Chandra Mantra

चन्द्र मंत्र, बीज मंत्र, नवग्रह स्तोत्र, चन्द्र गायत्री, कवच हिन्दी अर्थ सहित

चन्द्र मंत्र (पूर्ण संग्रह) — बीज/नवग्रह/गायत्री हिन्दी अर्थ सहित

1) चन्द्र मंत्र — देवनागरी + हिन्दी अर्थ

(पारम्परिक/लोक‑प्रचलित पाठ; क्षेत्र/मुद्रणानुसार सूक्ष्म भिन्नताएँ मिल सकती हैं। अर्थ—सरल हिन्दी भावार्थ।)

1. चन्द्र बीज मंत्र (Beej Mantra)

ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं सः चन्द्राय नमः ॥
अर्थ: शीतल‑करुणामय, मन‑स्थिरता देने वाले चन्द्रदेव को प्रणाम—यह बीज ध्वनियाँ (क्ष्रां/क्ष्रीं/क्ष्रौं) चन्द्र‑तत्त्व को जाग्रत करने का पारम्परिक माध्यम हैं।
(एक वैकल्पिक प्रचलित रूप) — ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः ॥
अर्थ: ‘श्र’ उच्चारण कुछ परम्पराओं में प्रयुक्त होता है; भावना और एकाग्रता मुख्य हैं।

2. नवग्रह चन्द्र मंत्र (Paurāṇic Mantra)

दधीशंखतुशाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥
अर्थ: दही, शंख और हिम जैसी श्वेत आभा वाले, क्षीरसागर से उत्पन्न, शिव के मस्तक के भूषण चन्द्र को नमस्कार।

3. वैदिक सोम‑मंत्र (संक्षेप जप‑रूप)

ॐ सोमाय नमः ॥
अर्थ: ‘सोम’—अमृत, शीतलता और मन‑रस का प्रतीक। यह सरल जप संध्या/चन्द्रोदय में किया जा सकता है।

4. चन्द्र गायत्री

ॐ क्षीरसागरसम्भूताय विद्महे
अमरवर्याय धीमहि
तन्नो शशांकः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: हम क्षीरसागर से उत्पन्न, देवश्रेष्ठ चन्द्र का ध्यान करते हैं—वे हमारे बुद्धि‑मन को प्रेरित/प्रकाशित करें।

5. चन्द्र स्तुति (संक्षेप)

शशिधरं शशांकं शशिनं शीतरश्मिम्
शरणमहं प्रपद्ये शरण्यं सर्वलोकानाम् ॥
भावार्थ: शशि‑धारी, शीतल किरणों वाले चन्द्रदेव—आप सबके शरणदाता हैं; मैं आपकी शरण लेता हूँ।

6. चन्द्र‑कवच (लघु संरक्षण‑सूत्र)

चन्द्रः पातु शिरो देशे, ललाटे शशिधाकरः ।
नेत्रे पातु निशानाथो, कर्णयोः करुणानिधिः ॥
नासायां शीतरश्मिः, मुखे सोमो मनोहरः ।
कण्ठे कलानिधिः पातु, हृदि सौम्यो दयानिधिः ॥
भावार्थ: चन्द्रदेव शिर से हृदय तक सर्वत्र रक्षा करें—शीतलता, करुणा और सौम्यता का संचार हो। (विस्तृत कवच संस्करण परम्परा‑विशिष्ट है; यहाँ लघु भावार्थ‑रूप दिया गया है।)

7. चन्द्र आरोग्य‑शान्ति प्रार्थना

हे शशिधर! मनोविकारान् शमय, शान्तिं देहि, सौख्यमावह ।
अर्थ: हे चन्द्रदेव! मन की चंचलता और अस्थिरता शांत करें; शीतलता‑सौख्य प्रदान करें।

उच्चारण‑सुझाव: ‘क्ष्र/श्र’ का उच्चारण स्पष्ट करें; जप में लम्बी श्वास, धीमी गति, मन‑दृश्य में श्वेत चन्द्र‑प्रकाश की कल्पना करें।

2) लाभ (Labh / Benefits)

