Rahu Mantra

राहु मन्त्र संकलन: बीज, वैदिक, स्तुति/कवच (संक्षेप), जप‑विधि, लाभ, दान‑उपाय

राहु मन्त्र हिन्दी अर्थ सहित लाभ, जप‑विधि/व्रत, दान‑उपाय, सावधानिय

1) राहु मन्त्र (देवनागरी पाठ)

(A) बीज मन्त्र

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः ॥
जप: 108, 216 या 1008—समर्थ्य/समय अनुसार।

(B) वैदिक/नवग्रह स्तुति‑श्लोक

अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥

(C) राहु गायत्री (लोक‑प्रचलित)

ॐ नागध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि ।
तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥

(D) राहु स्तुति (संक्षेप)

रौद्ररूपधरं घोरं सिंहिकासुतमव्ययम् ।
राहुं शरण्यमिच्छामि सर्वभयविनाशकम् ॥

(E) राहु कवच (संक्षेप पाठ)

श्यामाङ्गं चन्द्रचूडं च सिम्हिकेयं तमाश्रये ।
राहुर्मां पातु शिरसि भ्रां भ्रीं भ्रौं सर्वतः सदा ॥
नेत्रे पातु तमोरूपो कर्णयोः पातु वक्रदृक् ।
नासिकां मे निशाचारी मुखं पातु सुदुस्तरः ॥
कण्ठं पातु महाघोरः बाहू पातु जगद्भयः ।
हृदयं भ्रमणाधीशो नाभिं पातु सुदुर्लभः ॥
कटिं पातु महावातो जानुनी पातु पावकः ।
पादौ मे पातु वै राहुः सर्वाङ्गं मे सदाऽवतु ॥
(कवच‑रूप में संरक्षणार्थ संक्षेप पंक्तियाँ—परम्परानुसार भेद संभाव्य।)

2) हिन्दी अर्थ/भावार्थ

बीज मन्त्र अर्थ

“ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” — ‘भ्रां‑भ्रीं‑भ्रौं’ ध्वनियाँ राहु‑तत्त्व के सूक्ष्म बीज अक्षर हैं; ‘सः’ बीज शक्ति का सूचक है; ‘राहवे नमः’—राहु देव को नमस्कार कर उनकी उपासना का संकल्प। यह मन्त्र मन की उथल‑पुथल, संशय, भ्रांतियों का परिष्कार कर धैर्य/विवेक जगाने का साधन माना गया है।

वैदिक/नवग्रह श्लोक अर्थ

“अर्धकायं महावीर्यं…” — हे सिंहिका‑पुत्र राहु! आप आधे शरीर वाले (छाया‑ग्राही), महान तेज/वीर्य से युक्त, और सूर्य‑चन्द्र को आच्छादित करने वाले हैं—मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

राहु गायत्री अर्थ

हम नागध्वज और पद्महस्त रूपधारी राहु देव को जानें/ध्यान करें; वे हमारी बुद्धि को सत्य‑मार्ग पर प्रेरित करें।

स्तुति/कवच भावार्थ

राहु के उग्र‑रौद्र रूप को भी आश्रय मानकर हम भय/अवसाद/भ्रम से रक्षा की प्रार्थना करते हैं—वे हमारे सिर से पाँव तक रक्षण करें, नकारात्मक प्रवृत्तियाँ पास न आएँ।

नोट: अर्थ, भावार्थ, शब्दार्थ व्याकरणिक व्याख्या परम्परा/ग्रन्थ अनुसार अलग हो सकती है।

3) लाभ (Labh / Benefits)

