Lingastak Stotra
श्री लिंगाष्टक स्तोत्र (पूर्ण) — हिन्दी अर्थ सहित, लाभ (Labh), पूजन‑विधि, मंत्र, आरती
1) शिव‑तत्त्व परिचय
शिव तत्त्व—शान्ति, करुणा, समता, वैराग्य और कल्याण का प्रतीक। लिंग (चैतन्य‑स्तम्भ) निराकार‑परब्रह्म का सूचक है। लिंगाष्टक—आठ श्लोकों का यह स्तोत्र शिवलिङ्ग की महिमा का गान है, जो साधक में नम्रता, संयम, वैराग्य‑विवेक को पुष्ट करता है।
भाव सर्वोपरि—यदि सामग्री सीमित हो तो भी श्रद्धा, संयम और सेवा‑भाव से पाठ करें।
2) श्री लिंगाष्टक (देवनागरी + हिन्दी अर्थ)
(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव। अर्थ साधक‑हित में सरल हिन्दी में।)
निर्मल‑भासित‑शोभित‑लिङ्गम्।
जन्मज‑दुःख‑विनाशक‑लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ १ ॥
कामद‑दाहन‑करुणाकर‑लिङ्गम्।
रावण‑दारित‑शिरोर्‑धर‑लिङ्गं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ २ ॥
बुधि‑विवर्द्धन‑कारण‑लिङ्गम्।
सिद्ध‑सुरासुर‑वन्दित‑लिङ्गं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ ३ ॥
फणि‑रजित‑मुख‑शोभित‑लिङ्गम्।
दक्ष‑सुधा‑रस‑वर्धित‑लिङ्गं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ ४ ॥
पङ्कज‑हार‑सुषोभित‑लिङ्गम्।
संचित‑पाप‑विनाशक‑लिङ्गं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ ५ ॥
भव‑भय‑हारि‑णम् एव च लिङ्गम्।
वन्दित‑देव‑वर‑वेद‑विनीतं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ ६ ॥
आदि‑अनादि‑निरूपित‑लिङ्गम्।
भव‑विनाश‑करं परम‑लिङ्गं
तत्‑प्रणमामि सदाशिव‑लिङ्गम्॥ ७ ॥
शिवलोकम् अवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ ८ ॥
3) लाभ (Labh / Benefits)
- मन‑शुद्धि व शान्ति: काम‑क्रोध‑लोभ पर संयम; मन में समता।
- वैराग्य‑विवेक: अनावश्यक आसक्तियों से दूरी; निर्णय‑स्पष्टता।
- साहस‑धैर्य: कठिन परिस्थितियों में स्थिरता; भय‑निवारण का भाव।
- परिवारिक सौहार्द: क्षमा, करुणा, सेवा‑भाव—गृहस्थ‑धर्म में संतुलन।
लाभ श्रद्धा + अभ्यास + सदाचार पर आधारित हैं; अंध‑विश्वास से नहीं, सत्कर्म/अनुशासन से वास्तविक फल।
4) शिवलिङ्ग पूजन‑विधि (सरल)
- संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान; शिव‑ध्यान—आत्म‑शुद्धि/वैराग्य/कल्याण हेतु।
- आसन‑दीप: पूर्व/उत्तराभिमुख बैठें; घी/तिल का दीप, धूप; शुद्ध जल/कच्छ जल; बिल्वपत्र/अकुण्ड पुष्प।
- अभिषेक: जल/दूध/पंचामृत (थोड़ी मात्रा); जल‑संरक्षण का ध्यान; शिवलिङ्ग पर धार से, नाल से बेहतर।
- मंत्र‑जप:
मुख्य: ॐ नमः शिवाय — 108 बार।
महामृत्युञ्जय: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्… — 21/108। - स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिया लिंगाष्टक भावपूर्वक पढ़ें; समयाभाव में 1/3/8 श्लोक चयन।
- आरती‑प्रसाद: “ॐ जय शिव ओंकारा” आरती; अंत में प्रसाद/जल‑वितरण, कृतज्ञता।
5) मंत्र‑जप सूची
बीज
ॐ हौं/ॐ नमः शिवाय
मूल मंत्र
ॐ नमः शिवाय। (108)
महामृत्युञ्जय
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥
शिव‑गायत्री
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
लघु ध्यान
श्वेत‑नील ज्योति का ध्यान; श्वास 4‑4 ताल; 3–7 मिनट—समता/शान्ति का भाव।
6) शिव आरती (संक्षेप)
7) नियम‑निषेध व सावधानियाँ
- सात्त्विक आचार‑विचार; कटु‑वाणी/अहंकार/आलस्य से दूरी।
- अभिषेक में जल‑संरक्षण; दूध/दही का प्रयोग सीमित व शुद्धता‑सम्मत।
- नियमितता प्राथमिक—कम समय में भी दैनिक 5–10 मिनट जप/अध्ययन।
8) त्वरित सारणियाँ (Quick Tables)
विषय | संक्षेप |
---|---|
उचित समय | प्रातः ब्रह्ममुहूर्त/संध्या; सोमवार/प्रदोष/महाशिवरात्रि में विशेष। |
आवश्यक सामग्री | दीप‑धूप, शुद्ध जल, बिल्वपत्र/पुष्प; उपलब्धता अनुसार। |
मुख्य मंत्र | ॐ नमः शिवाय; महामृत्युञ्जय; शिव‑गायत्री। |
आचरण | समता, क्षमा, करुणा, सेवा, सत्य, समय‑पालन। |
लाभ | शान्ति, वैराग्य‑विवेक, भय‑निवारण, पारिवारिक सौहार्द। |
9) सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या लिंगाष्टक का दैनिक पाठ उचित है?
हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त; सोमवार/प्रदोष/महाशिवरात्रि में विशेष फलदायक।
Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?
अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।
Q3. क्या केवल हिन्दी अर्थ पढ़ना पर्याप्त है?
देवनागरी पाठ मुख्य है; पर अर्थ के साथ पढ़ने से मन‑एकाग्रता और समझ बढ़ती है। धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें।
Q4. गलत उच्चारण से हानि?
उद्देश्य भाव और एकाग्रता है; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।
Q5. क्या बिना सामग्री केवल पाठ?
हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/जल/बिल्वपत्र से सरल पूजा भी पर्याप्त।
10) नोट्स
परंपरा‑सूचक: स्तोत्र/आरती/मन्त्र पाठ में क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म अंतर मिलते हैं। यह पोस्ट भक्त‑प्रचलित रूप का संकलन है। आपके क्षेत्र में जो रूप मान्य है, वही ग्रहण करें।