Durga Chalisa and Aarti

दुर्गा चालीसा (पूर्ण) — अर्थ, लाभ (Labh), नवरात्रि पूजन‑विधि, मंत्र, उपाय

दुर्गा चालीसा (पूर्ण) — अर्थ, लाभ (Labh), नवरात्रि पूजन‑विधि, मंत्र, आरती, उपाय

1) माँ दुर्गा परिचय

माँ दुर्गा शक्ति, करुणा और धर्म‑संरक्षण की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनका स्वरूप साहस, संयम, दया और धर्म‑पालन का संयोग है। नवरात्रि में नवशक्ति का पूजन होता है—शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक नौ रूप साधक को आत्म‑विकास का मार्ग दिखाते हैं।

2) दुर्गा चालीसा (देवनागरी — पूर्ण पाठ)

(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव।)

॥ दोहा ॥ नित्तन नूतन मंगलमूर्त्ति, नित्य सुमिरन सुखद। दुर्गा दुःखदरिद्र हर, मंगल कर सहज॥ ॥ चौपाई ॥ नमो नमो दुर्गे सुख करणी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फ़ैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महा विशाल। नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥ रूप मातु कौं अधिक सुहावे। दरश करै तुहि मन हरषावे॥ तुम संसार की पालन‑कारिणि। तुम ही पालन‑हारिणि॥ अन्न‑पूर्णा अन्न द्यो दाता। सेवीत सकल जगत माता॥ भाल चन्द्र अरु भाल विराजै। कानन कुण्डल नाद सुनाजै॥ नूपुर गूँजन, कंकण रुनझुन। केलि‑रत नित करै सु‑धुनधुन॥ सिंहासन बैठी भवानी। सत्संग रत जननि भवानी॥ दैनिक दुष्ट दलन करि त्राता। भक्तन हित करि दुःख विनाशा॥ खप्पर त्रिशूल carried करनियाँ। कटि कमर में मेखल बनियाँ॥ रुधिर‑डमरु, शंख‑सुधाकर। चक्र‑गदा तथा धनु‑शर॥ शुम्भ‑निशुम्भ दानव दल मारा। महिषासुर सिर कटि सब डारा॥ धूम्रलोचन अदि असुर संहारे। चण्ड‑मुण्ड चूर‑चूर किए॥ लक्ष्मी, सरस्वती, विधिधाता। इन्द्रादिक सब देव सहाता॥ तुम समर्थ सब लोकन रानी। तुम ही हो सबकी भवानी॥ जो कोई तुम्हरो नाम उचारे। ता पर मातु कृपा बरसावे॥ जो कोई तुम्हरा ध्यान धरावे। ता पर शूल‑बाधा मिट जावे॥ भक्तन हित कर नित सेवकाई। संकट काटि, देत सुखदाई॥ दीन‑दुखी जन पर कर दया। मातु! तूं रखु प्राण की मया॥ संतन की तुम हो रखवारी। दुष्टन दलनि मर्दन‑कारी॥ कृपा करहु जब भक्त पुकारे। तुरत संकट हरहु तुम्हारे॥ जो यह चालीसा पढ़ै मन लाई। तासौ मातु! विपत्ति न आई॥ सुख‑सम्पत्ति घर आवत नित। दुख‑दारिद्र मिटत क्षण‑मित॥ ॥ समापन दोहा ॥ जगदम्ब भवानी भव‑भय हरणी, त्राहि त्राहि जननी। श्रद्धा‑भक्ति दै मातु! करुना‑सिंधु, करहु अनुग्रह दयनी॥
नोट: आपके क्षेत्र में प्रचलित पाठ/छंद जहाँ भिन्न हों, वहाँ वही रूप ग्रहण करें।

3) अर्थ‑सार (समूह‑वार)

माँ का स्वरूप

देवी शक्ति‑सार हैं—अज्ञान, भय और आलस्य का क्षय करके विवेक, साहस और करुणा देती हैं।

रक्षा और पोषण

भक्त‑पालन, अन्न‑पूर्णा, संकट‑निवारक—कठिन समय में धैर्य व समाधान‑बुद्धि देती हैं।

असुर‑विजय

महिषासुरादि दैत्य‑वध प्रतीक है—आत्म‑दोषों (काम, क्रोध, लोभ) पर विजय।

भक्ति‑फल

श्रद्धा‑पूर्वक स्मरण/पाठ से मनःशक्ति, साहस और करुणा‑भाव बढ़ते हैं; गृह‑कल्याण होता है।

4) लाभ (Labh / Benefits)

  • मानसिक‑आध्यात्मिक: साहस, करुणा, एकाग्रता और सकारात्मकता।
  • व्यावहारिक: आत्म‑अनुशासन, समय‑पालन, आत्म‑विश्वास; निर्णय‑क्षमता में वृद्धि।
  • सामाजिक: सेवा‑भाव, सहानुभूति और सहयोग—परिवार/समुदाय में सद्भाव।
  • आत्म‑विकास: भय‑निवारण, नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण; लक्ष्य‑उन्मुखता।

लाभ श्रद्धा + अभ्यास + सदाचार पर आधारित हैं।

5) पूजन‑विधि (दैनिक/नवरात्रि)