  • मानसिक स्थिरता: भ्रम/चंचलता/आकस्मिक भय में धैर्य व फ़ोकस।
  • छाया‑प्रभावों का संतुलन: ग्रहण/राहुकाल की दहशत कम; विवेकपूर्ण निर्णय।
  • संबंध/करियर में स्पष्टता: संचार/छवि‑सुधार, अनावश्यक विवादों से दूरी।
  • ग्रह‑शान्ति: राहु महादशा/अन्तर्दशा के तनाव में संयम व सकारात्मकता।
  • आध्यात्मिक लाभ: आसक्ति‑मोह घटे; आत्म‑निरीक्षण व स्वानुशासन बढ़े।

लाभ श्रद्धा + नियमित जप + सत्कर्म पर आधारित हैं; यह आध्यात्मिक/सांस्कृतिक जानकारी है।

4) जप‑विधि (सरल, घर पर)

  1. समय: दैनिक प्रातः/संध्या; मंगलवार/शनिवार विशेष। राहुकाल में जप परम्परागत रूप से स्वीकार्य (क्षेत्र‑भेद)।
  2. आसन/दिशा: काला/नील आसन; उत्तर‑पश्चिम/पश्चिम की ओर मुख।
  3. दीप/धूप: तिल/सरसों तेल का दीप; गुग्गुल/लोबान धूप।
  4. अर्घ्य/अर्पण: काला तिल, नीला/काला पुष्प, दुर्वा; स्वच्छ जल।
  5. जप‑गणना: रुद्राक्ष/काली हकिक माला; 108 (या 27×4) जप।
  6. समापन: शान्ति‑पाठ—“ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” एवं कल्याण‑कामना।
💡 सरल नियम: सात्त्विक आहार, असत्य/कटु‑वाणी से दूरी, क्रोध/आवेग पर संयम।

5) दान‑उपाय व अनुशासन

दान

  • काला तिल/उड़द, काली हरीरा/कम्बल
  • नीला/काला वस्त्र, काली तिल की मिठाई
  • छाया‑दान (तेल से भरा पात्र, जल में छाया दिखाकर दान)

सेवा

  • असहाय/रोगी/पशु‑पक्षी सेवा
  • कचरा‑मुक्ति/स्वच्छता/पौधारोपण
  • ड्राइविंग/डिजिटल‑शिष्टाचार में संयम

आचार

  • सत्यनिष्ठा; आवेग/आडम्बर से दूरी
  • ऋण/विवाद में कानूनी/नैतिक मार्ग
  • नकारात्मक संगति/भ्रमक सूचना से बचाव

व्रत/दान वैकल्पिक—कर्तव्य/सेवा सर्वोपरि।

6) सावधानियाँ

  • ज्योतिषीय उपाय आस्था‑आधारित हैं; किसी चिकित्सकीय/कानूनी/वित्तीय निर्णय का विकल्प नहीं।
  • अति‑उपाय/भय‑आधारित जप से बचें—संयमित, नियमित अभ्यास अपनाएँ।
  • यदि किसी मन्त्र पर संशय/उच्चारण कठिन लगे, अपने गुरु/स्थानीय परम्परा से मार्गदर्शन लें।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. केवल बीज मन्त्र पर्याप्त है?

हाँ—नियमितता और भाव के साथ “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” का जप पर्याप्त है।

Q2. कितने दिनों में फल दिखेगा?

यह साधना है—समय/कर्म/मनःस्थिति पर निर्भर; लाभ धीरे‑धीरे स्थिरता/स्पष्टता के रूप में दिखता है।

Q3. राहुकाल में ही जप करें?

अनिवार्य नहीं—प्रातः/संध्या शुद्ध समय उपयुक्त है; राहुकाल में विशेष जप किया जा सकता है (क्षेत्र‑भेद)।

Q4. क्या उपवास ज़रूरी है?

आवश्यक नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो हल्का सात्त्विक उपवास/संयम रखें।

8) नोट्स

परम्परा‑सूचक: मन्त्र/पद‑भेद क्षेत्र/गुरुपरम्परा/मुद्रणानुसार भिन्न हो सकते हैं। अपने गुरु/परम्परा में प्रचलित पाठ को प्राथमिकता दें।

राहवे नमः
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url