Kanakadhara Stotra

कनकधारा स्तोत्र (arth सहित) | जप विधि, लाभ, नियम
कनकधारा स्तोत्र (arth सहित) पूर्ण पाठ, विधि व लाभ

कथा-परम्परा के अनुसार, श्री आदि शंकराचार्य ने दरिद्र ब्राह्मणी के कल्याण हेतु यह स्तोत्र रचा। “कनकधारा” का भाव अर्थ है — कृपा-कटाक्ष की स्वर्ण-धारा। नीचे आपको मूल संस्कृत पाठ, और सरल हिन्दी अर्थ साथ-साथ मिलेंगे, साथ ही जप-विधि, लाभ, नियम, सावधानियाँ

सामग्री सूची (Table of Contents)

  1. मूल पाठ (संस्कृत) + अर्थ
  2. वैरिएंट श्लोक
  3. जप-विधि (कदम-दर-कदम)
  4. लाभ (Benefits)
  5. नियम और सावधानियाँ
  6. प्रश्नोत्तर (FAQ)

कनकधारा स्तोत्र — मूल संस्कृत पाठ, सरल हिन्दी अर्थ

॥ १ ॥
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
अर्थ: भगवान विष्णु के रोमांच को भूषण की तरह धारण करने वाली, तमाल-वृक्ष पर भृंगिनी की शोभा समान, जिनके कटाक्ष से समस्त ऐश्वर्य प्रकट होता है—ऐसी मंगलमयी देवी (लक्ष्मी) मेरे लिए मंगल दायिनी हों।
॥ २ ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
अर्थ: जिनकी शरमिली, प्रेमपूर्ण दृष्टि भगवान पर बार-बार ठहरती-लौटती है; जो कमल पर मधुकरों की पंक्तियों-सी रम्य लगती है—समुद्र-तनया लक्ष्मी मुझे समृद्धि प्रदान करें।
॥ ३ ॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष-
-मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्थ-
-मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
अर्थ: जिनके हल्के से कटाक्ष से देवताओं का राज्य-वैभव भी प्राप्त हो; जो स्वयं भगवान को भी परम आनन्द देने वाली हैं—उन इन्दीवर-नयन वाली लक्ष्मी का शुभ कटाक्ष मुझ पर ठहरे।
॥ ४ ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द-
-मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
अर्थ: जिनकी पलकें आधी मुँदी हैं, जिनका नेत्र-योग निरन्तर भगवान में लीन है—ऐसी क्षीरसागर-वासिनी लक्ष्मी मेरी श्री-वृद्धि का कारण बनें।
॥ ५ ॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
अर्थ: जिनकी कटाक्ष-माला स्वयं भगवान के लिए भी कामना-पूर्ति कर दे; जो हरि के वक्षस्थल पर कौस्तुभ से सुशोभित नीली माला-सी प्रकाशित हैं—वे कमलालय मुझे कल्याण दें।
॥ ६ ॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे-
-र्धाराधरे स्फुरति या तटिदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
अर्थ: मेघ-गुच्छ समान श्यामा-सीनी, विश्व-माता, भार्गव-कुल-प्रिया—उनकी ज्योति मेरे लिए मंगल प्रदान करे।
॥ ७ ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावा-
-न्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
अर्थ: जिनके प्रभाव से मनमथ को भी मंगल-पद मिला—समुद्र-कन्या लक्ष्मी का वह कोमल, मन्द-कटाक्ष मुझ पर भी पड़े।
॥ ८ ॥
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा-
-स्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
अर्थ: प्रभु-प्रिया लक्ष्मी के करुणा-जल से मेरे दुष्कर्मों की तपन शान्त हो; द्रव्य-धारा (समृद्धि) भी कृपा-वायु से प्रवाहित हो।
॥ ९ ॥
इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
-दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
अर्थ: जिनकी दया-दृष्टि से श्रेष्ठ-श्रेष्ठजन स्वर्गीय पद भी पा लेते हैं—उनकी कमल-प्रभा-सी दृष्टि मेरे जीवन में पोषण और सम्पन्नता बढ़ाए।
॥ १० ॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
अर्थ: वाणी-देवी, गरुड़-ध्वज की सुन्दरी, शाकम्भरी, शशि-शेखर की प्रिया—जो सृष्टि-स्थिति-संहार में स्थित हैं—ऐसी चिर-युवा शक्ति को नमस्कार।
॥ ११ ॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥
अर्थ: वेद-माता, शुभ-कर्म-फलदायिनी, रमणीय गुण-सागर, कमल-निवासिनी शक्ति—पुरुषोत्तम की प्रिया—आपको कोटि प्रणाम।
॥ १२ ॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
अर्थ: कमल-मुखी, क्षीर-सागर-सम्भवा, सोम-अमृत-सम स्वभावों वाली, नारायण-वल्लभे—आपको नमस्कार।
॥ १३ ॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥
अर्थ: हे कमलोचना! आपकी वन्दना से इन्द्रियों को आनन्द, राज्य-समृद्धि और पाप-क्षय—ये सभी फल निरंतर मुझे प्राप्त हों।
॥ १४ ॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
सन्तनोति वचनाङ्गमानसै-
-स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥
अर्थ: आपके कटाक्ष-उपासना-विधि से भक्त के वचन-कर्म-मन सब पवित्र होते हैं और समस्त अर्थ-सम्पदा बढ़ती है—ऐसी हृदयेश्वरी का मैं निरन्तर भजन करूँ।
॥ १५ ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥
अर्थ: कमल-आसन, कमल-हस्त, श्वेत वस्त्र-गन्ध-माल्य से शोभित—हे हरि-वल्लभे! हे त्रिभुवन-श्री प्रदान करने वाली! मुझ पर प्रसन्न हों।
॥ १६ ॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट-
-स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
-लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥
अर्थ: स्वर्ण-कलशों की धाराओं से स्नात, निर्मल-श्यामा—सभी लोकों के नाथ की गृहिणी, अमृत-सागर-कन्या—ऐसी जगत-जननी को मैं प्रतिदिन प्रातः प्रणाम करता हूँ।
॥ १७ ॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
अर्थ: हे कमले! कमलनयन के प्रिय! अपने करुणा-तरंगित कटाक्ष से मुझ निर्धन, दीन पर कृपा-दृष्टि डालें—मैं आपकी स्वाभाविक दया का प्रथम पात्र बनूँ।
॥ १८ ॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभाजिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
अर्थ: जो लोग वेदमयी, त्रिभुवन-माता रमादेवी का इन स्तुतियों से नित्य स्तवन करते हैं—वे गुणवान और श्रेष्ठ भाग्यशाली बनते हैं; उनका मन पवित्र होता है।