  1. संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ स्थान, माता का ध्यान; सदाचार का व्रत।
  2. दीप‑धूप/पुष्प: घी/तेल का दीप, धूप/अगर, लाल/पीले पुष्प; नैवेद्य में फल/मिष्ठान।
  3. मंत्र‑जप: बीज/गायत्री/नवर्ण मंत्र 11/27/108 बार।
  4. चालीसा पाठ: एकाग्र होकर पूर्ण पाठ; संभव हो तो अर्थ‑स्मरण।
  5. आरती/प्रसाद: आरती के बाद प्रसाद/साझा‑सेवा, कृतज्ञता।
यदि सामग्री सीमित हो: केवल जल‑पुष्प/दीप और मानसिक जप भी पर्याप्त; भाव प्रमुख।

6) मंत्र‑जप सूची

बीज मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। (11/108)

दुर्गा गायत्री

ॐ कात्यायनायै विद्महे
कन्यकुमार्यै धीमहि
तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥

नवर्ण मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नमः।

दुर्गा कवच (स्मरण)

“रक्षां करिष्यमाणे” आदि श्लोकों का दैनिक संक्षिप्त स्मरण उत्तम।

लघु ध्यान

श्वास 4‑4 ताल; मन में लाल/स्वर्ण आभा, त्रिशूल/सिंह वाहन का ध्यान; 3–5 मिनट।

7) दुर्गा आरती

जय अम्बे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥ जय अम्बे गौरी॥ मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को I उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन निको॥ जय अम्बे गौरी॥ कनक सामान कलेवर, रक्ताम्बर राजै I रक्त-पुष्प गलमाला, माला, कण्ठन पर साजै॥ जय अम्बे गौरी॥ केहरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी I सुर-नर-मुनि-जन सेवत तिनके दुखहारी॥ जय अम्बे गौरी॥ कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती I कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति॥ जय अम्बे गौरी॥ शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर-घातीI धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मतमाती॥ जय अम्बे गौरी॥ चण्ड मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे I मधु - कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय अम्बे गौरी॥ ब्रम्हाणी रूद्राणी, तुम कमला रानी I आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे गौरी॥ चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरूँ I बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरू॥ जय अम्बे गौरी॥ तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता I भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे गौरी॥ भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी I मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ जय अम्बे गौरी॥ कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती I श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे गौरी॥ श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे I कहत शिवानन्द स्वामी, सुख - सम्पत्ति पावे॥ जय अम्बे गौरी॥

8) नियम‑निषेध व सावधानियाँ

  • सात्त्विक आहार‑विचार; कटु‑वाणी/अहंकार/आलस्य से दूरी।
  • दान शुद्ध कमाई से, विनम्रता के साथ; अन्न/वस्त्र/औषधि/शिक्षा‑सहायता श्रेष्ठ।
  • नियमितता प्राथमिक—थोड़ा समय भी दैनिक जप/स्मरण को दें।

9) सरल उपाय (घर पर)

सेवा‑दान

  • कन्या‑पूजन/अन्न‑दान/वस्त्र‑दान/शिक्षा‑सहायता।
  • गौ‑सेवा/वृक्ष‑रोपण/स्वच्छता।

अनुशासन

  • समय‑पालन, कृतज्ञता‑डायरी, 10 मिनट ध्यान।
  • नकारात्मक आदतों पर संयम; लक्ष्य‑ट्रैकिंग।

10) कथा‑सार व प्रतीक

महिषासुर‑मर्दिनी रूप में देवी का सिंह पर आरूढ़ होना अशुभ प्रवृत्तियों (तमोगुण) पर सद्गुणों (सत्त्व) की विजय का प्रतीक है। अनेक भुजाएँ विविध शक्तियों/कर्तव्यों‑जिम्मेदारियों का संकेत देती हैं—जीवन में संतुलन और साहस आवश्यक है।

11) त्वरित सारणी

विषयसंक्षेप
उचित समयप्रातः/संध्या; नवरात्रि के नौ दिन विशेष।
आवश्यक सामग्रीदीप‑धूप, पुष्प, स्वच्छ जल, नैवेद्य; उपलब्धता अनुसार।
मुख्य मंत्रॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। / ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नमः।
आचरणसात्त्विकता, सेवा‑भाव, साहस, करुणा, संयम।
लाभआत्म‑विश्वास, एकाग्रता, साहस, गृह‑सौहार्द, लक्ष्य‑स्थिरता।

12) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या दुर्गा चालीसा का दैनिक पाठ उचित है?

हाँ—दैनिक एक बार पर्याप्त है; नवरात्रि/शुक्रवार/मंगलवार को विशेष।

Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।

Q3. क्या केवल लिप्यंतरण में पाठ कर सकते हैं?

हाँ—देवनागरी सर्वोत्तम; पर शुरुआत में लिप्यंतरण सहायक।

Q4. गलत उच्चारण से हानि?

उद्देश्य भाव और एकाग्रता है; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।

Q5. क्या बिना सामग्री केवल पाठ?

हाँ—भाव सर्वोपरि; दीप/धूप/जल‑पुष्प से सरल पूजा भी पर्याप्त।

13) नोट्स

परंपरा‑सूचक: चालीसा/आरती पाठ में क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म अंतर मिलते हैं। यह पोस्ट भक्त‑प्रचलित रूप का संकलन है। आपके क्षेत्र में जो रूप मान्य है, वही ग्रहण करें।

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