Shani Chalisa

शनि चालीसा (पूर्ण) — अर्थ, लाभ (Labh), पूजा‑विधि, मंत्र, उपाय

1) शनि देव परिचय

शनि देव सूर्य के पुत्र और छाया/संज्ञा से उत्पन्न माने जाते हैं। वे न्याय और कर्म‑फल के देव हैं—अनुशासन, परिश्रम और सत्य के अनुरूप फल देना उनका स्वभाव है। लोकप्रिय मान्यताओं में साढ़ेसातीढैय्या के काल को आत्म‑सुधार, संयम तथा सेवा‑दान का समय समझा जाता है।

पूजा में भाव सर्वोपरि: शास्त्र व परंपरा यह स्पष्ट करते हैं कि साधनों से अधिक भाव मायने रखता है। यदि तेल/तिल/उड़द उपलब्ध न हों तो भी साधक सत्कार‑भाव के साथ दीप‑धूप‑जल‑पुष्प व मंत्र‑जप से पूजा कर सकता/सकती है।

2) श्री शनि चालीसा (देवनागरी — पूर्ण पाठ)

(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव।)

॥ दोहा ॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करन कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥ ॥ चौपाई ॥ जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥ परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥ कुण्डल श्रवण चमचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥ देव दनुज ऋषि मुनि जन तेवा। करत सदा जगनाथि सेवा॥ ग्रह नृप तंह विचरत लोकाँ। तिनकर करत सदा परलोकाँ॥ रवि तनय शनि देव दयाला। नाम लेत हरि हरि जस हाला॥ भय निवारक दीनन के रक्षक। दुष्ट दलन करि सुभ गुण वर्धक॥ सूर्य पुत्र प्रभु शनिवर्य। सेवक जन के सदा सहाय्य॥ घोर काल भी टलि जात। जो शनि स्मारत पल बिनु बात॥ पिंगल, क्रूर, मंद, छाया। नाम अनेक बिरुद अति माया॥ न्यायप्रिय कर कठोर दंडा। होंहि कृपालु बिनसै सब खंडा॥ जो नर करै शनि चालीसा। होय न दीर्घ दु:खनि की पीसा॥ भक्त करें जो श्रद्धा धारा। बाधा कटै, खुले संसारा॥ संतन मानत तुम्हरी वंदा। प्रभु! करहु अब भक्त पसंदा॥ दीन दयालु यश गुणखाना। कृपादृष्टि धरि होहु हिताना॥ जो यह पाठ करे मन लाई। सुर नर मुनि सब होहि सहायि॥ शनि प्रसन्न भए जब कोई। संकट टरै, बढ़े सब सोई॥ राज्य पावे जो धरै ध्याना। धन धान्य सुख भरै खजाना॥ भूत प्रेत बाधातें टरता। रोग शोक संताप सब हरता॥ नृप पद पावत नर भवि कोई। जो यह चालीसा पढ़त होई॥ गृह क्लेश संताप नसावो। शत्रु‑संकेत तुरत दौड़ावो॥ जो सुमिरत शनि नाम दयाला। मिटै पाप, बढ़ै सब भाला॥ मंगल, बुध, गुरु, शुक्रमानी। सबहि करैं सेवत हित जानी॥ राहु‑केतु शनिचर भैया। सकल ग्रहन में श्रेष्ठ कहैया॥ कृपा करें जब शनि महाराजा। दरिद्र मिटे, कटै सब काजा॥ जो धरि भाव करै सेवाई। ता पर कृपा करें रघुराई॥ नित नेमत नूतन सुख पावा। सकल मनोरथ सिद्धि निवावा॥ प्रेम‑भक्ति जो धरै दुहाई। शनि सहसा देत कृपाई॥ विनय करूँ कर जोरि कृपा करि। हरहु क्लेश, करहु सब भली॥ ॥ समापन दोहा ॥ नित नूतन हिय हर्षित रहहिं, शंकर‑सोम समर्थ। रवि‑तनय शनि कृपा भई, होय सिद्धि परवर्त्त॥
नोट: जहाँ‑जहाँ आपकी परंपरा में पाठ भिन्न हो, वहाँ वही रूप ग्रहण करें।

