Shani Mantra

शनि मंत्र हिन्दी अर्थ सहित लाभ, पूजन‑विधि

शनि मंत्र हिन्दी अर्थ सहित लाभ, जप‑विधि, उपाय/सेवा

1) शनि मंत्र — पूर्ण देवनागरी + हिन्दी अर्थ सहित

1. ध्यान‑श्लोक (Navagraha‑ध्यान)

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
अर्थ: जो नीलांजन (काजल) समान दीप्ति वाले हैं, सूर्यदेव के पुत्र, यमराज के अग्रज तथा छाया‑देवी से उत्पन्न—ऐसे शनैश्चर को नमस्कार।

2. बीज मंत्र (दो प्रचलित रूप)

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥
अर्थ: ‘प्र’ बीज‑माला से शनैश्चर (शनि) तत्त्व का आवाहन—आदर सहित नमस्कार।
ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
अर्थ: शनि‑बीज ‘शं’ के माध्यम से शनैश्चर को नमस्कार—सरल जप‑रूप।

3. शनि गायत्री (प्रचलित रूप)

ॐ कृष्णाङ्गाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि।
तन्नः शनिः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम कृष्णवर्ण/नीलवर्ण रूप वाले सूर्यपुत्र शनिदेव का ध्यान करें—वे हमें विवेक प्रदान करें।
ॐ छायापुत्राय विद्महे महाकायाय धीमहि।
तन्नः सौरिः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम छायापुत्र, विशाल‑तेजस्वी सौरि (शनि) का ध्यान करें—वे बुद्धि का प्रकाश दें।

4. नवग्रह — शनि मंत्र (वेदोक्त/लोक‑प्रचलित)

ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
अर्थ: नवग्रह‑पूजन में शनि के लिए यह संक्षिप्त नमस्कार‑मंत्र जपा जाता है।
ॐ शन्नो देवाः… (नवग्रह शान्ति पाठ संयोज्य)
टिप्पणी: विस्तृत नवग्रह शान्ति‑सूक्त अलग संहिता/क्रम से पढ़ा जाता है—यहाँ शनि‑उपासना हेतु संक्षेप दिया है।

5. शनि स्तुति (दशरथकृत — संक्षेप चयन)

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रोदनसः शनिः।
मन्दः पवनसंबन्धो मन्दचारी च सौरिः॥
अर्थ: कोणस्थ, पिङ्गल, बभ्रु, कृष्ण, रोदन, शनि, मन्द, पवन‑सम्बन्धी, मन्दचार, सौरि—ये शनिदेव के नाम हैं; इनका जप शनि‑अनुग्रह का साधन है।
… (शेष नामावलियाँ 20+ पद—आवश्यक हो तो सम्पूर्ण नामावली मैं जोड़ दूँ)

6. शनि कवच (बीज/संक्षेप भावार्थ)

ॐ क्रीं क्लीं शं शनैश्चराय नमः । (कवच‑आरम्भ)
अर्थ: शनि‑तत्त्व से रक्षा/धैर्य/समत्व की प्रार्थना। (पूर्ण कवच दीर्घ है—यदि आप चाहें तो सम्पूर्ण क्रम भी जोड़ दूँ)

7. शनि आराधना‑शान्ति प्रार्थना

नमो नमः शनिराजाय कालात्मने नमो नमः।
भवभयहर देवा, प्रशमय दुष्कृतानि मे॥
अर्थ: कालस्वरूप शनिराज को बार‑बार प्रणाम—हे देव! हमारे दुष्कृत/कठिन कर्मों के फल को सहन‑योग्य बनाइए और भय दूर कीजिए।
स्रोत‑सूचना: उपर्युक्त मंत्र/श्लोक परम्परागत/लोक‑प्रचलित हैं; पठन्तरों में हल्का वैविध्य संभव। अपने गुरु‑परंपरा/क्षेत्रीय पाठ को प्राथमिकता दें।

