Ram Raksha Stotra

श्री रामरक्षा स्तोत्र (पूर्ण) — हिन्दी अर्थ सहित

श्री रामरक्षा स्तोत्र (पूर्ण) — हिन्दी अर्थ सहित, लाभ (Labh), जप‑विधि

1) श्रीराम‑परिचय

श्रीराम मर्यादा‑पुरुषोत्तम, धर्म/करुणा/साहस के आदर्श हैं। रामरक्षा स्तोत्र को लोक‑परंपरा में बुढ़कौशिक ऋषि‑प्रणीत माना गया है—यह स्तोत्र साधक के मन‑बुद्धि‑चेतना पर संरक्षण‑भाव (रक्षा/कवच) स्थापित करने का ध्येय रखता है। इसमें श्रीराम‑नाम, श्रीराम‑चरित्र और दिव्य अंग‑रक्षा का भावनात्मक समन्वय है।

भाव सर्वोपरि—सामग्री सीमित होने पर भी श्रद्धा, संयम और सेवा‑भाव से पाठ करें।

2) ध्यान/न्यास (संक्षेप)

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
अर्थ: इस रामरक्षा स्तोत्र के मन्त्र के ऋषि बुढ़कौशिक माने गए हैं।
सीता‑रामचन्द्रो देवता। अनुष्टुप् छन्दः।
अर्थ: इसकी देवता श्रीसीताराम हैं; छन्द अनुष्टुप् है।
श्रीरामचन्द्रस्य मन्त्रः — ॐ श्रीरामाय नमः
अर्थ: बीज/मूल मन्त्र—ॐ श्रीरामाय नमः।
अथ ध्यानम् — ध्यायेदाजानुबाहुं धृत‑शर‑धनुषं बद्धपद्मासनस्थं…
अर्थ: ध्यान—आजानुबाहु (घुटनों तक भुजाएँ), हाथ में धनुष‑बाण, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, जटाजूट/मुकुट/पीताम्बरधारी श्रीराम का स्मरण।

3) श्री रामरक्षा स्तोत्र (देवनागरी + हिन्दी अर्थ)

(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव। अर्थ साधक‑हित में सहज हिन्दी में।)

