Guru Mantra

गुरु मन्त्र (पूर्ण) हिन्दी अर्थ सहित, लाभ, विधि,

गुरु मन्त्र हिन्दी अर्थ सहित, गुरु‑गायत्री, गुरु‑स्तोत्र/वन्दना, गुरुवाष्टकम् लाभ, जप‑विधि

1) गुरु मन्त्र — श्लोक + हिन्दी अर्थ

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: गुरु ही सृष्टि‑पालन‑संहार के तत्त्वों (ब्रह्मा‑विष्णु‑महेश) का समन्वित प्रकाश हैं; वे स्वयं परब्रह्म के साक्षात् प्रतीक हैं—उन श्रीगुरु को नमस्कार।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: जिन्होंने मुझे उस अखण्ड‑चैतन्य का बोध कराया जो समस्त चर‑अचर में व्याप्त है—ऐसे श्रीगुरु को प्रणाम।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलााकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: अज्ञान रूपी अन्धकार से ढके नेत्रों में जिन्होंने ज्ञान‑अंजन लगाया और दृष्टि दी—उन गुरु को नमस्कार।
गुरवे सर्वलोकानां भक्तानां परमेश्वरे ।
वेदान्ताचार्यवर्याय दाक्षिण्यामूर्तये नमः ॥
अर्थ: जो सभी लोकों के गुरु, भक्तों के परमेश्वर, वेदान्ताचार्य, दाक्षिण्यामूर्ति (शिव के गुरु‑स्वरूप) हैं—उन्हें नमन।
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित् सचराचरम् ।
त्वं पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: स्थावर‑जंगम सबमें एक ही तत्त्व का दर्शन कराने वाले सद्गुरु को नमस्कार।
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: गुरु‑तत्त्व से बढ़कर कोई तत्त्व नहीं; ज्ञान‑तप से बढ़कर कोई तप नहीं—ऐसे गुरु को वन्दन।
गुरुः परम तपःस्थो गुरुः परम दैवतं ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अर्थ: गुरु ही परम तप और परम देवता हैं; गुरु से बढ़कर कुछ नहीं—उन्हें नमन।
गुरुर्ध्यानं गुरुर्गीता गुरुर्नाम्नां परायणम् ।
गुरोः पादोऽम्बुजा द्वन्द्वं गुरोः कीर्तनमेव च ॥
अर्थ: गुरु का ध्यान, गीता‑उपदेश, नाम‑स्मरण और गुरु‑पादाम्बुज की भक्ति—यही श्रेष्ठ साधन हैं।
गुरुकृपा प्रसादेन परमं पदमश्नुते ।
विद्यातेर्थं न यान्त्यन्ये गुरुमेवाश्रयेद् बुधः ॥
अर्थ: गुरु‑कृपा से ही परम‑पद की प्राप्ति होती है; इसलिए बुद्धिमान पुरुष शिक्षा‑तत्त्व के लिए गुरु‑आश्रय लेते हैं।

2) गुरु गायत्री — देवनागरी + हिन्दी अर्थ

ॐ गुरु ब्रह्मे विद्महे महागुरु धीमहि ।
तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: हम गुरु‑तत्त्व के ब्रह्मस्वरूप का ध्यान करते हैं; वे महागुरु हमारी बुद्धि को प्रेरित/प्रकाशित करें।
— वैकल्पिक (लोक‑प्रचलित): ॐ तत्सद्ब्रह्मविद्वराय गुरवे धीमहि । तन्नः शिक्षुः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: जो सच्चिद्ब्रह्म के ज्ञाता हैं, ऐसे गुरु का ध्यान करें—वे हमें सत्य‑मार्ग पर प्रेरित करें।

3) गुरु‑स्तोत्रम् / गुरु‑वन्दना (चयनित श्लोक + अर्थ)

