Mahalakshmi Chalisa

महालक्ष्मी चालीसा — पाठ, अर्थ, पुजा-विधि, लाभ, संकल्प

महालक्ष्मी चालीसा — पाठ

नोट: नीचे दिया गया चालीसा पारम्परिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। कुछ स्थानीय ग्रंथों/भक्तियों के रूप में भिन्नता हो सकती है।

दोहा (प्रारम्भिक)

श्री महालक्ष्मी चालीसा

॥ जय श्री महालक्ष्मी देवि, दीनों की सुख कारिणी ॥

॥ करुणा-चरित सुन्दरि, सर्वत्र मंगल वसिनी ॥

चालीसा (40 पंक्तियाँ / चौपाई शैली में)

1. जयाहि लक्ष्मी परमंगी, जगत-जननी सुखदाई।

Jayahī Lakṣmī paramangī, jagat-jananī sukhadāī.

अर्थ: जय हो माता लक्ष्मी, आप परम रूप वाली, जगत की जननी और सुख देने वाली हैं।

2. श्रीवल्लभ रूप सुहावे, भवदुःख हरि नाई॥

Śrīvallabha rūpa suhāve, bhavaduhkha hari nāī.

अर्थ: आपका रूप प्रिय और प्रियतम है; आप भव के दुखों को हरने वाली हैं।

3. पद्मासन सदा विराजे, कमल-लोचन मनोहर।

Padmāsana sadā virāje, kamal-lochana manohar.

अर्थ: आप पद्मासन पर विराजमान हैं, कमल के समान नेत्र और मनोहर रूप।

4. वर-क्षमादि समस्त गुण, भवसागर-पार कर॥

Vara-kṣamādi samasta guṇa, bhavasāgara-pār kara.

अर्थ: आपकी दया और क्षमा समेत सभी गुण हैं, जो हमें भवसागर से पार करा दें।

5. धन-धान्य-समृद्धि दायिनी, गृह-जीवन समृद्ध कर।

Dhan-dhānya-samriddhi dāyinī, gṛha-jīvan samriddha kara.

अर्थ: आप धन, धान्य और समृद्धि प्रदान करने वाली हैं, गृह-जीवन को समृद्ध बनाती हैं।

6. गुणगान सुनत नर-नारी, त्रिलोक में तेज भारी॥

Guṇagān sunata nara-nārī, triloka meṁ teja bhārī.

अर्थ: नर-नारी आपका गुणगान करते हैं; तीनों लोकों में आपका तेज भारी है।

7. विमल-वासन-सुगन्धि, चन्द्रकान्ति सम प्रवाह।

Vimala-vāsana-sugandhi, candrakānti sama pravāh.

शुद्ध वसन और सुगंधित जो आपकी शोभा को चन्द्रकान्ति के समान प्रवाहित करता है।

8. वस्तु-भण्डार सर्वसिद्धि, चरणों की शरण लगाऊँ॥

Vastu-bhaṇḍāra sarvasiddhi, caraṇoṁ kī śaraṇa lagāūṁ.

अर्थ: आप वस्तुभंडार और सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं; मैं आपके चरणों में शरण लेता/लेती हूँ।

9. कृतज्ञ जन आप कहैं, भव भय मिटत अच्युत।

Kṛtagna jan āpa kahēṁ, bhava bhaya miṭata acyuta.

अर्थ: कृतज्ञ लोग आपकी स्तुति करते हैं, और भव का भय मिट जाता है।

10. श्री-लक्ष्मी करुणासिन्धु, चरणकमल सुखदाई॥

Śrī-Lakṣmī karuṇāsindhu, caraṇakamala sukhadāī.

अर्थ: श्रीलक्ष्मी करुणा का सागर हैं, उनका चरणकमल सुख देने वाला है।

11. ध्यान-आराधना साधक जन, वरदान सुनि जाय॥

Dhyān-ārādhanā sādhaka jan, varadān suni jāya.

अर्थ: जिन साधकों का ध्यान और आराधना होता है, वे वरदान सुनकर पाते हैं।

12. गृहस्थ-वनवास-समस्ते, पाती-प्राप्ति भरपूर॥

Gṛhastha-vanavāsa-samaste, pātī-prāpti bharapūr.

