Rinharta Ganesh Stotra

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र — पूर्ण श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित (Labh, Puja Vidhi)

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (ऋणमोचन/ऋणविमोचन) पूर्ण श्लोक + हिन्दी अर्थ

1) ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र — सभी श्लोक देवनागरी में हिन्दी अर्थ सहित

(लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ संभव। अर्थ—सरल हिन्दी भावार्थ; उच्चारण में त्रुटि हो तो भी भय न रखें, भाव सर्वोपरि है।)

॥ ध्यान ॥

ॐ सिन्दूर‑वर्णं द्वि‑भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म‑दले निविष्टम् ।
ब्रह्मादि‑देवैः परि‑सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
अर्थ: सिन्दूर‑वर्ण, द्विभुज, लम्बोदर, कमलदल पर विराजमान प्रभु—जिनकी सेवा ब्रह्मा आदि देव और सिद्धगण करते हैं—ऐसे प्रथम‑पूज्य श्री गणेश को मेरा प्रणाम।

॥ मूल‑पाठ ॥

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्पूजितः फलसिद्धये ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्माजी ने जिन गणेशजी की विधिपूर्वक पूजा कर सृष्टि‑कार्य में सिद्धि पाई, वे पार्वती‑नन्दन सदैव मेरे ऋणों का नाश करें।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: त्रिपुरासुर‑वध से पहले शिवजी ने जिन गणेशजी की आराधना कर कार्य‑सिद्धि पायी, वही पार्वती‑सुत मेरे समस्त ऋण‑कष्ट हरें।
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुना अर्चितः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: हिरण्यकश्यप आदि दैत्यों के विनाश हेतु स्वयं विष्णु द्वारा जिनकी पूजा हुई—वही पार्वती‑नन्दन मेरे ऋण बाधाएँ दूर करें।
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: महिषासुर‑वध से पूर्व देवी ने जो गणनाथ की पूजा की, वे श्रीगणेश मेरे आर्थिक‑संकट व ऋण का नाश करें।
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: तारकासुर‑वध से पूर्व कार्तिकेय (कुमार) द्वारा पूजित गणेश—वे ही मेरे ऋण‑क्लेश दूर करें।
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि‑सिद्धये ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: सूर्यदेव ने अपनी उज्ज्वल आभा की सिद्धि के लिए जिन गणेश का पूजन किया—वे श्रीगणपति मुझे ऋणमुक्ति दें।
शशिना कान्तिवृद्ध्यर्थं पूजितो गण‑नायकः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: चन्द्रदेव ने सौम्य‑कान्ति की वृद्धि हेतु जिन गण‑नायक की आराधना की—वे पार्वती‑पुत्र मेरे ऋणों का नाश करें।
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः ।
सदैव पार्वती‑पुत्रः ऋण‑नाशं करोतु मे ॥
अर्थ: तपों के संरक्षण हेतु महर्षि विश्वामित्र ने जिन गणेशजी का पूजन किया—वे विघ्नहर्ता मुझे ऋण‑बंधन से मुक्त करें।
इदं त्वृणहरस्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनम् ।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहितः ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत् ॥
अर्थ: यह ऋण‑हरण स्तोत्र घोर दारिद्र्य‑नाशक है। जो साधक एकाग्रता से प्रतिदिन एक बार, एक वर्ष तक इसका पाठ करे—वह दरिद्रता छोड़ समृद्धि (कुबेर‑समान) को प्राप्त करे।
परम्परा‑संकेत: पाठ‑रूप “ऋणहर्ता/ऋणमोचन/ऋणविमोचन गणपति स्तोत्र” नामों से प्रचलित है; पंक्तियों में लघु भेद संस्करण/क्षेत्रानुसार मिल सकते हैं।

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • ऋण‑कष्ट से मुक्ति का संकल्प: नियमित पाठ से मानसिक दबाव घटता है, साहस व स्पष्टता बढ़ती है—व्यवहारिक निर्णय बेहतर होते हैं।
  • विघ्नों का क्षय: गणेश‑पूजन से कार्य‑सिद्धि, विलम्ब/रुकावटें कम—आय के मार्ग खुलते हैं।
  • समृद्धि‑चेतना: ‘कुबेर‑समता’ का संकेत—परिश्रम + संयम + सदुपयोग की वृत्ति विकसित।
  • चित्त‑शुद्धि व धैर्य: बीज‑मंत्र जप के साथ स्तोत्र‑पाठ से नकारात्मकता कम, प्रयासों में स्थिरता।

नोट: आध्यात्मिक लाभ अभ्यास से फलित होते हैं; आर्थिक निर्णयों में यथार्थ‑योजना/सलाह आवश्यक रखें।

3) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध आसन; ऋण‑मुक्ति, परिश्रम, सत्य‑व्यवहार हेतु संकल्प लें।
  2. दीप/नैवेद्य: घी/तिल का दीप; मोदक/गुड़/दूर्वा/लाल पुष्प; स्वच्छ जल से अर्घ्य।
  3. मंत्र‑जप: ॐ गं गणपतये नमः — 108 बार।
  4. स्तोत्र‑पाठ: ऊपर दिये ध्यान‑श्लोक के साथ सम्पूर्ण स्तोत्र; अर्थ पढ़ते हुए मन में धारण करें।
  5. आरती‑प्रार्थना: “जय गणेश जय गणेश…”; अंत में शान्ति‑पाठ—“ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”。
⏱️ समय‑सुझाव: चतुर्थी/संकष्टी/बुधवार/दैनिक प्रातः‑संध्या; पर नियमितता प्रधान है।

4) मंत्र‑सूची

बीज‑मंत्र

ॐ गं गणपतये नमः (108)

गणेश गायत्री

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥

विघ्नहरण मंत्र

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

5) गणेश आरती (संक्षेप)

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा… (पूर्ण आरती गाएँ/पढ़ें)

6) नियम‑सुझाव

  • सात्त्विक आहार‑विचार; असत्य/आलस्य/अव्यसनी प्रवृत्ति से दूरी।
  • आय‑व्यय का लेखा रखें; विलास/आवेगपूर्ण खर्च टालें—इसी को साधना से बल मिलता है।
  • सेवा/दान—अन्न/वस्त्र/विद्या‑सहाय; वृक्षारोपण; परिश्रम व करुणा।

7) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. कर्ज कब तक उतरने की आशा रखें?

यह स्तोत्र मनोबल/अनुशासन बढ़ाता है—साथ में व्यावहारिक योजना (बजट, अतिरिक्त आय, कर्ज‑पुनर्गठन) अपनाएँ।

Q2. क्या उपवास आवश्यक है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार रखें।

Q3. केवल अर्थ पढ़ना ठीक है?

देवनागरी मूल‑पाठ सर्वोत्तम; अर्थ से समझ पुष्ट होती है—धीरे‑धीरे उच्चारण सीखें।

Q4. भूल/उच्चारण गलत हो जाए तो?

भाव सर्वोपरि; सीखते हुए सुधारें—भय न रखें।

8) नोट्स

परंपरा‑सूचक: पाठ‑रूप में सूक्ष्म भेद मिल सकते हैं; अपने गुरु/परम्परा में प्रचलित पाठ को प्राथमिकता दें।

गणपति बप्पा मोरया
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