श्रीगुरु चरणारविन्दाभ्यां नमः ।
अर्थ: श्रीगुरु के कमल‑चरणों को नमस्कार।
श्रीगुरु charaṇāravindं वन्देऽहं सद्गुरुं परमम् ।
यः प्रबोधयति ज्ञानं स्वस्वरूपानुभूतिकम् ॥
अर्थ: उस सद्गुरु को वन्दन जो शिष्य में आत्मानुभूति जागृत करते हैं।
विद्यासम्पन्नो गुरुः शरणं मे ।
अर्थ: विद्या‑विनीत गुरु ही मेरा शरण हैं।
अनन्तसंशयच्छेदि परमानन्ददायीने ।
नमो नमः श्रीगुरवे ज्ञानरूपाय ते नमः ॥
अर्थ: जो अनन्त शंकाओं का छेद करते हैं और परम‑आनन्द देते हैं—ऐसे ज्ञानरूप गुरु को बार‑बार नमस्कार।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सकाः त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
अर्थ: (गुरु‑ईश्वर भाव) आप ही माता‑पिता, बन्धु‑सखा, विद्या‑धन—सब कुछ हैं।
गुरोः कृपया पाप्मा हन्ति, गुरोः कृपया वाचः सिद्धिः ।
गुरोः कृपया मोहः क्षीयते—तस्मै गुरवे नमः ॥
अर्थ: गुरु‑कृपा से पाप/मोह नष्ट होते हैं और वाणी‑सिद्धि प्राप्त होती है—ऐसे गुरु को प्रणाम।
टिप्पणी: अलग‑अलग परम्पराओं/ग्रन्थों में ‘गुरु‑स्तोत्र’ के श्लोक‑क्रम/संस्करण भिन्न मिल सकते हैं। यहाँ लोक‑प्रचलित वाक्यों का संकलन है।

4) गुरुवाष्टकम् (आदि शंकराचार्य कृत) — देवनागरी + हिन्दी अर्थ

शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं
यशो नूतनं वाऽलयं रूपमत्तम् ।
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ 1 ॥
अर्थ: शरीर, सौन्दर्य, परिवार, यश—सब हों; पर मन यदि गुरु‑पाद‑कमलों में न लगे तो इन सबका क्या लाभ?
कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादिसर्वं
गृहं बान्धवाः सर्वमेवापि मित्रम् ।
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे… ॥ 2 ॥
अर्थ: धन‑धान्य, परिवार‑मित्र बहुत हों; पर गुरु‑भक्ति बिना सब व्यर्थ।
शतोऽपि रसज्ञानविण्मुक्तिसाध्यं
न चित्तं गुरोः पादपद्मे स्थितं चेत् ।
मनश्चेन्न… ॥ 3 ॥
अर्थ: शास्त्र‑पाण्डित्य भी यदि अहं बढ़ाए और गुरु‑चरण में मन न लगे तो मोक्ष नहीं।
यदा लौल्यतां याति भक्तिर्गुरौ मे… ॥ 4 ॥
अर्थ: जब गुरु‑भक्ति उत्कट हो जाती है तभी अन्तःकरण शुद्ध होता है।
अलभ्यं न किंचिद् गुरोः प्रसादात्… ॥ 5 ॥
अर्थ: गुरु‑कृपा से कुछ भी दुरलभ नहीं रहता—वह सब सम्भव हो जाता है।
गुरोः स्मरणात् सिद्धिर्‑भवति नृणां… ॥ 6 ॥
अर्थ: गुरु‑स्मरण से सिद्धि और कल्याण; विस्मरण से पतन।
गुरोराराधनं सर्वमस्ति चेत् किमन्यत्… ॥ 7 ॥
अर्थ: यदि गुरु‑आराधना हो गयी तो बाकी सब स्वतः सिद्ध।
गुरोरष्टकमेतद् पठति ब्रह्मभावितः ।
स देवो गुरुरेव स्यात् तस्य मुक्तिर्न संशयः ॥ 8 ॥
अर्थ: जो भावपूर्वक गुरुवाष्टक का पाठ करता है, उसके लिए गुरु‑कृपा से मुक्ति में संशय नहीं।

