Shivastkam Stotra

शिवाष्टकम् स्तोत्र (आदि शंकराचार्य) अर्थ सहित | लाभ, विधि | Shivashtakam

शिवाष्टकम् स्तोत्र (आदि शंकराचार्य) — हिंदी अर्थ सहित और लाभ

१) स्तोत्र परिचय

शिवाष्टकम्, शैव-भक्ति का एक अनुपम अष्टक है, जो आदि शंकराचार्य को समर्पित माना जाता है। यह स्तोत्र भगवान शंकर के स्वरूप, गुण, करुणा और अनुग्रह की अनुपम स्तुति है। “अष्टक” का अर्थ है—आठ श्लोक; परंपरा में अंत में फलश्रुति (फल बताने वाला श्लोक) भी पढ़ा जाता है।

संकेत: नवशिक्षुओं के लिए अनुशंसा है कि पहले शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ सीखें, फिर धीरे-धीरे अर्थ मन में उतारें। ॐ नमः शिवाय जप के साथ इसका पाठ अत्यंत प्रभावी माना गया है।

२) पाठ-विधि (कदम-दर-कदम)

आवश्यक सामग्री

  • साफ़ आसन (कुश/ऊनी/कुर्सी भी चलेगी), पूर्व या उत्तरमुख
  • दीप, अगरबत्ती/धूप, जल का पात्र, पुष्प/बिल्वपत्र
  • यदि संभव हो तो शिवलिंग/शिव-पार्वती की छवि

समय व संख्या

  • श्रेष्ठ: ब्रह्ममुहूर्त, प्रातः या संध्या
  • सोमवार, प्रदोष, मासिक शिवरात्रि/महाशिवरात्रि—विशेष फलदायक
  • एकनिष्ठ साधना हेतु: प्रतिदिन 1, 3 या 5 बार पाठ
  1. शौच/आसन: स्नान/हाथ-मुंह धोकर शुद्ध आसन ग्रहण करें।
  2. संकल्प: “मैं कल्याण/शांति/रोग-निवारण/आध्यात्मिक उन्नति हेतु शिवाष्टकम् पाठ करूँगा/करूँगी।”
  3. ध्यान: तीन बार , फिर ॐ नमः शिवाय का 11/27/54 जप।
  4. पाठ: नीचे दिए क्रम में 8 श्लोक + फलश्रुति।
  5. आरति/प्रार्थना: अंत में क्षमायाचना—“त्रुटि क्षम्यताम् महादेव।”

३) श्री शिवाष्टकम् — संपूर्ण पाठ (देवनागरी) व सरल हिंदी अर्थ

श्लोक 1
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं
जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ १ ॥
हिंदी अर्थ: मैं उन प्रभु शंकर की वन्दना करता/करती हूँ जो प्राणों के नाथ, सर्वव्यापी, विश्व के स्वामी और जगन्नाथ के भी नाथ हैं; जिनका स्वभाव अखण्ड आनन्द है; जो भूतकाल–वर्तमान–भविष्य के ईश्वर और समस्त जीवों के नाथ हैं—वे शिव, शंकर, शम्भु, ईशान—उनको प्रणाम।

भाव: शिव को परम-आधार एवं सर्वकाल-नियंता मानकर समर्पण।

श्लोक 2
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं
महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ २ ॥
हिंदी अर्थ: जिनके गले में मुंड-माला, देह पर सर्पों का अलंकार, जो महाकाल के भी काल (समय से परे) हैं, जो गणेश आदि भूत-गणों के स्वामी-पालक हैं; जिनकी विशाल जटाओं में गंगा की तरंगें शोभित हैं—ऐसे शिव को नमन।

भाव: भय-निवारण और काल-बाधा से रक्षा का आश्रय शिव।

श्लोक 3
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं
महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महामोहमारं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ३ ॥
हिंदी अर्थ: जो भक्तों को आनन्द देने वाले, समस्त जगत के आभूषण, विभूति-धारी, अनादि और अपार हैं; जो महान मोह/अज्ञान का नाश करते हैं—ऐसे शिव, शंकर, शम्भु, ईशान की मैं स्तुति करता/करती हूँ।

भाव: अविद्या-क्षय, विवेक व आन्तरिक आनन्द की स्थापना।

श्लोक 4
वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं
महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ४ ॥
हिंदी अर्थ: जो वट-वृक्ष के निकट निवास करने वाले, सिंह-हास्य से भय नाशक, महापापों का नाश करने वाले और सदा प्रकाशित (ज्ञानस्वरूप) हैं; जो पर्वतराज (कैलास) के अधीश्वर, गणेशों के स्वामी, देवों के ईश और महेश हैं—उन्हीं शिव को प्रणाम।

भाव: पाप-क्षालन, तेजस्विता और निरभयता की कृपा।

श्लोक 5
गिरिन्द्रात्मजासङ्गृहीतार्धदेहं
गिरौ संस्थितं सर्वदाऽऽसन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ५ ॥
हिंदी अर्थ: जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री जगदम्बा (पार्वती) को अर्धांगिनी रूप में धारण किए हैं; कैलास पर स्थित हैं, किन्तु भक्तों के लिए सदैव समीप हैं; जिन्हें ब्रह्मा आदि देवता भी नमस्कार करते हैं—ऐसे परब्रह्मस्वरूप शिव की वन्दना।