अर्थ: गृहस्थ हों या वनवासी — सबको आप से प्राप्ति भरपूर मिलती है।

13. संकट-नाशिनी सुधा रूप, करुणा सतत बरसा।

Saṅkaṭ-nāśinī sudhā rūpa, karuṇā satat barsā.

अर्थ: आप संकट-नाशिनी और अमृत सी स्वरूप हैं, करुणा निरन्तर बरसाती हैं।

14. जो कोई पुकारे भक्ति से, माता शीघ्रि दर्शन दे॥

Jo koī pukāre bhakti se, mātā śīghri darśana de.

अर्थ: जो भक्त भक्ति से पुकारते हैं, माता उन्हें तुरंत दर्शन देती हैं।

15. ललित-कान्ति-विभूषिता, वैभव-ललित कमला॥

Lalit-kānti-vibhūṣitā, vaibhav-lalit kamalā.

अर्थ: आपका वैभव ललित और शोभायमान कमल समान है।

16. भजन-नित नियम कर, संकट दूर हों जामला।

Bhajan-nit niyam kara, saṅkaṭ dūr hoṁ jāmalā.

अर्थ: यदि दिन-रात भजन और नियम करें तो संकट दूर हो जाते हैं।

17. जो ध्यावे मातु प्रतिदिन, धन-यश की प्राप्ति।

Jo dhyāve mātu pratidin, dhana-yasha kī prāpti.

अर्थ: जो रोज मां का ध्यान करते हैं उन्हें धन और यश की प्राप्ति होती है।

18. पुत्र-पुत्रि की शुभ फल, संतान-संपत्ति सब पाएं॥

Putra-putri kī śubha phala, santān-sampatti sab pāēṁ.

अर्थ: पुत्र-पुत्री और संतान-संपत्ति शुभ फल देते हुए मिलते हैं।

19. करुणा-सभार अंगी सु, पद-पद प्रसीदावह।

Karuṇā-sabhāra aṅgī su, pada-pada prasīdāvah.

अर्थ: आप करुणा से भरी हुई हैं, हर कदम पर प्रसन्नता दें।

20. जयति जयति महालक्ष्मी, प्रभु चरण में नतम्॥

Jayati jayati mahālakṣmī, prabhu caraṇ meṁ natam.

अर्थ: जय हो महालक्ष्मी, प्रभु के चरणों में नमन।

21. पाप-हरिणी भवापदा, सत्य-गुण की दयालु।

Pāpa-hariṇī bhavāpadā, satya-guṇa kī dayālu.

अर्थ: पापों को हरने वाली, सत्य और गुण वाली दयालु माता।

22. लोक-रक्षक जगदम्बा, नित्य पूजा की आराध्य।

Loka-rakṣaka jagadambā, nitya pūjā kī ārādhya.

अर्थ: लोकों की रक्षक जगदम्बा, जिनकी नित्य पूजा आराध्य है।

23. धन-रूपिनी सदा करुणा, भक्ति द्वारा कृपा करें॥

Dhan-rūpīnī sadā karuṇā, bhakti dvārā kr̥pā karēṁ.

अर्थ: धन स्वरूप भगवान, जो भक्ति से कृपा कर देती हैं।

24. जो नर-नारी नित्य करते, कामना सब सिद्ध हो॥

Jo nara-nārī nitya karte, kāmanā sab siddha ho.

अर्थ: जो लोग रोज पूजा करते हैं उनकी सभी कामनाएँ सिद्ध होती हैं।

25. आरती करकर सर्वदा, सुख शान्ति आवे घर।

Āratī karakara sarvadā, sukha śānti āvē ghar.

अर्थ: निरन्तर आरती करने से घर में सुख और शांति आती है।

26. धन-लाभ के सदा दायी, वत्सला मातु महिमा अपार॥

Dhana-lābha ke sadā dāyī, vatsalā mātū mahimā apār.

अर्थ: धन-लाभ की दानी, माता की महिमा अपरंपार है।

27. लघु-उपदेश न करुमि, बस तेरी जयघोष गाऊँ।

Laghu-upadeś na karumi, bas terī jayaghoṣa gāūṁ.