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
अर्थ: श्रीराम राजाओं के रत्न हैं—सदैव विजयी; मैं राम‑रमेश (लक्ष्मीपति) की भक्ति करता हूँ। जिनके द्वारा राक्षस‑सेना नष्ट हुई, उन श्रीराम को नमस्कार।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्यहम्।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥
अर्थ: राम से बढ़कर कोई आश्रय नहीं; मैं राम का दास हूँ। मेरा चित्त सदैव राम में लीन रहे—हे राम! मुझे उठाइए/उद्धार कीजिए।
श्रीराम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम ततुल्यं, रामनाम वरानने॥
अर्थ: श्रीराम‑नाम का जप मन को रमणीय बनाता है; एक ‘राम’‑नाम सहस्र नामों के समान फलदायक माना गया है।
विद्यावान् गुणसम्पन्नो वानराणां महायशाः।
सुग्रीवोऽहम् सदा रामं शरणं यामि राघवम्॥
अर्थ: (भावार्थ) जैसे सुग्रीव ने श्रीराम को शरण ग्रहण किया, वैसे ही मैं भी रघुनाथ की शरण लेता हूँ—वे गुणसम्पन्न व वीरों के नायक हैं।
चारित्रं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकोऽहं चिन्तये नित्यं भूयो भूयः कथं हरिम्॥
अर्थ: रघुनाथ का चरित्र अनन्त है—मैं बार‑बार उसे स्मरण कर जीवन में धर्म/साहस ग्रहण करता हूँ।
ध्यानम् — ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं…
अर्थ: वही ध्यान—धैर्य, करुणा और कर्तव्य‑निष्ठा का स्मरण।
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः॥
अर्थ: श्रीराम दशरथनन्दन, पराक्रमी, लक्ष्मण के साथ, पूर्ण पुरुष, कौसल्या‑पुत्र, रघुवंश के श्रेष्ठ हैं।
वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि।
लोकनाथस्य हृदयानि तानि संत जनप्रियाणि च॥
अर्थ: लोकनाथ श्रीराम का हृदय न्याय में वज्र समान कठोर और करुणा में पुष्प समान कोमल—सत्पुरुषों को प्रिय।
अथ कवचम् —
अब अंग‑रक्षा का भाव (कवच):
आधौ मे शिरो रक्षेत् रामो दाशरथिः सदा।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती॥
अर्थ: श्रीराम मेरा शीश सदा रक्षा करें; कौसल्येयो (कौसल्या‑नन्दन) मेरी दृष्टि, विश्वामित्र‑प्रिय मेरी श्रवण शक्ति की रक्षा करें।
नासिकां जानकीनाथो, मुखं मे सौम्यविक्रमः।
जिव्हां विद्यानिधिः पातु, कण्ठं भरतवन्दितः॥
अर्थ: जानकीनाथ मेरी नासिका, सौम्य‑विक्रम मुख; विद्यानिधि जीभ; भरत‑वन्दित कण्ठ की रक्षा करें।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु, भुजौ भग्नेश्वरार्दनः।
करौ सीतापतिर्पातु, हृदयं जामदग्न्यजित्॥
अर्थ: दिव्य आयुध‑धारी कंधों, शत्रुजयी भुजाओं, सीतापति हाथों और परशुराम‑विजेता हृदय की रक्षा करें।
मध्यं पातु खरध्वंशी, नाभिं जाम्बवदाश्रितः।
गुह्यं दशरथः पातु, कटिं भरतनन्दनः॥
अर्थ: खर‑वधकर्ता मध्यम (छाती/कटि), जाम्बवान्‑आश्रित नाभि, दशरथ रक्षा करें गुह्य, भरतनन्दन कटि की रक्षा करें।
ऊरू लक्ष्मणगुप्तो मे, जङ्घे जामदग्न्यजित्।
पादौ विभीषणश्रीमान्, सर्वाङ्गं रघुनायकः॥
अर्थ: लक्ष्मण‑संरक्षित उरु (जांघ), परशुराम‑विजेता पिंडली, विभीषण‑प्रिय चरण और समस्त अंगों की रक्षा रघुनायक करें।
एतां रामबलोपेतां रक्षां येः सुकरणां नराः।
संसारेऽस्मिन् भयं घोरं न तेषां विद्यते क्वचित्॥
अर्थ: जो पुरुष रामबल से युक्त इस रक्षा को धारण करते हैं, उन्हें संसार के घोर भय से भी संरक्षण मिलता है (भावार्थ)।
रामलक्ष्मणसीताभिः पातु मां सर्वतस्तथा।
अन्येऽपि राघवस्यान्ते भक्तानां संनिधिं ययुः॥
अर्थ: मुझे श्रीराम‑लक्ष्मण‑सीता चारों ओर से बचाएँ—रामभक्तों का संग‑संस्मरण सुरक्षा देता है।
इति रामरक्षां पठति प्रातःकाले मनुष्यः।
स धनं धान्यं पशूं लभते, सततं कीर्तिमाप्नुयात्॥
अर्थ: जो व्यक्ति प्रातःकाल रामरक्षा का पाठ करता है, उसे समृद्धि/कीर्ति (अर्थात जीवन‑व्यवस्था में स्थिरता) प्राप्त होती है—भावार्थ।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्॥
अर्थ: ‘वज्र‑पञ्जर’ समान मजबूत इस राम‑कवच का जो स्मरण करे, वह निर्भय होकर मंगल‑विजय पाए।
इत्युक्त्वा मुनिना रामरक्षा स्तोत्रं प्रवर्त्यते…
अर्थ: (संकेत) ऋषि द्वारा आरम्भ—साधक का भाव स्थिर हो।
सीता‑लक्ष्मण‑भरत‑शत्रुघ्न‑हनूमान् सहितं हरिम्।
नमामि रघुवीरं तं, दीननाथं दयालुम्॥
अर्थ: मैं सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान सहित श्रीराम को नमस्कार करता हूँ—वे दीनों के नाथ और दयालु हैं।
॥ फलश्रुति (लोक‑प्रचलित भाव) ॥
अर्थ: नियमित पाठ से भय‑निवारण, साहस, संयम, घर‑परिवार में सौहार्द और धर्म‑निष्ठा बढ़ती है—यह लोकानुभव है।
॥ इति श्रीरामरक्षा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
यहाँ स्तोत्र का पाठ पूर्ण होता है।
नोट: मुद्रण/क्षेत्रानुसार पाठ‑क्रम/शब्दों में अल्प भिन्नताएँ मिल सकती हैं; अपने गुरु‑परंपरा/क्षेत्रीय पाठ का सम्मान करें।

4) लाभ (Labh / Benefits)