  • मनो‑स्थिरता व शान्ति: चन्द्र‑बीज जप से भावनात्मक उतार‑चढ़ाव में संतुलन, अनिद्रा/चिड़चिड़ापन में शान्ति।
  • संबंध‑माधुर्य: करुणा, सहानुभूति, कोमलता—परिवार/सम्बन्धों में सौहार्द।
  • एकाग्रता/स्मृति: चन्द्र‑गायत्री ध्यान से मन स्वच्छ, अध्ययन‑एकाग्रता में सहायक।
  • शरीर की शीतलता: क्रोध‑उग्रता, अति‑उष्ण प्रवृत्तियों में मनोवैज्ञानिक शीतलता का अभ्यास।
  • ज्योतिष‑अनुकूलन (परम्परा): जन्मकुण्डली में चन्द्र‑सम्बन्धी अशुभ संकेतों की शान्ति हेतु पारम्परिक उपाय।

लाभ श्रद्धा + नियमित अभ्यास + सात्त्विक जीवन पर आधारित हैं; यह आध्यात्मिक/सांस्कृतिक जानकारी है—चिकित्सकीय परामर्श नहीं।

3) जप/पूजन‑विधि + चन्द्र‑अर्घ्य

  1. स्नान‑संकल्प: शुद्ध स्थान/वस्त्र; उत्तर/पूर्वाभिमुख बैठें।
  2. दीप‑ध्यान: घी/तिल का दीप; श्वेत पुष्प/अक्षत; चन्द्र का ध्यान—मस्तक पर शीतल चन्द्र‑किरणें।
  3. अर्घ्य‑विधि: रौप्य/श्वेत पात्र में जल (वैकल्पिक—दूध की कुछ बूँदें) मिलाकर आकाश में चन्द्र की ओर अर्घ्य दें; जप—ॐ सोमाय नमः
  4. माला‑जप: रुद्राक्ष/मोती (मुक्ता) माला—1 माला आरम्भ; साध्य अनुसार 3/5 माला।
  5. समापन: करुणा‑प्रार्थना, शान्ति‑पाठ—ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
समय: सोमवार, पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष; संध्या/चन्द्रदर्शन उपयुक्त।

4) नियम/उपाय (परम्परा‑आधारित)

सात्त्विक आचरण

  • दूध/चावल/दही से दान/सेवा (समर्थानुसार)।
  • माता‑बहन/वरिष्ठ महिलाओं का मान—चन्द्र‑तत्त्व को पुष्ट करने की परम्परा।
  • रात्रि‑जागरण/अतिउत्तेजक मीडिया से दूरी; शयन‑अनुशासन।

ध्यान‑अभ्यास

  • श्वेत चन्द्र‑प्रकाश की कल्पना—शीतल श्वास, दीर्घ श्वास‑प्रश्वास।
  • ‘मैं शांत हूँ—मैं करुणामय हूँ’—संकल्प जप।
  • सोम‑उपासना के साथ जल‑कृतज्ञता (जल‑संरक्षण/सेवा) का संकल्प।
रत्न‑उपाय (मोती/मुक्ता) पर निर्णय कुशल ज्योतिष मार्गदर्शन से ही लें; स्वेच्छा से धारण न करें।

5) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या ‘क्ष्रां/क्ष्रीं/क्ष्रौं’ की जगह ‘श्रां/श्रीं/श्रौं’ बोल सकते हैं?

हाँ—कई परम्पराओं में ‘श्र’ उच्चारण भी मान्य है। गुरु‑परम्परा के अनुसार ही जप करें।

Q2. क्या बिना चन्द्र‑दर्शन के जप चलेगा?

हाँ—संध्या में घर पर दीपक/जल के समक्ष जप कर सकते हैं; दर्शन से मन‑एकाग्रता बढ़ती है।

Q3. कितने दिन में फल मिलेगा?

जप साधना है—फल श्रद्धा, नियमिता और सत्कर्म पर निर्भर है; त्वरित‑फल की अपेक्षा न रखें।

Q4. क्या सोमवार व्रत आवश्यक है?

अनिवार्य नहीं; स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो हल्का सात्त्विक उपवास/फलाहार कर सकते हैं।

Q5. क्या बच्चों/विद्यार्थियों के लिए?

हाँ—कम समय (5–7 मिनट) का शांत जप/ध्यान एकाग्रता व भाव‑संतुलन में सहायक है।

6) नोट्स

परम्परा‑सूचक: चन्द्र‑मंत्रों के पाठ में क्षेत्रानुसार भिन्नताएँ संभव हैं; अपने गुरु‑परम्परा/कुटुम्ब‑रीति को प्राथमिकता दें।

शान्ति: शाश्वत, सौम्य: चन्द्र
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url