Daridrya Dahan Shivastotram
दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् पूर्ण श्लोक देवनागरी + हिन्दी अर्थ सहित
1) दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित
(लोक‑प्रचलित 8‑श्लोक पाठ; अर्थ—सरल हिन्दी में भावार्थ।)
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 1॥
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 2॥
उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय ।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 3॥
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 4॥
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 5॥
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 6॥
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरर्चिताय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 7॥
गीतात्प्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।
मातंगचर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥ 8॥
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्॥ 9॥
2) लाभ (Labh / Benefits)
- आर्थिक‑मानसिक बाधा‑क्षय: ‘दारिद्र्य‑दुःख‑दहन’—अभाव/अस्वीकृति/निम्न आत्म‑विश्वास जैसी कमी‑भावना घटती है।
- वैराग्य‑विवेक: चिताभस्म/श्मशान‑विहार के बोध से अनित्यता‑स्मरण व स्व‑संयम पनपता है।
- कर्म‑समत्व: ‘विश्वेश्वर’ भाव से फल‑चिन्ता घटे, कर्त्तव्य‑निष्ठा और निधि‑साधना में स्पष्टता बढ़े।
- भय‑निवारण: ‘भावरोग‑भयापह’—ऋण/हानि/असुरक्षा‑भाव पर मनोबल।
- समग्र कल्याण: त्रिनेत्र/गंगाधर/रुद्र‑तत्त्व—शरीर‑मन‑बुद्धि का संतुलन; अंततः मुक्ति‑मार्ग की ओर प्रवृत्ति।
नोट: लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सत्कर्म से प्रकट होते हैं; यह सांस्कृतिक/आध्यात्मिक मार्गदर्शन है।
3) जप/पूजन‑विधि (सरल)
- संकल्प: स्नान के बाद पूर्व/उत्तराभिमुख आसन; शुद्ध स्थान, दीप‑ज्योति।
- ध्यान: नेत्र मूँद कर शिव‑लिङ्ग/महादेव का ध्यान; 11/21 श्वासों तक शांत जप।
- मंत्र‑जप: ॐ नमः शिवाय — 108 बार (रुद्राक्ष माला)
- स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिये 8 श्लोक क्रम से; प्रत्येक के बाद अर्थ पढ़ें/मनन करें।
- आरती/प्रार्थना: “ओं जय शिव ओंकारा”; अंत में “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”।
4) मंत्र‑सूची
पञ्चाक्षरी
ॐ नमः शिवाय (108)
महामृत्युंजय
ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव‑गायत्री
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
5) शिव आरती (संक्षेप)
6) नियम‑सुझाव
- सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/कटु‑वाणी/अहंकार से दूरी।
- नियमितता प्राथमिक—कम समय में भी प्रतिदिन अभ्यास।
- ऋण/आय‑व्यय में अनुशासन: बजट, बचत, दान—कर्म + साधना का संतुलन।
7) सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या स्तोत्र केवल सावन/सोमवार को ही पढ़ें?
दैनिक पाठ भी कर सकते हैं; सोमवार/प्रदोष/शिवरात्रि में विशेष फलदायी।
Q2. क्या उपवास अनिवार्य है?
नहीं; स्वास्थ्यानुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें—भाव सर्वोपरि।
Q3. अर्थ पढ़ना ज़रूरी है?
देवनागरी पाठ मूल; अर्थ से भाव‑समझ पुष्ट—धीरे‑धीरे उच्चारण सीखें।
Q4. कौन‑सा आसन/दिशा?
कुश/ऊन आसन; पूर्व/उत्तराभिमुख; रीढ़ सीधी; मोबाइल साइलेंट।
Q5. कितनी बार पढ़ें?
एक बार पर्याप्त; इच्छा हो तो 3/5/11 बार—पर नियमितता अधिक महत्वपूर्ण।
8) नोट्स
परंपरा‑सूचक: श्लोक‑रूप/क्रम में सूक्ष्म भिन्नताएँ मिल सकती हैं। अपने गुरुवर/परम्परा में स्वीकृत पाठ का अनुसरण करें।
उद्देश्य: सांस्कृतिक/आध्यात्मिक जानकारी; चिकित्सकीय/कानूनी/वित्तीय सलाह नहीं।
उच्चारण‑सहाय: आरम्भ में धीरे‑धीरे पढ़ें; कठिन शब्दों को अक्षर‑विच्छेद के साथ बोलें—जैसे “भु‑ज‑गा‑धि‑प‑कङ्‑क‑ण‑ा‑य”।