  • मानसिक‑धैर्य: संकट/भय/उतावलेपन में स्थिरता; निर्णय‑क्षमता में संतुलन।
  • विवेक‑अनुशासन: मर्यादा‑पुरुषोत्तम आदर्श का अनुसरण—कर्तव्य, संयम, दया।
  • आत्म‑रक्षा का संस्कार: ‘कवच’‑भाव से नकारात्मकता/भय पर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा‑वृत्ति।
  • सामाजिक‑सौहार्द: सत्य‑अहिंसा‑सेवा; घर/समाज में शान्त वातावरण।

लाभ श्रद्धा + अभ्यास + सदाचार पर आधारित—अंध‑विश्वास नहीं, सत्कर्म/अनुशासन से वास्तविक फल।

5) जप‑विधि (दैनिक)

  1. संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान; राम‑ध्यान—धर्म/साहस/करुणा हेतु।
  2. आसन‑दीप: पूर्व/उत्तराभिमुख; घी/तेल दीप, धूप, पुष्प/तुलसी, शुद्ध जल; श्रीरामचित्र/श्रीरामनाम।
  3. मंत्र‑जप:
    मुख्य: ॐ श्रीरामाय नमः — 108 बार।
    राम तारक मंत्र: श्रीराम जय राम जय जय राम — 108।
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिया रामरक्षा स्तोत्र शुद्ध/भावपूर्ण उच्चारण से; समयाभाव में 1/3/11 श्लोक चयन।
  5. आरती‑प्रसाद: ‘आरती श्रीरामायण जी की’/‘श्रीरामचन्द्र कृपालु’ स्तुति; अंत में प्रसाद/जल‑वितरण।
यदि सामग्री सीमित हो: केवल जल/तुलसी‑पत्र, दीप‑धूप और मन्त्र‑जप पर्याप्त; भाव ही प्रधान।

6) नियम‑निषेध व सावधानियाँ

  • सात्त्विक आहार‑विचार; कटु‑वाणी/क्रोध/अहं से दूरी।
  • नियमितता: प्रतिदिन 5–15 मिनट भी सतत रखें; यात्रा‑पूर्व/महत्त्वपूर्ण कार्य‑पूर्व 1–2 मिनट जप।
  • दान‑सेवा: अन्न/वस्त्र/शिक्षा/स्वास्थ्य‑सहाय; सत्य‑अहिंसा‑सेवा का अभ्यास।

7) कथा‑सार/प्रतीक

धनुष‑बाण—कर्तव्य‑संकल्प; सीता‑राम—धर्म‑करुणा का संतुलन; लक्ष्मण—निष्ठा/सेवा; हनुमान—भक्ति/पराक्रम; भरत‑शत्रुघ्न—सहयोग/सभ्यता। ‘रक्षा’‑भाव का आशय मन में अंतर्यामी‑राम की स्मृति से साहस व विवेक जाग्रत करना है।

8) त्वरित सारणियाँ (Quick Tables)

विषयसंक्षेप
उचित समयप्रातः/संध्या; रामनवमी/नवरात्र/एकादशी/पुष्य‑नक्षत्र इत्यादि में विशेष।
आवश्यक सामग्रीदीप‑धूप, शुद्ध जल, पुष्प/तुलसी; उपलब्धता अनुसार।
मुख्य मंत्रॐ श्रीरामाय नमः; ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’; ‘सीताराम’।
आचरणमर्यादा, सत्य, दया, सेवा, परिश्रम, समय‑पालन।
लाभधैर्य, भय‑निवारण, निर्णय‑स्पष्टता, पारिवारिक सौहार्द।

9) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या रामरक्षा स्तोत्र का दैनिक पाठ कर सकते हैं?

हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त; संकट/यात्रा से पूर्व विशेष फलदायक।

Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।

Q3. क्या केवल हिन्दी अर्थ पढ़ना पर्याप्त है?

देवनागरी पाठ मुख्य है; पर अर्थ के साथ पढ़ने से मन‑एकाग्रता और समझ बढ़ती है। धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें।

Q4. गलत उच्चारण से हानि?

उद्देश्य भाव और एकाग्रता है; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।

Q5. क्या बिना सामग्री केवल पाठ?

हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/जल/पुष्प/तुलसी से सरल पूजा भी पर्याप्त।

10) नोट्स

परंपरा‑सूचक: स्तोत्र/आरती/मन्त्र पाठ में क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म अंतर मिलते हैं। यह पोस्ट भक्त‑प्रचलित रूप का संकलन है। आपके क्षेत्र में जो रूप मान्य है, वही ग्रहण करें।

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