Mayuresh Stotra

श्री मयूरेश स्तोत्र — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित (Labh, Puja Vidhi)

श्री मयूरेश स्तोत्र (हिन्दी अर्थ सहित) पूर्ण श्लोक देवनागरी + Labh

1) श्री मयूरेश स्तोत्र — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित

(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव। अर्थ—सरल हिन्दी भावार्थ।)

ब्रह्मोवाच —
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 1 ॥
अर्थ: ब्रह्माजी बोले—जो पुराण पुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हैं; जो माया के स्वामी और दुर्विभाव्य (अगम) हैं—उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ।
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 2 ॥
अर्थ: जो परात्पर, चिदानन्द स्वरूप, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित; जो गुणातीत भी हैं और लोककल्याण हेतु गुणमय भी—उन मयूरेश को नमस्कार।
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 3 ॥
अर्थ: जो स्वेच्छा से जगत की सृष्टि‑पालन‑संहार करते हैं; सर्वविघ्नहारी देव—मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ।
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 4 ॥
अर्थ: जो अनेक दैत्यों का संहारक हैं, नाना रूप धारण करते हुए विविध अस्त्र‑शस्त्र धारण करते हैं—उन मयूरेश को भक्तिभाव से प्रणाम।
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 5 ॥
अर्थ: इन्द्र आदि देवताओं द्वारा दिन‑रात जिनका स्तवन होता है, जो सत्‑असत् तथा व्यक्त‑अव्यक्त सभी रूपों के अधिष्ठाता हैं—उन मयूरेश को नमस्कार।
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 6 ॥
अर्थ: जो सर्वशक्तिमान, सर्वरूपधारी, व्यापक विभु हैं, और समस्त विद्याओं के प्रवक्ता/आदिगुरु हैं—उन भगवान मयूरेश को नमन।
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 7 ॥
अर्थ: जो पार्वती‑नन्दन हैं, शिव‑आनन्द का विस्तार करते हैं और भक्तों को नित्य आनन्द प्रदान करते हैं—उन मयूरेश को सादर प्रणाम।
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 8 ॥
अर्थ: जिनका मुनि ध्यान करते, जिनकी मुनि स्तुति करते और जो मुनियों की कामनाएँ पूर्ण करते हैं; जो समष्टि‑व्यष्टि रूप हैं—उन मयूरेश को प्रणाम।
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 9 ॥
अर्थ: जो समस्त अज्ञान का नाशक, सर्वज्ञान प्रदाता, पवित्र और सत्य‑ज्ञानमय हैं—उन मयूरेश को नमस्कार।
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 10 ॥
अर्थ: जो अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों के नायक, जगदीश्वर और अनन्त वैभव‑सम्पन्न व्यापक विष्णु‑तत्त्व के समान हैं—उन मयूरेश को नमस्कार।
मयूरेश उवाच —
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥ 11 ॥
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥ 12 ॥
अर्थ: मयूरेश बोले—यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला, समस्त पापों का नाशक, मनुष्यों की सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला और सभी उपद्रवों का नाश करने वाला है। सात दिनों के पाठ से कारागारबद्ध जन की मुक्ति भी संभव बतायी गयी है। यह शुभ स्तोत्र मानसिक चिन्ता (आधि) व शारीरिक रोग (व्याधि) का हरण करता है और भुक्ति‑मोक्ष प्रदान करता है।
स्रोत‑सूचना: पाठ के श्लोक लोकप्रिय परम्परा में इसी क्रम से प्रचलित हैं; विभिन्न मुद्रणों में लघु भेद मिल सकते हैं।

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • विघ्न‑निवारण व मानसिक शान्ति: “सर्वविघ्नहरं देवं…”—कार्य‑सिद्धि, एकाग्रता।
  • आत्म‑बल व विवेक: “सत्यज्ञानमयं…”—निर्णय‑क्षमता, नकारात्मकता में कमी।
  • आरोग्य‑सहाय: सात‑दिवसीय पाठ का संकेत—आधि‑व्याधि शमन का भाव।
  • समृद्धि व कृपा‑प्राप्ति: “सर्वकामप्रदं”—धन‑धान्य/सौभाग्य/सद्बुद्धि।
  • भुक्ति‑मोक्ष मार्ग: कर्तव्य‑निष्ठा के साथ अन्तःशुद्धि का विकास।

नोट: लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सत्कर्म से प्रकट होते हैं।

3) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर बैठें; गणेश‑ध्यान करें—विघ्न‑नाश/विवेक हेतु।
  2. दीप/नैवेद्य: घी/तिल का दीप; दूर्वा, शुद्ध जल, मोदक/फल अर्पित करें।
  3. मंत्र‑जप: ॐ गं गणपतये नमः — 108 बार।
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिये सभी श्लोक क्रम से; अर्थ पढ़कर मन में धारण करें।
  5. आरती‑प्रसाद: “जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति”; अंत में “शान्तिपाठ—ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”।
⏱️ समय‑सुझाव: चतुर्थी/संकष्टी/बुधवार/गणेशोत्सव पर विशेष; पर दैनिक 5–10 मिनट भी शुभ।

4) मंत्र‑सूची

बीज‑मंत्र

ॐ गं गणपतये नमः (108)

वक्रतुंड

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

गणेश‑गायत्री

"ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात॥

5) गणेश आरती (संक्षेप)

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति… (पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें)

6) नियम‑सुझाव

  • सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/कटु‑वाणी/आलस्य से दूरी।
  • नियमितता प्राथमिक—कम समय में भी प्रतिदिन अभ्यास।
  • सेवा/दान—अन्न/जल/विद्या‑दान; स्वच्छता व करुणा।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या मयूरेश स्तोत्र का पाठ रोज़ कर सकते हैं?

हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त; चतुर्थी/संकष्टी/बुधवार को विशेष लाभ।

Q2. क्या उपवास ज़रूरी है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।

Q3. केवल अर्थ पढ़ना ठीक है?

देवनागरी पाठ मुख्य; अर्थ से समझ पुष्ट होती है—धीरे‑धीरे उच्चारण सीखें।

Q4. भूल/उच्चारण गलत हो जाए तो?

भाव सर्वोपरि; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।

8) नोट्स

परंपरा‑सूचक: पंक्ति‑भेद क्षेत्र/मुद्रणानुसार मिल सकते हैं। अपने गुरु/परम्परा में प्रचलित पाठ को प्राथमिकता दें।

गणपति बाप्पा मोरया
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