3) अर्थ‑सार (पंक्ति‑समूह अनुसार संक्षेप)

न्याय और अनुशासन

शनि देव कर्मानुसार दण्ड‑वरदान देते हैं; वे न्यायप्रिय हैं। इसलिए साधक को सत्य, अनुशासन, परिश्रम और सेवा को जीवन‑आचरण में उतारना चाहिए।

संकट‑निवारण का भाव

श्रद्धा से स्मरण/पाठ करने पर भय‑कंटक घटते हैं, मन स्थिर होता है और विवेक का प्रकाश बढ़ता है, जिससे व्यावहारिक समाधान दिखते हैं।

कृपा का माध्यम

दान, सेवा, गुरु‑सम्मान और संयम—ये कृपा प्राप्ति के प्रमुख माध्यम बताए गए हैं; यश‑वृद्धि, कष्ट‑क्षय व धैर्य‑बल में वृद्धि होती है।

भक्त‑हितैषी

भक्त भाव रखने पर गृह‑कलह व शत्रु‑संकेत शिथिल होते हैं; दीर्घकाल में उत्तम प्रतिष्ठा और लक्ष्योन्मुखता विकसित होती है।

4) लाभ (Labh / Benefits)

  • मानसिक‑आध्यात्मिक: धैर्य, आत्म‑अनुशासन, निर्णय‑शक्ति व करुणा का विकास।
  • व्यावहारिक: समय‑पालन, मितव्ययिता, सात्त्विकता; दीर्घकालीन लक्ष्यों में स्थिरता।
  • सामाजिक: सेवा‑भाव, गुरु‑जनों व श्रमिक वर्ग के प्रति सम्मान; सद्भावना।
  • आत्म‑सुधार: दोष‑परिमार्जन, आलस्य/भय/क्रोध पर संयम; सत्कर्म की आदत।
  • ग्रह‑शांति: साढ़ेसाती/ढैय्या में मनोबल, धैर्य और स्पष्टता बढ़ना (श्रद्धा‑आचरण के साथ)।

लाभ श्रद्धा + सतत अभ्यास + नैतिक आचरण पर आधारित हैं।

5) शनिवार पूजा‑विधि (HowTo)

  1. संकल्प: स्नान‑ध्यान के बाद, सत्कर्म का निश्चय करें।
  2. दीप‑धूप: तिल के तेल का दीपक; अगर‑धूप; साफ नीला/काला पुष्प।
  3. आसन: उत्तर/पूर्वाभिमुख होकर धीमी, स्थिर श्वास के साथ बैठें।
  4. मंत्र‑जप: “ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” 11/27/108 बार।
  5. चालीसा पाठ: देवनागरी पाठ, फिर संभव हो तो अर्थ‑स्मरण।
  6. आरती व दान: आरती, काली उड़द/तिल/तेल/जूते‑कंबल का दान संकल्प।
यदि सामग्री उपलब्ध न हो: केवल जल‑पुष्प, दीप‑धूप और मंत्र‑स्मरण पर्याप्त; भाव प्रधान।

6) मंत्र‑जप सूची

बीज मंत्र

ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। (11/108)

नवग्रह‑शनि

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

शनि गायत्री

ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे, चायापुत्राय धीमहि, तन्नः शनिः प्रचोदयात्॥

क्षमा‑प्रार्थना

हे शनिदेव, अनुशासन, परिश्रम और निष्काम भाव प्रदान करें; क्लेश‑विघ्न हरें।

लघु ध्यान

श्वास 4‑4 ताल में; मन में काला/नील वर्ण, न्याय‑तराजू का ध्यान; 3–5 मिनट।

7) शनि आरती (संक्षेप)

जय देव जय देव जय शनि देव, करुणा निधान दयाल। रवि‑तनय भक्तन के रक्षक, हर लो जन के जंजाल॥ (आपके क्षेत्र में प्रचलित पूर्ण आरती का पाठ/गायन करें)