अर्थ: थोड़ा सा उपदेश नहीं करूँगा — केवल तुम्हारी जय-गाथा गाऊँगा।

28. भक्ति-रस से नित मुदित, कथाएँ तेरी सुनाऊँ॥

Bhakti-ras se nit mudita, kathāēṁ terī sunāūṁ.

अर्थ: भक्ति रस से सदैव आनन्दित होकर, तुम्हारी कथाएँ सुनाऊँगा।

29. हे माँ! दया करि उद्धार, जीवन को धन्य कर दे।

He māṁ! dayā kari uddhār, jīvan ko dhanya kara de.

अर्थ: हे माँ! दया कर के उद्धार करो और जीवन को धन्य कर दो।

30. शरणागतों की शरण तू, संकट दूर करे सदा॥

Śaraṇāgatoṁ kī śaraṇa tū, saṅkaṭ dūr kare sadā.

अर्थ: शरणागतों की शरण हो तुम, हरदम संकट दूर करो।

31. जय श्री महालक्ष्मी माता, करुणा तुझपर बरसा।

Jaya śrī mahālakṣmī mātā, karuṇā tujhapar barsā.

अर्थ: जय श्री महालक्ष्मी माता, आप पर करुणा की वर्षा हो।

32. हे भवानी! श्रीदायिनी सुन, संकट मिटा दे ओ माँ।

He bhavānī! śrīdāyinī suna, saṅkaṭ miṭā de o māṁ.

अर्थ: हे भवानी! आप श्री की दात्री हैं — सुनो और संकट मिटा दो।

33. जो पढ़े मन से यह चालीसा, सद्गति पाये जन॥

Jo paṛhē mana se yaha chālīsā, sadgati pāē jana.

अर्थ: जो मन से यह चालीसा पढ़ता है उसे सद्गति प्राप्त होती है।

34. श्री महालक्ष्मी की कृपा से, नित जीवन सुधर जाये॥

Śrī mahālakṣmī kī kr̥pā se, nita jīvan sudhar jāē.

अर्थ: श्री महालक्ष्मी की कृपा से जीवन नित्य सुधर जाता है।

35. विजय की प्राप्ति करें सब, घर-आँगन महिमा छाये।

Vijaya kī prāpti karēṁ sab, ghar-āṅgan mahimā chāyē.

अर्थ: सभी को विजय मिले और घर-आँगन में महिमा छाये।

36. माता तुम्हारी शरण में, मैं अर्पण जीवन अपना॥

Mātā tumhārī śaraṇa meṁ, maiṁ arpaṇ jīvan apnā.

अर्थ: माँ! मैं अपना जीवन आपकी शरण में अर्पित करता/करती हूँ।

37. हे लक्ष्मी! प्रसन्न होकर, वर दे दया-अखण्डा।

He Lakṣmī! prasanna hokar, vara de dayā-akhāṇḍa.

अर्थ: हे लक्ष्मी! प्रसन्न होकर हमें अनन्त दया देओ।

38. सुकर-सरल सदा जीवन हो, मुझ पर कृपा बढ़ा दया॥

Sukara-sarala sadā jīvan ho, mujh par kr̥pā baṛhā dayā.

अर्थ: जीवन सरल और सुखमय बना दो; मुझ पर असीम दया बढ़ाओ।

39. जो भी तुझे स्मरण कर, जीवन में फल पाये।

Jo bhī tujhe smaraṇa kara, jīvan meṁ phala pāē.

अर्थ: जो भी तुम्हें स्मरण करता है, वह जीवन में फल पाता है।

40. जय श्री महालक्ष्मी माता, सर्वत्र जय-जय करूँ॥

Jaya śrī mahālakṣmī mātā, sarvatra jaya-jaya karūṁ.