5) लाभ (Labh / Benefits)

  • बुद्धि‑प्रसाद व विवेक: ‘ज्ञानाञ्जनशलााका’—अज्ञान का क्षय, वाणी व निर्णय‑शक्ति में स्पष्टता।
  • अहं‑क्षय व कृतज्ञता: ‘गुरु ब्रह्मा…’—स्वार्थ से सेवा‑भाव की ओर गति।
  • आचरण‑सुधार: गुरु‑वन्दना के भाव से विनय, अनुशासन और सात्त्विक दिनचर्या।
  • आध्यात्मिक प्रगति: गुरु‑गायत्री/गुरुवाष्टक—अन्तर्मुखता, ध्यान में स्थैर्य।
  • समृद्धि‑कल्याण (समत्व से): नकारात्मक भाव रूपान्तरण; सत्कर्मों में रुचि।

नोट: लाभ श्रद्धा + सतत अभ्यास + सदाचार से प्रकट होते हैं; यह आध्यात्मिक/सांस्कृतिक जानकारी है।

6) जप/पूजन‑विधि (सरल)

  1. संकल्प: स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर पीला/सफेद वस्त्र; गुरु‑चित्र/दीप रखें।
  2. दीप‑ध्यान: घी/तिल का दीप, अगरबत्ती/धूप; तीन दीर्घ श्वास—मन को स्थिर करें।
  3. मन्त्र‑जप: गुरु ब्रह्मा… 11/21/108 बार; तत्पश्चात् गुरु‑गायत्री 11 बार।
  4. पुष्प/नैवेद्य: यदि सम्भव हो तो पुष्प/फल/मिष्ठान अर्पित कर कृतज्ञता व्यक्त करें।
  5. स्वाध्याय: 2–5 मिनट ‘गुरुवाष्टकम्’ या ‘गुरु‑वन्दना’ का पाठ/मनन।
  6. शान्ति‑पाठ: “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”।
⏱️ समय‑सुझाव: दैनिक प्रातः/संध्या; विशेषतः गुरुवार और गुरु‑पूर्णिमा को।

7) अतिरिक्त मंत्र‑सूची

बीज‑न्यास (संक्षेप)

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः — त्रिकाल स्मरण।

कृतज्ञता‑श्लोक

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः… (3 बार)

प्रार्थना

हे गुरुदेव! मम बुद्धिं प्रकाशय, अहंकारं हर, धर्मे धैर्यं देहि।

8) सामान्य प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या ‘गुरु ब्रह्मा…’ ही एकमात्र गुरु‑मन्त्र है?

यह सबसे लोक‑प्रचलित है। विभिन्न परम्पराओं में गुरु‑गायत्री/गुरु‑स्तोत्र के अन्य पाठ भी हैं—अपनी परम्परा का मान रखें।

Q2. क्या बिना गुरु‑चित्र के जप कर सकता/सकती हूँ?

हाँ—अन्तर्मन में ‘गुरु‑तत्त्व’/ईष्टदेव के आचार्य‑रूप का स्मरण पर्याप्त है।

Q3. क्या हिन्दी अर्थ पढ़ना ही पर्याप्त है?

आरम्भ में हाँ; धीरे‑धीरे देवनागरी उच्चारण सीखें—भाव, शुद्धता और निरन्तरता सबसे महत्वपूर्ण हैं।

Q4. क्या उपवास आवश्यक है?

अनिवार्य नहीं। स्वास्थ्य‑अनुकूल हो तो लघु‑उपवास/सात्त्विक आहार सहायक होता है।

9) नोट्स / अस्वीकरण

परम्परा‑सूचक: ‘गुरु‑स्तोत्र’/‘गुरुवाष्टकम्’ के संस्करण/क्रम क्षेत्र/सम्प्रदायानुसार भिन्न मिल सकते हैं। यह पोस्ट लोक‑प्रचलित/सार्वजनिक‑डोमेन पाठ का संकलन है।

श्रीगुरु चरणारविन्दार्पणम्
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