Devi Suktam

देवी सूक्तम् (अर्थ सहित)

देवी की महिमा का वैदिक गान और इसके लाभ

देवी सूक्तम् का परिचय

देवी सूक्तम् ऋग्वेद के दशम मण्डल में स्थित एक प्रसिद्ध सूक्त है जो देवी की स्तुति में रचा गया है। यह सूक्त देवी के विभिन्न रूपों, उनकी महिमा और शक्ति का वर्णन करता है। इसके नियमित पाठ से भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।

देवी सूक्तम् (संस्कृत मंत्र और हिंदी अर्थ)

ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥१॥

अर्थ: मैं रुद्रगणों और वसुओं के साथ विचरण करती हूं, मैं आदित्यों और समस्त देवताओं के साथ हूं। मैं मित्र और वरुण की शक्ति हूं, मैं इन्द्र और अग्नि हूं, और मैं अश्विनी कुमारों की भी शक्ति हूं।

अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम् ।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥२॥

अर्थ: मैं सोम राजा को धारण करती हूं, मैं त्वष्टा, पूषण और भग की शक्ति हूं। मैं धन-संपत्ति प्रदान करती हूं उस भक्त को जो हविष्य देकर यज्ञ करता है और सोमरस तैयार करता है।

अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम् ॥३॥

अर्थ: मैं राष्ट्र की संगमनी (एकत्र करने वाली) हूं, धनों की संचयकर्ता हूं, यज्ञिय देवताओं में प्रथम जानने वाली हूं। मुझे देवताओं ने अनेक स्थानों पर स्थापित किया है, अनेक स्थानों पर निवास करने वाली और अनेकों को प्रवेश देने वाली।

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ॥४॥

अर्थ: जो देखता है, जो प्राणित करता है, जो कही हुई बात सुनता है, वह अन्न मेरे द्वारा ही खाता है। जो अज्ञानी हैं वे मुझे नहीं जानते, हे श्रद्धावान! मैं तुमसे कहती हूं, तुम मेरी बात सुनो, मैं तुम्हें ज्ञान देती हूं।

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥५॥

अर्थ: मैं स्वयं ही यह कहती हूं जो देवताओं और मनुष्यों द्वारा प्रिय है। जिसे मैं चाहती हूं, उसे शक्तिशाली बनाती हूं, उसे ब्राह्मण, ऋषि और बुद्धिमान बनाती हूं।

अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश ॥६॥

अर्थ: मैं रुद्र के लिए धनुष खींचती हूं ताकि ब्रह्म का विरोध करने वाले को मार सकें। मैं लोगों के लिए युद्ध की व्यवस्था करती हूं, मैं स्वर्ग और पृथ्वी में प्रवेश करती हूं।

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन् मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ॥७॥

अर्थ: मैं स्वर्ग में उसके पिता के शीर्ष पर हूं, मेरा निवास समुद्र के जल में है। वहां से मैं समस्त संसार में फैलती हूं और अपने महत्व से आकाश को छूती हूं।

अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सं बभूव ॥८॥

अर्थ: मैं हवा की तरह सब ओर बहती हूं, समस्त संसारों को आधार देती हूं। मैं आकाश से भी ऊपर और पृथ्वी से भी ऊपर हूं, इतनी महान होकर मैं विश्व में व्याप्त हूं।

देवी सूक्तम् पाठ के लाभ

    आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति: देवी सूक्तम् के नियमित पाठ से आध्यात्मिक शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। नकारात्मक ऊर्जा का नाश: इसके पाठ से घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है। मानसिक शांति: इस सूक्त के पाठ से चिंता, तनाव और अवसाद दूर होता है तथा मन को शांति मिलती है। सफलता में वृद्धि: विद्यार्थियों के लिए यह मंत्र विशेष लाभकारी है, इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है और शैक्षणिक सफलता प्राप्त होती है। रोगों से मुक्ति: नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है तथा स्वास्थ्य में सुधार होता है। धन और समृद्धि: देवी सूक्तम् के पाठ से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। कुंडली के दोष दूर: ज्योतिषीय दृष्टि से इसके पाठ से कुंडली के अशुभ प्रभाव और ग्रह दोषों का शमन होता है। पारिवारिक सुख: इससे पारिवारिक कलह समाप्त होती है और घर में सुख-शांति का वास होता है।

देवी सूक्तम् पाठ की विधि

देवी सूक्तम् के पाठ के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करना श्रेयस्कर है:

पाठ से पूर्व की तैयारी

स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक चौकी पर लाल या पीला आसन बिछाएं। देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक जलाएं और धूप-दीप दिखाएं।

मंत्र जाप की विधि

शुद्ध होकर आसन पर बैठ जाएं।先 प्राणायाम करके मन को शांत करें। फिर देवी का ध्यान करते हुए देवी सूक्तम् का पाठ प्रारम्भ करें। पूर्ण एकाग्रता के साथ मंत्रों का उच्चारण करें।

समय और अवधि

देवी सूक्तम् का पाठ प्रातःकाल या सायंकाल करना उत्तम है। नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है। नियमित रूप से 9, 11, 21 या 108 बार इसका पाठ करना चाहिए।

पाठ के बाद

पाठ पूर्ण होने के बाद देवी के समक्ष नतमस्तक हों और अपनी इच्छाओं की पूर्ति का विनम्र निवेदन करें। आरती करके प्रसाद वितरण करें।

महत्वपूर्ण नोट: देवी सूक्तम् का पाठ पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। मंत्रों का उच्चारण सही उच्चारण के साथ करने का प्रयास करें। यदि संस्कृत का ज्ञान न हो तो हिंदी अनुवाद के साथ भी पाठ किया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

देवी सूक्तम् का पाठ कब करना चाहिए?

देवी सूक्तम् का पाठ प्रातःकाल या सायंकाल करना उत्तम माना गया है। विशेष रूप से नवरात्रि के नौ दिनों में इसका पाठ अत्यंत फलदायी होता है।

क्या देवी सूक्तम् का पाठ महिलाएं कर सकती हैं?

हां, देवी सूक्तम् का पाठ कोई भी भक्त कर सकता है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। देवी की उपासना सभी के लिए खुली है। केवल मासिक धर्म के दौरान कुछ लोग पाठ से परहेज करते हैं, यह व्यक्तिगत विश्वास की बात है।

देवी सूक्तम् पाठ से क्या लाभ होते हैं?

देवी सूक्तम् के पाठ से आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति, नकारात्मक ऊर्जा का नाश, मानसिक शांति, सफलता में वृद्धि, रोगों से मुक्ति, धन-समृद्धि और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।

क्या देवी सूक्तम् का हिंदी में पाठ करने से भी लाभ होता है?

हां, देवी सूक्तम् का हिंदी में पाठ करने से भी पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। महत्वपूर्ण है भक्ति और श्रद्धा भाव। देवी भावना को समझकर पाठ करना ही मुख्य है, भाषा गौण है।

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