वैरिएंट श्लोक

कई पाठक्रमों में 12वें श्लोक के बाद निम्न “नमोऽस्तु…” श्लोक जोड़े जाते हैं, तथा कुछ परम्पराओं में “बिल्वाटवी…”, “कमलासनपाणिना…”, “अम्भोरुहं…” भी सम्मिलित होते हैं। इच्छानुसार जोड़कर पाठ करें।

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥
अर्थ: स्वर्ण-कमलासन-वासी, भुवन-नायिका, देवों पर दया बरसाने वाली, शार्ङ्गधनु-धर की प्रिया—आपको नमस्कार।
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसिस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥
अर्थ: भृगुनन्दिनी, विष्णु-वक्षःस्थला, कमल-निवासिनी लक्ष्मी, दामोदर-वल्लभे—आपको प्रणाम।
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥
अर्थ: कांति-मूर्ति, कमल-नेत्रा, श्री-समृद्धि-दाता, देव-पूजिता—आपको नमस्कार।
बिल्वाटवीमध्यलसत्सरोजे
सहस्रपत्रे सुखसन्निविष्टाम् ।
अष्टापदाम्भोरुहपाणिपद्मां
सुवर्णवर्णां प्रणमामि लक्ष्मीम् ॥
अर्थ: बिल्व-वाटिका के मध्य सहस्रदल कमल-आसन पर विराजमान, सुवर्णवर्णा लक्ष्मी को प्रणाम।
कमलासनपाणिना ललाटे
लिखितामक्षरपङ्क्तिमस्य जन्तोः ।
परिमार्जय मातरङ्घ्रिणा ते
धनिकद्वारनिवास दुःखदोग्ध्रीम ॥
अर्थ: हे माता! करुणा से मेरे भाग्य-वाक्य की अशुभ पंक्तियाँ मिटा दें और अभाव-दुःख हर लें।
अम्भोरुहं जन्मगृहं भवत्याः
वक्षःस्थलं भर्तृगृहं मुरारेः ।
कारुण्यतः कल्पय पद्मवासे
लीलागृहं मे हृदयारविन्दम् ॥
अर्थ: हे पद्मवासे! मेरा हृदय-कमल आपका लीलागृह बन जाए—ऐसी करुणा करें।

