Daridrya Dahan Shivastotram

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् — पूर्ण श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित (Labh, Vidhi, Mantra)

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् पूर्ण श्लोक देवनागरी + हिन्दी अर्थ सहित

पाठ‑भेद: क्षेत्र/मुद्रण के अनुसार लघु‑अन्तर सम्भव। नीचे दिया पाठ लोक‑प्रचलित रूप पर आधारित है; अपने गुरु‑परम्परा में स्वीकृत पाठ को प्राथमिकता दें।

1) दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित

(लोक‑प्रचलित 8‑श्लोक पाठ; अर्थ—सरल हिन्दी में भावार्थ।)

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 1॥
अर्थ: जो विश्व के स्वामी हैं, नरक‑रूपी दुःखसागर से तारने वाले हैं, जिनका नाम श्रवण‑अमृत है और जो भाल पर चन्द्रमा धारण करते हैं; कर्पूर‑प्रभा जैसे धवल जटाधारी—ऐसे दारिद्र्य‑दुःख को दग्ध करने वाले शिव को नमस्कार।
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 2॥
अर्थ: जो गौरी के अति प्रिय हैं, चन्द्रमा की कला धारण करते हैं, काल के भी अन्तक हैं, नागराज को कंकण रूप में धारण करते हैं; गंगाधर हैं और गजराज का दमन करने वाले हैं—ऐसे शिव को नमन।
भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय ।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 3॥
अर्थ: भक्तों के प्रिय, संसाररूपी रोग व भय का नाश करने वाले, कठिन भवसागर से पार लगाने वाले, ज्योतिर्मय और अपने गुण‑नाम के अनुरूप नर्तन करने वाले—दारिद्र्य‑दुःख का दहन करने वाले शिव को वन्दन।
चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 4॥
अर्थ: जो व्याघ्र‑चर्म वस्त्र धारण करते हैं, चिताभस्म से विभूषित हैं, त्रिनेत्रधारी हैं, मणियों के कुण्डलों से शोभित हैं और पायल‑ध्वनिरूप अलंकरण सहित जटाधारी हैं—ऐसे शिव दारिद्र्य‑दुःख का नाश करते हैं।
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 5॥
अर्थ: पंचमुख स्वरूप, फणिराज से विभूषित, सुवर्ण‑कान्ति‑सम प्रभामय, तीनों लोकों के द्वारा वन्दित; काशी (आनन्द‑भूमि) में वर देने वाले और तामस‑विनाशक—उन शिव को प्रणाम।
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 6॥
अर्थ: जो सूर्य को प्रिय हैं, भवसागर से तराते हैं; कालान्तक हैं, ब्रह्मा (कमलासन) जिनकी पूजा करते हैं; त्रिनेत्रधारी एवं शुभ‑लक्षणों से युक्त—ऐसे शिव दारिद्र्य‑दुःख का दहन करते हैं।
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरर्चिताय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 7॥
अर्थ: जो श्रीराम के प्रिय हैं और रघुनाथ को वर देने वाले हैं; सर्पों के प्रिय हैं; नरक‑सागर से तारने वाले हैं; पुण्यात्माओं में भी अत्यन्त पुण्यवान, देवताओं द्वारा पूजित—उन शिव को नमस्कार।
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतात्प्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।
मातंगचर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 8॥
अर्थ: जो मुक्तियों के ईश्वर हैं, फलदायक हैं, गणों के ईश्वर हैं; गीत/स्तुति के प्रिय, वृषभ (नन्दी) जिनका वाहन है; हाथी‑चर्म वस्त्रधारी—वे महेश्वर सदैव दारिद्र्य‑दुःख का नाश करने वाले हैं।
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्॥ 9॥
अर्थ: समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करने वाले और पुत्र – पौत्रादि वंश परम्परा को बढ़ाने वाले, वशिष्ठ द्वारा निर्मित इस स्तोत्र का जो भक्त नियमित रूप से तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक प्राप्त होता है।
(लोक‑मान्य पाठ; कुछ संकलनों में श्लोक‑क्रम/शब्द‑रूप में सूक्ष्म अन्तर मिलते हैं।)

