Ketu Mantra

केतु मन्त्र संग्रह: बीज, नवग्रह, गायत्री; अर्थ, लाभ, जप‑विधि, उपाय

केतु मन्त्र हिन्दी अर्थ सहित लाभ (Labh), जप/विधि, उपाय/दान

1) केतु — संक्षेप परिचय

केतु नवग्रहों में छाया‑ग्रह (दक्षिण नोड) माने जाते हैं। पारम्परागत रूप से इन्हें वैराग्य, विवेक, आध्यात्मिकता, रहस्य‑विज्ञान, अचानक रूपान्तरण, कर्म‑निर्णय का कारक माना गया है। प्रतीक: ध्वज/केतु, धूम/कुहरा, पलाश‑पुष्प। देवता‑सम्बन्ध: भगवान शिव, श्री गणेश (विघ्ननाश/बुद्धि) से भी जुड़ाव मानते हैं।

ध्यान दें: यह सांस्कृतिक/परम्परागत जानकारी है; वैदिक ज्योतिष की धाराएँ विविध हैं—स्थानीय परम्परा का आदर करें।

2) केतु मन्त्र‑संग्रह (देवनागरी में)

2.1) केतु बीज मन्त्र

ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः ॥
अर्थ: हे केतु! आपकी शान्ति‑कृपा, धैर्य, विवेक व मोक्ष‑मार्ग की प्रेरणा मुझे दें—ऐसी विनती।
सरल बीज रूप: ॐ केतवे नमः ॥
अर्थ: केतु को नमस्कार—अन्तःकरण की शुद्धि और बाधा‑निवारण की प्रार्थना।

2.2) नवग्रह केतु स्तुति‑मन्त्र (लोक‑प्रचलित)

पालाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहतारकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतूं प्रणमाम्यहम् ॥
अर्थ: जो पलाश‑पुष्प के समान लालिमा/कान्ति वाले हैं, तारक‑ग्रहों के बीच भी विशिष्ट प्रभाव वाले, उग्र‑स्वरूप—ऐसे केतु देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
(पदा/मात्रा में क्षेत्रानुसार सूक्ष्म भेद संभव; “केतुं”/“केतूं”—दोनों पाठ मिलते हैं)

2.3) केतु गायत्री मन्त्र — 1 (धूमकेतु रूप)

ॐ धूमकेतवे विद्महे रौद्रहस्ताय धीमहि ।
तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: हम धूमकेतु‑स्वरूप केतु देव को जानें, रौद्र‑शक्ति‑धारी का ध्यान करें; वे हमारी बुद्धि को धर्म‑पथ पर प्रेरित करें।

2.4) केतु गायत्री मन्त्र — 2 (अश्वध्वज रूप)

ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि ।
तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: अश्व‑ध्वज धारण करने वाले, शूल‑हस्त केतु देव का ध्यान करें—वे हमारी बुद्धि का संवर्धन करें।
(कुछ परम्पराओं में “अस्वध्वजाय/अश्वकेतवे” पठन पाया जाता है)

2.5) शिव‑सम्बद्ध प्रार्थना (केतु‑शान्ति हेतु)

ॐ नमः शिवाय ॥
अर्थ: शिव‑तत्त्व का जप अन्तर्मन को स्थिर कर केतु‑सम्बन्धी अशान्ति को कम करने में सहायक माना गया है।

3) हिन्दी अर्थ (संक्षेप भावार्थ)

  • बीज मन्त्र: केतु देव से धैर्य, विवेक, भयी‑बाधा शमन और आध्यात्मिक उन्नति की प्रार्थना।
  • नवग्रह स्तुति: उग्र/रौद्र‑शक्ति के सदुपयोग से दुष्प्रभाव शान्त कर नवचेतना पाना।
  • गायत्री: हमारी बुद्धि (धीयः) को प्रेरित कर सत्य‑विवेक की ओर ले जाने का निवेदन।
  • शिव‑जप: चित्त‑शुद्धि और वैराग्य—जो केतु के शुभ पक्ष को सुदृढ़ करते हैं।

4) लाभ (Labh / Benefits)