8) नियम‑निषेध व सावधानियाँ

  • क्रोध, कटु‑वाणी, छल‑कपट से दूरी रखें; सत्य, श्रम और सेवा अपनाएँ।
  • दान शुद्ध कमाई से और विनम्र भाव से करें।
  • शनिवार को अनावश्यक वृक्ष‑छेदन, तेल/तिल का अपव्यय, वचन‑भंग से बचें।
  • नियमितता रखें—कम समय हो तो भी नित्य 3–5 मिनट जप/स्मरण।

9) सरल उपाय (घर पर)

सेवा‑दान

  • काली उड़द, तिल, तेल, कंबल/जूते‑चप्पल, लोहा इत्यादि का दान।
  • मजदूर/वृद्ध/जरूरतमंद की निस्वार्थ सहायता।

अनुशासन

  • समय‑पालन, परिश्रम, मितव्ययिता और लक्ष्य‑ट्रैकिंग की आदत।
  • अनुचित लाभ/ईर्ष्या से दूरी—यही शनि‑उपासना का सार है।

10) कथा‑सार एवं प्रतीकात्मकता

लोककथाओं और पुराणकथाओं में शनि देव का चरित्र न्याय और अनुशासन का प्रतीक है। शनि की धीमी चाल जीवन में दीर्घकालिक कर्म‑परिणाम का संकेत देती है—आज का श्रम कल का फल निर्माण करता है।

प्रतीकात्मक रूप से नील/काला रंग, लोहा, तिल का तेल, पीपल आदि दृढ़ता, स्थिरता और यथार्थ‑दृष्टि का द्योतक है।

11) त्वरित सारणी (Quick Tables)

विषयसंक्षेप
उचित समयशनिवार; सूर्योदय के बाद/सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व; अमावस्या/शनि जयंती विशेष।
आवश्यक सामग्रीतिल का तेल, नीले/काले पुष्प, धूप/अगर, जल/पुष्प; उपलब्धता अनुसार सरल रखें।
मुख्य मंत्रॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
दान‑निर्देशकाली उड़द, तिल, तेल, लोहा, काले वस्त्र/जूते‑कंबल—शुद्ध कमाई से।
आचरणसत्य, परिश्रम, समय‑पालन, सेवा‑भाव, मितव्ययिता।

12) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या शनि चालीसा का पाठ रोज़ करना उचित है?

हाँ। दैनिक एक बार पर्याप्त है। शनिवार के दिन विशेष श्रद्धा से करें।

Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?

अनिवार्य नहीं। स्वास्थ्य‑अनुकूल होने पर लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।

Q3. क्या स्त्रियाँ/गृहस्थ सभी कर सकते हैं?

हाँ—धर्म, आयु और सामाजिक स्थिति से परे; भाव, संयम और सेवा‑भाव प्रमुख है।

Q4. कितनी देर लगता है?

एकाग्रता के साथ सामान्यतः 5–8 मिनट।

Q5. साढ़ेसाती/ढैय्या में क्या विशेष करें?

नियमित जप/पाठ, सेवा‑दान, परिश्रम‑अनुशासन; भय/अंध‑विश्वास से दूरी रखें।

Q6. क्या तेल अर्पण अनिवार्य है?

अनिवार्य नहीं—भाव सर्वोपरि। स्थान/परंपरा अनुसार करें।

Q7. गलत उच्चारण से हानि?

उद्देश्य भाव और एकाग्रता है। सुधार की नीयत से सीखें; भय न रखें।

Q8. क्या अंग्रेज़ी/लिप्यंतरण में पाठ कर सकते हैं?

हाँ—देवनागरी सर्वोत्तम; पर शुरुआत में लिप्यंतरण सहायक हो सकता है।

13) नोट्स

परंपरा‑सूचक: चालीसा/आरती के पाठ में क्षेत्रानुसार सूक्ष्म अंतर मिलते हैं। यह पोस्ट भक्त‑प्रचलित रूप का संकलन है। आपकी परंपरा में जो रूप मान्य है, वही ग्रहण करें।

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