अर्थ: जय श्री महालक्ष्मी माता, मैं सदा आपकी जय-जयकार करूँ।

ध्यान दें: ऊपर दिया गया पाठ भक्तिगीत शैली में है और कई स्थानों पर स्थानीय परम्पराओं के अनुसार शब्दों में भिन्नता आ सकती है। यदि आपकी पारम्परिक पुस्तिका में कोई भेद है, तो उस पारम्परिक पाठ का अनुसरण करना श्रेष्ठ होगा।

ट्रांसलिटरेशन और अर्थ (संक्षेप में)

ऊपर प्रत्येक चौपाई के नीचे छोटे-छोटे ट्रांसलिटरेशन और भावार्थ दिए गए हैं ताकि पाठक ध्यानपूर्वक उच्चारण और अर्थ समझ सकें। यदि आप शुद्ध उच्चारण चाहते हैं तो 'श्री' को "Shri", 'लक्ष्मी' को "Lakṣmī" तथा 'माता' को "Mātā" के रूप में पढ़ें।

पूजा-विधि (विस्तृत चरण)

यहाँ महालक्ष्मी की आराधना के लिए सरल और पारम्परिक विधि दी जा रही है — घर पर दैनिक/विशेष अवसर पर किया जा सकता है।

  1. सफाई और व्यवस्था: पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ करें। एक छोटी मेज़ या मण्डप पर शुद्ध वस्त्र बिछाएं।
  2. तैयारी: लक्ष्मी जी की मूर्ति या तस्वीर रखें। दीपक, अगरबत्ती, नैवैद्य (फल/प्रसाद), पुष्प, फल, रोली/कुमकुम और नैवेद्य तैयार रखें।
  3. स्नान और वस्त्र: अगर संभव हो तो स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  4. संकल्प: पूर्व संध्या या पूजा आरंभ में संकल्प लें — अपना नाम, पिता/पति का नाम, जन्मतिथि और पूजा का उद्देश्य मन में स्पष्ट करें।
  5. घी का दीपक और अगरबत्ती: दीप जलाकर माता का ध्यान करें और एक-एक मंत्र (जैसे "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः") 11 या 108 बार जप सकते हैं।
  6. चालीसा पठण: चालीसा के पूरे पाठ का मन लगाकर पाठ करें (ऊपर दिया हुआ)।
  7. आरती और भोग: अंत में आरती करें, प्रसाद चढ़ा कर वितरण करें।
  8. धन-सहायता: लक्ष्मी पूजा के बाद दान करने से पुण्य और भी बढ़ता है — खाने का दान, अनाज या आर्थिक सहायता किसी जरुरतमंद को करें।
संकल्प का उदाहरण (उच्चारण सहित)

हिंदी में: "मैं (अपना नाम) पुत्र/पुत्री (पिता/पति का नाम) आज श्री महालक्ष्मी की पूजा कर रहा/रही हूँ। मेरी मनोकामनाएँ — (उदाहरण: धान्य, आरोग्य, शान्ति) — पूर्ण हों।"

Transliteration: "Main (apna naam) putra/putri (pitā/pati ka nām) āj Śrī Mahālakṣmī kī pūjā kar rahā/rahī hūṁ..."

प्रमुख मंत्र एवं आराधना

कुछ सरल स्तोत्र और मंत्र जो पूजा के दौरान उच्चार किये जाते हैं —

  • श्री महालक्ष्मी आराधना मंत्र (संक्षेप): ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
  • मूल स्तोत्र (लक्ष्मी): ॐ श्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः
  • श्री सूक्त (संक्षेप): यदि समय हो तो श्रीसूक्त का पाठ विशेष फलदायक माना जाता है।

ध्यान: निजी या पारम्परिक मंत्रों का उच्चारण और जप किसी ज्ञानी या गुरुदेव की परामर्श से करना उत्तम रहता है।

लाभ (Labh) — क्या उम्मीद करें?