  • वैराग्य व विवेक: आसक्ति ढीली, निर्णय‑कौशल व अन्तर्दृष्टि मजबूत।
  • मानसिक स्थिरता: भय/अस्पष्टता/अति‑कुहासा जैसी भावनाओं में स्पष्टता।
  • आध्यात्मिक प्रगति: जप से एकाग्रता, ध्यान‑गुण, स्वाध्याय‑रुचि बढ़ती है।
  • अचानक उतार‑चढ़ाव का संतुलन: अनपेक्षित बदलावों में धैर्य व अनुकूलन क्षमता।
  • स्वास्थ्य‑अनुशासन: सात्त्विक दिनचर्या/उपवास‑नियम अपनाने की प्रेरणा।

लाभ नियमितता + श्रद्धा + सत्कर्म पर निर्भर—यह कोई चिकित्सकीय/वित्तीय परामर्श नहीं।

5) जप/पूजन‑विधि (सरल, घर‑परिवार हेतु)

  1. समय: प्रातः/संध्या, मंगलवार/शनिवार विशेष; स्वच्छ वस्त्र, शान्त स्थान।
  2. आसन‑दीप: काला/धूसर आसन; तिल/घी का दीपक, धूप; जल से आचमन।
  3. गणेश/शिव ध्यान: ‘ॐ श्री गणेशाय नमः’ 11; ‘ॐ नमः शिवाय’ 11।
  4. मूल जप: ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः — 108 (या 27/54)
  5. गायत्री/स्तुति: उपर्युक्त 2–3 मन्त्र जोड़ें।
  6. समापन: शान्ति‑पाठ—“ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”। फल/जल का प्रसाद, दान का संकल्प।

अनुकूल सामग्री

  • पलाश/दूर्वा/बिल्व‑पत्र (उपलब्धता/परम्परा अनुसार)
  • काला तिल, सरसों का तेल/दीप, धूसर/धूम वर्ण वस्त्र
  • शिव‑चित्र/लिंग, गणेश‑चित्र

जप‑माला

रुद्राक्ष/कृष्णाजिन (परम्परा अनुसार)। श्वास सम, जिह्वा‑मृदु, नेत्र अर्ध‑निमीलित।

6) सावधानियाँ, दान/उपाय

  • दान: काला तिल, कंबल/कपास, ताम्र/लोह पात्र, धूसर/बहुरंगी वस्त्र; कुत्तों/पक्षियों को आहार।
  • सेवा: वृक्ष‑रोपण (विशेषतः पलाश), स्वच्छता, रोगी/अनाथ सहायता।
  • व्रत/नियम: सरल उपवास, अपशब्द/मिथ्या‑भाषण से परहेज़, नशा‑त्याग।
  • रत्न: लेहसुनिया (Cat’s‑eye) केवल योग्य ज्योतिर्विद के परामर्श से ही—स्वनिर्णय से न पहनें।
  • सतर्कता: भय‑कथा/अन्धविश्वास से दूर रहें; मन्त्र‑जप का उद्देश्य भीतर की शुद्धि व स्थिरता है।

उपाय परम्पराएँ भिन्न हो सकती हैं—अपनी स्थानीय/कुल‑परम्परा का सम्मान करें।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. उच्चारण में त्रुटि हो जाये तो?

भाव सर्वोपरि। धीरे‑धीरे शुद्ध उच्चारण सीखें; भीतरी नीयत व नियमितता अधिक महत्त्वपूर्ण है।

Q2. कितने दिन में फल?

यह कोई ‘तुरन्त परिणाम’ विधि नहीं। जप मन‑संस्कार बदलता है—अभ्यास, सत्कर्म, समय के साथ परिवर्तन दिखते हैं।

Q3. केवल नाम‑स्मरण चलेगा?

हाँ—“ॐ केतवे नमः/ॐ नमः शिवाय” का सजग स्मरण भी उतना ही प्रभावी है, यदि नियमित व निष्ठापूर्वक किया जाए।

Q4. केतु‑दोष के लिए क्या अनिवार्य है?

कोई ‘एक ही उपाय’ सब पर लागू नहीं। वेद‑पथ: जप‑तप‑दान‑सेवा‑स्वाध्याय—और आवश्यकता हो तो कुशल आचार्य से व्यक्तिगत मार्गदर्शन।

8) नोट्स

परम्परा‑भेद: उपर्युक्त मन्त्र लोक‑प्रचलित/परम्परागत हैं; पाठ‑भेद (मात्रा/विभक्ति) क्षेत्र अनुसार मिल सकते हैं। अपने गुरु‑परम्परा में मान्य रूप को प्राथमिकता दें।

केतवे नम:
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