Sankatnashan Ganesh Stotra
श्री संकष्टनाशन गणपति स्तोत्रम् (पूर्ण) — हिन्दी अर्थ सहित, लाभ (Labh), पूजन‑विधि, मंत्र, आरती
1) गणपति‑परिचय
श्री गणपति विघ्न‑विनाशक, बुद्धि‑प्रदाता और मंगल‑कार्य के अधिष्ठाता हैं। संकष्टनाशन गणपति स्तोत्रम् (जिसे संकट नाशन गणेश स्तोत्र भी कहा जाता है) परम्परा में अत्यन्त लोकप्रिय है—नारद‑पुराण सम्मत रूप का पाठ व्यापक है। इसका भाव यह कि गणेश के बारह पवित्र नामों/रूपों का स्मरण कर विघ्न‑निवारण, साहस, विवेक और सफलता का संकल्प किया जाए।
भाव सर्वोपरि—यदि सामग्री सीमित हो तो भी श्रद्धा, संयम और सेवा‑भाव से पाठ करें।
2) श्री संकष्टनाशन गणपति स्तोत्रम् (देवनागरी + हिन्दी अर्थ)
(लोक‑प्रचलित नारद‑प्रणीत पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव। अर्थ साधक‑हित में सरल हिन्दी में।)
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुः कामार्थसिद्धये॥
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभोः॥
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मूक्षार्थी लभते गतिम्॥
सम्वत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥
3) लाभ (Labh / Benefits)
- मानसिक‑विवेक: एकाग्रता, स्मरण‑शक्ति, निर्णय‑क्षमता; अध्ययन/कार्य‑आरम्भ में स्पष्टता।
- विघ्न‑निवारण: बाह्य‑आंतरिक बाधाओं पर संयम; धैर्य, व्यावहारिक बुद्धि, समाधान‑कौशल।
- आत्म‑विकास: विनय, व्यवस्थितता, समय‑पालन, लक्ष्य‑स्थिरता; नए प्रोजेक्ट/यात्रा/अध्ययन का शुभारम्भ।
- सामाजिक: सौहार्द, सहयोग, सेवा‑भाव; परिवार/टीम में सकारात्मक वातावरण।
लाभ श्रद्धा + अभ्यास + सदाचार पर आधारित हैं; अंध‑विश्वास से नहीं, सत्कर्म/अनुशासन से वास्तविक फल।
4) व्रत/पूजन‑विधि (सरल)
- संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान; गणपति का ध्यान—विघ्न‑निवारण व सद्बुद्धि हेतु व्रत।
- आसन‑दीप: पूर्व/उत्तराभिमुख बैठें; घी/तेल का दीप, धूप, शुद्ध जल/दूर्वा/लाल पुष्प; मोदक/फल नैवेद्य।
- मंत्र‑जप:
मुख्य: ॐ गं गणपतये नमः — 108 बार।
गणेश गायत्री: ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥ - स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिए संकष्टनाशन स्तोत्र का भावपूर्वक पाठ; समयाभाव में 1/3/11 नाम‑स्मरण।
- आरती‑प्रसाद: “जय गणेश देवा” आरती; प्रसाद/मोदक वितरित करें, कृतज्ञता व्यक्त करें।
5) मंत्र‑जप सूची
बीज
ॐ गं (GAM)
मूल मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः। (108)
गणेश गायत्री
ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥
वक्रतुंड
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व‑कार्येषु सर्वदा॥
लघु ध्यान
श्वास 4‑4 ताल; मन में लाल/स्वर्ण आभा, एकदन्त, दूर्वा/मोदक का स्मरण; 3–7 मिनट।
6) गणेश आरती (संक्षेप)
7) नियम‑निषेध व सावधानियाँ
- सात्त्विक आहार‑विचार; कटु‑वाणी/अहंकार/आलस्य से दूरी।
- दान शुद्ध कमाई से, विनम्रता के साथ; अन्न/वस्त्र/औषधि/शिक्षा‑सहायता श्रेष्ठ।
- नियमितता प्राथमिक—कम समय में भी दैनिक 5–10 मिनट जप/अध्ययन।
8) सरल उपाय (घर पर)
सेवा‑दान
- अन्न‑दान/विद्या‑सहाय/वृक्ष‑रोपण/स्वच्छता।
- मोदक/फल का प्रसाद बाँटना—बच्चों/बुजुर्गों के साथ।
अनुशासन
- समय‑पालन, कृतज्ञता‑डायरी, लक्ष्य‑ट्रैकिंग।
- नए कार्य से पूर्व 1‑2 मिनट गणेश‑स्मरण/श्वास‑ध्यान।
9) कथा‑सार और प्रतीक
वक्रतुण्ड/एकदन्त—भोगों पर संयम और लक्ष्य‑केन्द्रण; लम्बोदर—क्षमा/धैर्य; मूषकवाहन—वासनाओं पर नियंत्रण; दूर्वा‑मोदक—सरलता/संतोष। संकष्ट‑नाशक रूप साधक को साहस, विनम्रता और समाधान‑कौशल सिखाता है।
10) त्वरित सारणियाँ (Quick Tables)
विषय | संक्षेप |
---|---|
उचित समय | प्रातः/संध्या; चतुर्थी/संकष्टी/गणेशोत्सव में विशेष। |
आवश्यक सामग्री | दीप‑धूप, शुद्ध जल, दूर्वा/लाल पुष्प, मोदक/फल; उपलब्धता अनुसार। |
मुख्य मंत्र | ॐ गं गणपतये नमः; गणेश गायत्री; वक्रतुंड। |
आचरण | विनय, सात्त्विकता, समय‑पालन, सेवा, अध्ययन। |
लाभ | एकाग्रता, स्मरण‑शक्ति, विघ्न‑निवारण का भाव, लक्ष्य‑स्थिरता। |
11) सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या संकष्टनाशन स्तोत्र का दैनिक पाठ उचित है?
हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त; चतुर्थी/संकष्टी/गणेशोत्सव में विशेष फलदायक।
Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?
अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।
Q3. क्या केवल हिन्दी अर्थ पढ़ना पर्याप्त है?
देवनागरी पाठ मुख्य है; पर अर्थ के साथ पढ़ने से मन‑एकाग्रता और समझ बढ़ती है। धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें।
Q4. गलत उच्चारण से हानि?
उद्देश्य भाव और एकाग्रता है; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।
Q5. क्या बिना सामग्री केवल पाठ?
हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/जल/दूर्वा/पुष्प से सरल पूजा भी पर्याप्त।
12) नोट्स व अस्वीकरण
परंपरा‑सूचक: स्तोत्र/आरती/मन्त्र पाठ में क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म अंतर मिलते हैं। यह पोस्ट भक्त‑प्रचलित रूप का संकलन है। आपके क्षेत्र में जो रूप मान्य है, वही ग्रहण करें।