महालक्ष्मी की उपासना से जिन लाभों की परंपरागत रूप से बात की जाती है, उन्हें निम्न श्रेणियों में देखा जा सकता है:

आर्थिक लाभ

लक्ष्मी-पूजा के बाद वित्तीय स्थिति में सुधार, व्यवसाय में वृद्धि, आय के नए स्रोत, देनदारियों से मुक्ति जैसी बातें आमतौर पर लाभ के रूप में सुनी जाती हैं।

आध्यात्मिक एवं मानसिक लाभ

अंतः शांति, भय-रहित जीवन, भावनात्मक स्थिरता, परिवार में सौहार्द्र और सुख-शांति का अनुभव — ये भी लाभ माने जाते हैं।

महत्वपूर्ण: उपासना का उद्देश्य केवल भौतिक लाभ न बनाकर जीवन में सन्तुलन और भक्ति-भाव बनाए रखना होना चाहिए। वास्तविक लाभ भक्त के आध्यात्मिक और नैतिक आचरण से भी जुड़ा होता है।

कब और कैसे आराधना करें

परंपरानुसार लक्ष्मी पूजा करने के श्रेष्ठ अवसर:

  • शुक्ल पक्ष की अमावस्या (नवमि/अमावस्या): कई समुदायों में यह विशेष रूप से महत्व रखता है।
  • दीपावली (लक्ष्मी पूजन): दीपावली का दिन लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय है।
  • हर शुक्रवार: शुक्रवार को देवी-पूजा के लिए जाना जाता है — विशेषकर वे व्यापारी और गृहस्थ।

उपाय: यदि आप किसी विशेष आवश्यकता हेतु आराधना कर रहे हैं (जैसे नौकरी, व्यापार, संतान), तो संकल्प स्पष्ट रखें और नियमितता से पूजा करें।

अन्य उपयुक्त अनुष्ठान और परंपराएँ

कुछ लोग लक्ष्मी पूजा के साथ निम्न अनुष्ठान भी करते हैं:

  • श्रीसूक्त का पाठ
  • सिद्धि-स्पर्श या तिलक चढ़ाना
  • पीले वस्त्र या पीला पुष्प अर्पित करना (लाभ का रंग माना जाता है)
  • गणेश तथा कुबेर की सामूहिक आराधना — धन की रक्षा हेतु

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1: महालक्ष्मी चालीसा कितनी बार पढ़नी चाहिए?

उत्तर: पारम्परिक रूप से 1 बार से लेकर 11 या 108 बार तक की परम्परा मिलती है — परन्तु नियमितता और श्रद्धा अधिक महत्वपूर्ण है। सरल रूप में प्रतिदिन एक बार पढ़ना भी बहुत फलदायी माना जाता है।

प्रश्न 2: चालीसा पढ़ते समय कौन सा मंत्र जप करना चाहिए?

उत्तर: "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः" जैसी संक्षेपिक मंत्र-रूपावली जपना उपयोगी रहता है। यदि आप विस्तृत मंत्र या श्रीसूक्त जप करना चाहते हैं तो किसी योग्य पुरोहित/गुरु से मार्गदर्शन लें।

प्रश्न 3: क्या लक्ष्मी पूजा के बाद दान आवश्यक है?

उत्तर: दान अनिवार्य नहीं परन्तु अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना जाता है। दान से लक्ष्मी की कृपा और भी बढ़ती है और गृह-स्थ जीवन में सामंजस्य बनता है।

प्रश्न 4: यदि चालीसा का पाठ पूरा न हो तो क्या होगा?

उत्तर: श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण है। यदि समय या स्वास्थ्य कारण से पूरा पठन न हो, तो जितना हो सके मन से पढ़ना चाहिए।

प्रश्न 5: कौन-कौन से रंग/वस्त्र प्रिय हैं?

उत्तर: पारम्परिक रूप से पीला, सुनहरा, केसरिया या लाल-पीले रंग लक्ष्मी को प्रिय माने जाते हैं।

संदर्भ एवं आगे पढ़ने के सुझाव

यदि आप गहन अध्ययन करना चाहते हैं तो निम्न सुझाव उपयोगी होंगे:

  • श्रीसूक्त — वेद/रीति आधारित तुल्य ग्रन्थ
  • लक्ष्मी साधना की परम्परागत पुस्तिकाएँ
  • स्थानीय मंदिर से प्राप्त पूजा-विधि

लेखक नोट: यह पोस्ट सामान्य जानकारी और पारम्परिक मार्गदर्शिका पर आधारित है। धार्मिक/अनुष्ठानिक मामलों में स्थानीय परम्परा और आपके गुरु/पंडित की सलाह को प्राथमिकता दें।

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