनि देव के सामने दीपक जलाएं और तिल के तेल का दीया जलाना विशेष शुभ होता है। आसन पर बैठकर श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करें।

🌑 शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥
कृष्णवर्ण वाले, नीले शरीर वाले, शिवजी के समान कंठ वाले,
कालाग्नि के समान रूप वाले और कृतान्त (यम) के समान आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। उनके कृष्ण वर्ण, नीले शरीर, शिव के समान कंठ, कालाग्नि के समान रूप और यम के समान स्वरूप को प्रणाम किया जा रहा है।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥
निर्मांस (मांसरहित) शरीर वाले, लंबी दाढ़ी और जटाओं वाले,
विशाल नेत्रों वाले, सूखे उदर वाले और भयानक स्वरूप वाले आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन है। उनका शरीर मांसरहित है, दाढ़ी और जटाएं लंबी हैं, नेत्र विशाल हैं, पेट सूखा हुआ है और उनका स्वरूप भयानक है।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥
स्थूल अंगों वाले, मोटे रोम (बाल) वाले,
लंबे और सूखे शरीर वाले, काली दाढ़ों वाले आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव के शरीर की अन्य विशेषताओं का वर्णन किया गया है। उनके अंग स्थूल हैं, शरीर के बाल मोटे हैं, शरीर लंबा और सूखा हुआ है तथा उनकी दाढ़ें काली हैं।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥
गहरी आंखों वाले, जिन्हें देखना कठिन है,
भयानक, रौद्र रूप वाले, भीषण स्वरूप वाले और कपाल धारण करने वाले आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव की भयानक और रौद्र मूर्ति का वर्णन किया गया है। उनकी आंखें गहरी हैं, उन्हें देखना कठिन है, उनका रूप भयानक और भीषण है तथा वे कपाल धारण करते हैं।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च॥
सब कुछ भक्षण करने वाले, झुर्रियों वाले मुख वाले आपको नमस्कार है।
हे सूर्यपुत्र! आपको नमस्कार है, हे भास्कर पुत्र! भय देने वाले आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव के सर्वभक्षी स्वरूप और उनके झुर्रियों वाले मुख का वर्णन है। साथ ही उन्हें सूर्यपुत्र और भास्कर नंदन कहकर संबोधित किया गया है तथा उनके भयदायक स्वरूप को प्रणाम किया गया है।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते॥
नीचे की ओर देखने वाले आपको नमस्कार है, हे संवर्तक! आपको नमस्कार है।
धीमी गति से चलने वाले आपको नमस्कार है, हे निर्दोष! आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। वे नीचे की ओर देखने वाले हैं, संवर्तक (प्रलय के समय) हैं, मंदगति से चलते हैं और निर्दोष हैं।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥
तप से दग्ध शरीर वाले, सदैव योग में लीन रहने वाले,
सदैव क्षुधा (भूख) से पीड़ित और कभी तृप्त न होने वाले आपको नमस्कार है।
इस श्लोक में शनि देव की तपस्या और योगनिष्ठा का वर्णन किया गया है। उनका शरीर तप से दग्ध हुआ है, वे सदैव योग में लीन रहते हैं, सदैव भूख से पीड़ित रहते हैं और कभी तृप्त नहीं होते।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥
ज्ञानरूपी नेत्रों वाले आपको नमस्कार है, हे कश्यपपुत्र के पुत्र!
आप प्रसन्न होने पर राज्य देते हैं और क्रोधित होने पर तत्काल छीन लेते हैं।
इस श्लोक में शनि देव के ज्ञानरूपी नेत्रों और उनकी शक्ति का वर्णन किया गया है। वे कश्यप ऋषि के पुत्र (सूर्य) के पुत्र हैं। जब वे प्रसन्न होते हैं तो राज्य देते हैं और जब क्रोधित होते हैं तो तत्काल सब कुछ छीन लेते हैं।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥
देव, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और उरग (सर्प),
आपके द्वारा देखे गए सभी का समूल नाश हो जाता है।
इस श्लोक में शनि देव की क्रोधित दृष्टि के प्रभाव का वर्णन किया गया है। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और सर्प जाति के प्राणी - यदि शनि देव की क्रोधित दृष्टि उन पर पड़ जाए तो उनका समूल नाश हो जाता है।
प्रसाद कुरुमे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:॥
हे देव! मेरे ऊपर प्रसाद करें, मैं आपकी शरण में आया हूं।
इस प्रकार स्तुति किए जाने पर महाबली ग्रहराज शनि प्रसन्न हुए।
इस श्लोक में दशरथ जी शनि देव से प्रसन्न होने की प्रार्थना करते हैं और स्वयं को उनकी शरण में बताते हैं। इस स्तुति से महाबली ग्रहराज शनि प्रसन्न हुए।

✨ शनि स्तोत्र पाठ के लाभ

  • शनि की साढ़ेसाती और ढैया के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है
  • कर्मों का फल अच्छा मिलने लगता है और जीवन में स्थिरता आती है
  • नौकरी, व्यवसाय और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है
  • विवादों और मुकदमों में सफलता मिलती है
  • शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और उनका भय समाप्त होता है
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है
  • पारिवारिक कलह समाप्त होती है और सुख-शांति का वातावरण बनता है
  • आत्मविश्वास बढ़ता है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है
शनि स्तोत्र के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: शनि स्तोत्र का पाठ शनिवार के दिन प्रातः काल या सायंकाल के समय करना सर्वाधिक फलदायी माना जाता है। विशेष रूप से शनि की साढ़ेसाती या ढैया के प्रभाव में होने पर नियमित रूप से इसका पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: शनि स्तोत्र का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

उत्तर: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से शनि दोष शांत होते हैं, कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं, आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और जीवन में स्थिरता आती है। शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

प्रश्न: क्या महिलाएं शनि स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, महिलाएं भी शनि स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं। इसके लिए कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। केवल मासिक धर्म के दौरान कुछ लोग पाठ से परहेज करते हैं, लेकिन यह व्यक्तिगत मान्यता का विषय है।

🌿 नोट: इस स्तोत्र का नियमित पाठ शनि दोष निवारण में अत्यंत प्रभावी माना गया है। पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है।

Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url