जप-विधि (कदम-दर-कदम)

1) पूर्व-तैयारी

  • स्नान, स्वच्छ पीला/सफ़ेद वस्त्र, पीला आसन।
  • पूर्व/उत्तराभिमुख बैठें; दीप, धूप, जल, पुष्प (कमल/गेंदा/मोगरा) रखें।
  • लक्ष्मी-नारायण या श्रीयंत्र/कमल-चित्र स्थापित करें।

2) संकल्प

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः — आज मैं मंगल और समृद्धि हेतु कनकधारा स्तोत्र का पाठ करता/करती हूँ।”

  • ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं… 11 बार/माला (वैकल्पिक)।
  • स्तव का एकाग्र भाव से सम्पूर्ण पाठ।

3) समय/अवधि

  • प्रातः/सायं सर्वोत्तम; शुक्रवार विशेष फलदायी।
  • इच्छानुसार 11/21/40 दिनों का अनुष्ठान कर सकते हैं।

4) समापन

  • आरती/क्षमा-याचना, परिवार/गृह-कल्याण की कामना।
  • पीली मिठाई/खीर का नैवेद्य; तदनन्तर प्रसाद-वितरण।

उच्चारण शुद्ध न हो तो भी भाव-भक्ति, शालीनता, और नियमितता सर्वोपरि है।

लाभ (Benefits)

परम्परानुसार नियमित, श्रद्धापूर्ण पाठ से—

  • धन-सम्पन्नता व स्थिरता (वित्तीय अवसर, आय के स्रोतों में वृद्धि, अपव्यय पर संयम)।
  • गृह-कल्याण (सौख्य, सौहार्द, सद्भाव, समृद्धि का संचय)।
  • बाधा-शमन (ऋण-क्लेश, बाधाओं में शिथिलता; सत्कर्मों के लिए मार्ग प्रशस्त)।
  • मनोवैज्ञानिक लाभ (कृतज्ञता-भाव, लक्ष्योन्मुखता, सकारात्मक दृष्टि)।
शुक्रवार-उपयुक्त दीपावली/अक्षय तृतीया दैनिक पाठ उत्तम

नियम और सावधानियाँ

  • स्तव देवता-स्तुति है; किसी की हानि हेतु प्रयुक्त न करें।
  • समृद्धि के साथ दान-धर्म, सत्य-आजीविका अपनाएँ—फल स्थिर रहता है।
  • गृह में स्वच्छता, दीप/गौ-सेवा/वनस्पति-सेवा जैसे सत्कार्य बढ़ाएँ।
  • उच्चारण की शंका हो तो धीरे-धीरे पढ़ें, IAST सहायक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

कनकधारा स्तोत्र कितने श्लोकों का है?

मानक पाठ 18 श्लोकों का है। कुछ परम्पराओं में 12वें के बाद तीन “नमोऽस्तु…” और फिर “बिल्वाटवी…/कमलासनपाणिना…/अम्भोरुहं…” आदि जोड़कर 21/25 श्लोक भी प्रचलित हैं।

कब पढ़ें? शुक्रवार का विशेष महत्व क्यों?

रोज़ प्रातः/सायं श्रेष्ठ। शुक्रवार को लक्ष्मी-उपासना, शुद्धता, दान-सत्कर्म का विशेष अनुष्ठान फलकारी माना गया है।

कितनी बार पाठ करना चाहिए?

एक पूरा पाठ दैनिक पर्याप्त है। इच्छा से 3/11/21 बार या 11/21/40-दिवसीय संकल्प ले सकते हैं।

क्या केवल पाठ से ही धन मिलेगा?

पाठ मनोबल, संयम और अवसर-दृष्टि बढ़ाता है। सत्पुरुषार्थ (मेहनत, कौशल, ईमानदारी, दान) के साथ समन्वय से फल स्थिर रहता है।

अस्वीकरण: यह प्रस्तुति श्रद्धालु पाठकों के लिए अध्ययन-उद्देश्य से है। उच्चारण/पाठ-क्रम में क्षेत्रीय भिन्नताएँ संभव हैं—अपनी परम्परा का आदर करें।

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url