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • धैर्य व कर्म‑समत्व: ‘मन्द’‑तत्त्व स्थिरता सिखाता है—घबराहट घटती, अनुशासन बढ़ता है।
  • कर्त्तव्य‑निष्ठा: नियमित जप से समय‑प्रबंधन, परिश्रम और जिम्मेदारी का बोध दृढ़ होता है।
  • वैराग्य/सय्यम: शनि का नील/मन्द प्रतीक आसक्ति‑त्याग व न्यूनतम‑वाद की प्रेरणा देता है।
  • चित्त‑शुद्धि: गलतियों की स्वीकृति, प्रायश्चित्त‑भाव, सेवा/दान की प्रवृत्ति विकसित।
  • दीर्घकालिक दृष्टि: जल्दबाजी की जगह धैर्य—दीर्घकालिक हित पर ध्यान।

लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सत्कर्म पर निर्भर हैं; यह आध्यात्मिक/सांस्कृतिक सूचना है—ज्योतिषीय/चिकित्सकीय परामर्श नहीं।

3) जप/पूजन‑विधि (सरल, घर पर)

  1. समय/दिशा: शनिवार प्रातः/संध्या, या दैनिक; दक्षिण/पश्चिममुख बैठना परंपरानुसार—पर भाव सर्वोपरि।
  2. स्थल/सामग्री: स्वच्छ स्थान; तिल/सरसों का तेल‑दीप; काला तिल; नीला/काला वस्त्र; जल/फूल/दीप पर्याप्त।
  3. आसन/माला: कुश/काली दरी; रुद्राक्ष/काली अकीक/शनि माला—जो उपलब्ध हो।
  4. ध्यान/आवाहन: ध्यान‑श्लोक 1 बार—फिर बीज या गायत्री का 108 जप।
  5. समर्पण: अंत में शांतिपाठ; संभव हो तो सेवा/दान का संकल्प लें।
⚠️ यदि आप किसी विशेष ‘शनि शान्ति’ अनुष्ठान/हवन की इच्छा रखते हैं, तो परंपरागत ज्ञानी/पुरोहित से मार्गदर्शन लें।

4) उपाय/सेवा‑साधन (सत्कार्य‑केंद्रित)

सात्त्विक उपाय

  • शनिवार को काला तिल/तिल तेल दान—गृहस्थ/आवश्यकजन को।
  • छाया‑दान (तेल से भरा कटोरा) परंपरानुसार—यदि घर में संभव हो तो सरल रीति से करें।
  • श्रम‑सेवा: वृद्ध/विकलांग/जानवरों की सहायता; वृक्ष‑रोपण; स्वच्छता‑सेवा।
  • अनुशासन‑साधना: समयपालन, वचन‑पालन, अनावश्यक खर्च/क्रोध पर नियंत्रण।

नियम/वर्जन

  • किसी पर अन्याय/अपमान/आलस्य से बचें—शनि ‘कर्म‑न्याय’ का स्मरण कराते हैं।
  • अंधविश्वासी/हानिकारक उपायों से बचें; किसी को नुकसान पहुँचाकर ‘उपाय’ नहीं होता।
  • कर्ज/व्यसनों से दूरी; धीरे‑धीरे स्वस्थ दिनचर्या अपनाएँ।

5) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ और ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं…’ में क्या अंतर?

पहला सरल/संक्षिप्त नवग्रह‑उपासना में अधिक चलता है; दूसरा विस्तृत ‘बीज’‑माला युक्त है। दोनों मान्य—एक को नियमितता से अपनाएँ।

Q2. शनिवार के अलावा कब जप करें?

रोज़ाना प्रातः/संध्या भी कर सकते हैं। नियमितता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

Q3. क्या विशेष भोजन‑वर्जन है?

सात्त्विक आहार, अनुकूल स्वास्थ्य और संयम—यही मुख्य है। किसी पर अनावश्यक कठोरता न करें।

Q4. क्या केवल अर्थ पढ़ना चलेगा?

देवनागरी पाठ मुख्य; अर्थ से समझ गहरी होती है। उच्चारण धीरे‑धीरे सीखें—भाव प्रधान।

6) नोट्स

परंपरा‑सूचक: पंक्तियों/बीजों के पाठान्तर क्षेत्र/गुरुपरंपरा के अनुसार भिन्न मिल सकते हैं। अपने परंपरागत रूप को प्राथमिकता दें।

जय शनिदेव
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