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • आर्थिक‑मानसिक बाधा‑क्षय: ‘दारिद्र्य‑दुःख‑दहन’—अभाव/अस्वीकृति/निम्न आत्म‑विश्वास जैसी कमी‑भावना घटती है।
  • वैराग्य‑विवेक: चिताभस्म/श्मशान‑विहार के बोध से अनित्यता‑स्मरणस्व‑संयम पनपता है।
  • कर्म‑समत्व: ‘विश्वेश्वर’ भाव से फल‑चिन्ता घटे, कर्त्तव्य‑निष्ठा और निधि‑साधना में स्पष्टता बढ़े।
  • भय‑निवारण: ‘भावरोग‑भयापह’—ऋण/हानि/असुरक्षा‑भाव पर मनोबल।
  • समग्र कल्याण: त्रिनेत्र/गंगाधर/रुद्र‑तत्त्व—शरीर‑मन‑बुद्धि का संतुलन; अंततः मुक्ति‑मार्ग की ओर प्रवृत्ति।

नोट: लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सत्कर्म से प्रकट होते हैं; यह सांस्कृतिक/आध्यात्मिक मार्गदर्शन है।

3) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान के बाद पूर्व/उत्तराभिमुख आसन; शुद्ध स्थान, दीप‑ज्योति।
  2. ध्यान: नेत्र मूँद कर शिव‑लिङ्ग/महादेव का ध्यान; 11/21 श्वासों तक शांत जप।
  3. मंत्र‑जप: ॐ नमः शिवाय — 108 बार (रुद्राक्ष माला)
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिये 8 श्लोक क्रम से; प्रत्येक के बाद अर्थ पढ़ें/मनन करें।
  5. आरती/प्रार्थना: “ओं जय शिव ओंकारा”; अंत में “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”।
समय‑सुझाव: सोमवार/प्रदोष/महाशिवरात्रि विशेष; पर दैनिक 5–10 मिनट भी शुभ।
उपवास/दान: सामर्थ्य अनुसार अन्न/वस्त्र/जल‑सेवा; पीपल/बिल्व वृक्ष‑रोपण।

4) मंत्र‑सूची

पञ्चाक्षरी

ॐ नमः शिवाय (108)

महामृत्युंजय

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

शिव‑गायत्री

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

5) शिव आरती (संक्षेप)

ॐ जय शिव ओंकारा… पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें

6) नियम‑सुझाव

  • सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/कटु‑वाणी/अहंकार से दूरी।
  • नियमितता प्राथमिक—कम समय में भी प्रतिदिन अभ्यास।
  • ऋण/आय‑व्यय में अनुशासन: बजट, बचत, दान—कर्म + साधना का संतुलन।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या स्तोत्र केवल सावन/सोमवार को ही पढ़ें?

दैनिक पाठ भी कर सकते हैं; सोमवार/प्रदोष/शिवरात्रि में विशेष फलदायी।

Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?

नहीं; स्वास्थ्यानुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें—भाव सर्वोपरि।

Q3. अर्थ पढ़ना ज़रूरी है?

देवनागरी पाठ मूल; अर्थ से भाव‑समझ पुष्ट—धीरे‑धीरे उच्चारण सीखें।

Q4. कौन‑सा आसन/दिशा?

कुश/ऊन आसन; पूर्व/उत्तराभिमुख; रीढ़ सीधी; मोबाइल साइलेंट।

Q5. कितनी बार पढ़ें?

एक बार पर्याप्त; इच्छा हो तो 3/5/11 बार—पर नियमितता अधिक महत्वपूर्ण।

8) नोट्स

परंपरा‑सूचक: श्लोक‑रूप/क्रम में सूक्ष्म भिन्नताएँ मिल सकती हैं। अपने गुरुवर/परम्परा में स्वीकृत पाठ का अनुसरण करें।

उद्देश्य: सांस्कृतिक/आध्यात्मिक जानकारी; चिकित्सकीय/कानूनी/वित्तीय सलाह नहीं।

उच्चारण‑सहाय: आरम्भ में धीरे‑धीरे पढ़ें; कठिन शब्दों को अक्षर‑विच्छेद के साथ बोलें—जैसे “भु‑ज‑गा‑धि‑प‑कङ्‑क‑ण‑ा‑य”।

हर हर महादेव
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