भाव: शिव-शक्ति का अभेद; भक्त-निकटता का आश्वासन।

श्लोक 6
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं
पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ६ ॥
हिंदी अर्थ: जो हाथों में कपाल और त्रिशूल धारण करते हैं; चरण-कमल में नम्र हुए भक्तों की कामनाएँ पूर्ण करते हैं; नंदी-वृषभ पर आरूढ़, देवताओं में प्रधान हैं—उन शम्भु को प्रणाम।

भाव: कामना-पूर्ति, रक्षण और धर्म-स्थापन।

श्लोक 7
शरच्चन्द्रगात्रं गणानन्दपात्रं
त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं सदा सच्चरित्रं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ७ ॥
हिंदी अर्थ: जिनका रूप शरद्-पूर्णिमा के चन्द्र समान उज्ज्वल है; जो गणों के आनन्द का आधार हैं; त्रिनेत्रधारी, पवित्रतम, कुबेर (धनेश) के सखा, अपर्णा (भागिरथी/पार्वती) के पति और सदाचार-आदर्श हैं—उन शिव को नमस्कार।

भाव: चित्त-शुद्धि, समृद्धि-सहयोग और सदाचार की प्रेरणा।

श्लोक 8
हरं सर्पहारं चिताभूविहारं
भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ८ ॥
हिंदी अर्थ: जो हर (सबका हरण करने वाले, दुःख हरने वाले) हैं; सर्पमाला धारण करते हैं; चिताभस्म से विहार करने वाले, वेदों का सार और सदा निर्विकार हैं; जो श्मशान में निवास कर काम-देव के दहनकर्ता हैं—उन शंकर की स्तुति करता/करती हूँ।

भाव: वैराग्य, देह-अभिमान का क्षय और अंतःशुद्धि।

फलश्रुति
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणेः
पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं
विचित्रैः समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९ ॥
हिंदी अर्थ: जो व्यक्ति प्रातःकाल या नित्य भावपूर्वक शूलपाणि (श्रृंगीधारी शिव) की यह स्तुति पढ़ता है, वह पुत्र, धन, अन्न, मित्र, सुशोभित गृहस्थ-सुख पाकर—अन्ततः भगवान की अनन्य कृपा से मोक्ष को प्राप्त होता है।

४) शिवाष्टकम् पाठ के लाभ (अनुभव-आधारित पारंपरिक मान्यताएँ)

  • मन-शुद्धि व वैराग्य: “महामोहमारं…”—अविद्या/मोह का हरण; चित्त निर्मल, एकाग्र।
  • भय-निवारण: “महाकालकालं…”—काल/आकस्मिक विघ्नों का शमन, साहस-वृद्धि।
  • सदाचार व तेज: “सदा सुप्रकाशम्…”—आचरण-सुधार, तेज, ओज, स्थिरता।
  • कुल-कल्याण/गृह-शान्ति: फलश्रुति में गृहस्थ-सौख्य एवं समृद्धि का आश्वासन।
  • आध्यात्मिक उन्नति: शिव-शक्ति के अभेद भाव का जागरण, अंततः मोक्ष-पथ की ओर प्रेरणा।

नोट: ये लाभ शास्त्रीय परंपरा, सतत साधना और आस्था पर आधारित हैं; चिकित्सा/विधिक सलाह का विकल्प नहीं।

५) नियम, उच्चारण एवं सावधानियाँ

  • देवनागरी पाठ में अनुस्वार/विसर्ग का ध्यान रखें। प्रारम्भ में धीरे, स्पष्ट अक्षरों के साथ पढ़ें।
  • यदि त्रुटि हो, अंत में विनम्र क्षमा-प्रार्थना करें—“त्रुटि क्षम्यताम् महादेव।”
  • शाकाहार, सात्त्विक भोजन, सत्य-वचन, संयम—साधना को बल देते हैं।
  • सोमवार/प्रदोष/शिवरात्रि पर बिल्वपत्र अर्पण शुभ; किन्तु बिना उपलब्धता के केवल भाव से भी पाठ पूर्ण है।
  • गर्भवती/अस्वस्थ हों तो दीर्घासन, देर तक दीये/धूप से परहेज; आराम से, मानसिक जप-भाव अपनाएँ।

६) FAQ — अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. क्या शिवाष्टकम् केवल सुबह ही पढ़ना चाहिए?

A. नहीं—प्रातः/संध्या—दोनों समय शुभ हैं। समय न मिले तो दिन में भी भावपूर्वक पढ़ें।

Q. क्या प्रत्येक श्लोक के बाद ‘ॐ नमः शिवाय’ जप करें?

A. परंपरा में अथवा व्यक्तिगत अनुकूलता के अनुसार किया जा सकता है—विशेषकर 5 या 11 बार।

Q. क्या 9वाँ (फलश्रुति) श्लोक आवश्यक है?

A. प्रचलन में उसे अंत में पढ़ा जाता है; फल-विधान और संकल्प को पुष्ट करता है।

Q. क्या स्तोत्र को याद करना जरूरी है?

A. नहीं; पहले-पहल स्पष्ट पढ़ना ही सर्वोपरि है। नियमितता से स्वतः स्मरण होने लगेगा।

८) नोट्स

देवनागरी पाठ व्यापक परंपरा में प्रचलित “प्रभुं प्राणनाथं…” शिवाष्टकम् के अनुसार प्रस्तुत किया गया है। विविध संस्करणों में लघु-भेद संभव हैं।

हर हर महादेव

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